अपनों ने ही लूटा, गैरों में कहाँ दम था!
“इतिहास(ETIHAS) साक्षी है, हमें कोई विदेशी कभी नहीं हरा पाया, हमें सदैव अपनों ने हराया हैं।” अजीत डोभाल जी का यह कथन अचानक ही मानस पर आज उभर आया। सिकंदर से लेकर, गोरी, गजनी तक हमारे अपनों ने ही अपनों की पीठ पर वार किया। अकबर की सहायता मान सिंह ने नहीं की होती तो राजपूताने ने कब का मुगलों को उखड फेंका होता आज इतिहास कुछ और होता। अंग्रेज बहादुरों को शरण देने का कार्य केवल अपने पड़ोसी राजा की ईर्ष्या या द्वेष के कारण हुआ, जिस कारण समस्त राष्ट्र गुलामी में चला गया। मुसलमानों से लेकर अंग्रेजों तक सभी ने हमारी कमजोर नसों को दबाकर हम में फूट डाली,आपस में लड़ा कर कमजोर किया उसके पश्चात स्वयं हम पर शासन करने लगे। यह कहानी हर शताब्दी में दोहराई गयी, हर पीढ़ी ने इसका दंश झेला और इसी आपसी फूट के कारण देश का विभाजन हुआ, विभाजन भी ऐसा जिससे प्रश्नों के निराकरण के बदले प्रश्नों का अम्बार लग गया। आज हमारे देश से अलग हुए राष्ट्र ही हमारे शत्रु नहीं हैं अपितु उनसे दुगुनी संख्या देश के अंदर है व उनकी सहायता करते हैं। परन्तु हमने कभी इतिहास से नहीं सीखा, हमने उन भयंकर भूलों से भी नहीं सीखा ,हम प्रत्येक पल, क्षण उन भूलों का पुनरावर्तन करते जा रहे हैं।
जब भी सनातनी हिन्दू समाज(HINDU SAMAJ) ने एकत्रित होने की चेष्टा की, कोई न कोई स्वार्थी तत्त्व बीच में आया और उसे कमजोर कर चला गया। पिछले कुछ वर्षों में भारत ने बहुत से सुखद परिवर्तन देखे हैं, समाज के जागरण से देश अपनी सांस्कृतिक व आध्यात्मिक पहचान को योग्य रूप में विश्व के समक्ष रख पाने में सक्षम हुआ है। भारत के नागरिकों का विश्व में सम्मान बढ़ा है, भारतीय परम्पराओं को वैज्ञानिक आधार पर मान्यता मिलनी प्रारम्भ हुई है। विशेष रूप से आयुर्वेद एवं योग में भारत का अनुकरण होने लगा है, भारतीय भोजन व भोजन करने की परंपरा को स्वास्थ्य के लिए आयुर्विज्ञान भी मानने लगा है। अब हम विश्व में तीसरी दुनिया का देश न होकर एक राजनैतिक व आर्थिक संपन्न शक्ति के रूप में जाने जाते हैं। ईश्वर कृपा से देश को एक सबल नेतृत्व मिला है जिसकी भारतवर्ष को सदियों से प्रतीक्षा थी।
परन्तु देश में अब तक पली-बढ़ी आसुरी शक्तियां जिन्होंने देश को हर संभव युक्ति से लूटा, संस्कृति व आस्था से खिलवाड़ किया व विदेशी शक्तियों के हाथों में खेलते रहे उनको यह सब नहीं सुहा रहा। वे येनकेन प्रकार से देश को बदनाम करने के बहाने ढूढ़ते रहते है, बहाना न मिले तो खड़ा करते हैं। उन्होंने अपने तंत्र को इस तरह से फैला रखा है जैसे नसों में रुधिर बहता है। पत्रकारिता, शिक्षण, बुद्धिजीवी, कलाकार, नौकरशाही, राजनेता, समाजसेवी सभी स्थानों पर उनके लोग जमे हुए हैं एवं उनके किले को भेदना असाध्य है। वे इस देश में असहिष्णुता, जाति भेद, सांप्रदायिकता इत्यादि के नाम पर दंगा फसाद करवाने, समाज को बांटने में विशेषज्ञ हैं। जिस किसी ने भी उनके बनाये नियम-मापदंडों को तोड़ने या छोड़ने प्रयास किया वह या तो बिरादरी से बहिष्कृत है या उसे काम नहीं दिया जाता। इसी लिए कोई भी उनकी लीक से हटकर राष्ट्र व समाज हित की बात करने के स्थान पर उनकी बांसुरी में सुर पिरो कर शांति से ऐशो आराम का जीवन गुजारता है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर जो लोग JNU में देश के टुकड़े होने के नारे वालों का करते हैं वही लोग पेरिस में किसी का कार्टून बना देने पर सर काट दिए जाने का ईश निंदा के नाम पर हत्यारे के समर्थन में खड़े होते हैं। किन्ही समाचार चैनल के द्वारा किसी पत्रकार को देश विरोधी तत्वों का समर्थन करने,अयोग्यता या अन्य किसी आधार पर नौकरी से निकाल दिए जाने को सीधे प्रधानमंत्री से जोड़ने वाले ऐसे लोग, किसी अन्य पत्रकार जो देश व समाज हित के मुद्दों को उठाता है, किसी की हत्या हो जाने पर सरकार द्वारा बरती जा रही ढिलाई या हत्यारों को बचाने के प्रयास को उजागर करता है उसे पुलिस द्वारा क्रूर अपराधी की भांति AK -47 हथियारों से लैस मुठभेड़ विशेषज्ञ पुलिस अधिकारी द्वारा तड़के घसीटकर घर से ले जाने व परिवार के साथ किये गए अभद्र व्यवहार को समर्थन करते हैं।
मीर जाफर(MIR JAPHAR) हर युग, देश व काल में हुए हैं। एक युति जो हिन्दू समाज की एकता का प्रतिबिम्ब मानी जाती थी, जिसका मुखिया हर हिन्दू द्वारा किये गए किसी भी अच्छे भले कार्य को अपने शीश पर ले लेता था। अपने हिन्दू होने का गौरव किसी राजनेता ने सार्वजनिक तौर पर शिवाजी महाराज के बाद स्वतंत्र भारत में केवल बाला साहेब ठाकरे ने ही किया था। उनकी कल्पना भी नहीं रही होगी की उनके जाने के कुछ समय पश्चात ही सत्ता के लालच में उन्ही की संतति देश की बात करने वालों को, देश हित की बात कहने वालों को इस तरह प्रताड़ित व परेशान करेगी। जिस व्यक्ति ने कभी कोई पद ग्रहण नहीं किया, कोई चुनाव नहीं लड़ा आज सत्ताओं की लालसा इतिहास का पुनरावर्तन कर रही है। मानो बाला साहेब का सरेआम उपहास किया जा रहा है कि जिस हिन्दुत्व के लिए आपने अपना जीवन समर्पित कर दिया, उसे मुंबई की नालियों में बहाकर महासागर में विसर्जित कर दिया गया।
यदि राजनितिक मतभेदों को भी ध्यान में रखा जाये तो भी कोई भी राजनैतिक दल, विशेषतः दल का मुखिया किसी भी प्रकार की बदले की भावना व्यक्तिगत रूप में नहीं रखेगा। विशषकर जब वह राज्य का मुख्यमंत्री हो। पहले कंगना रनौत पर सुशांत राजपूत मृत्यु केस में बोलने पर उसका कार्यालय तोडा गया, उसके बाद उन पर कई प्राथमिकियां दर्ज की गयी। उसके पश्चात रिपब्लिक टीवी के कर्ताधर्ता अर्नब गोस्वामी व उनके पूरे चैनल के स्टाफ को पिछले दो मास से पुलिस द्वारा मानसिक प्रताड़ना दी जा रही हैं। हद तो आज तब हो गयी जब दो वर्ष पूर्व पुलिस द्वारा बंद किये जा चुके आत्महत्या की प्रेरणा देने के केस को पुनः खोलकर तड़के अर्नब को उनके निवास से दुर्दांत अपराधियों की तरह पुलिस बल घसीट कर लेकर गया। अर्नब व उनकी टीम को पिछले कई दिनों से पुलिस द्वारा १० मिनट में फलां पुलिस स्टेशन पहुंचो, ३० मिनट में फलां डिटेल्स लेकर इस पुलिस स्टेशन पहुंचो चल ही रहा था और आज इस तरह की घटना हुई।
प्रश्न यह नहीं है कि अर्नब को पुलिस पकड़ कर क्यों ले गयी ! प्रश्न यह है कि राजनैतिक दल, पत्रकार, टीवी-समाचार पत्र, फ़िल्मी दुनियां के प्रबुद्ध जो हर देश विरोधी कृत्य का बिना मांगे समर्थन करते हैं सब मौन हैं। देश का प्रबुद्ध वर्ग मौन है ? आज अर्नब है कल उनका दिन हो सकता है। सत्ताएं आती जाती रहती हैं, कभी नाव पानी पर तो कभी-कभी पानी भी नाव पर चढ़ता है। अर्नब गोस्वामी का अपराध यह है कि उन्होंने बड़े बड़े राजनेताओं, अपराधियों, व्यवसायिओं , फ़िल्मी अभिनेताओं के कुकृत्यों को उजागर किया है। यदि यही किसी वामपंथी पत्रकार के साथ हुआ होता तो दिल्ली से लेकर वाशिंगटन तक, लंदन से लेकर सेंटपीटरस्बर्ग तक हर स्टूडियो भारत में एक पत्रकार पर हुए सरकारी हमले व अभिव्यक्ति की आज़ादी के कत्लेआम की संज्ञा देकर भारत की सड़कों पर लोगों को उतार दिया जाता।
केंद्र व राज्यों की भाजपा सरकारों के लिए यह आँखें खोलने की घटना है। याद रहे ऐसे कई लाख राष्ट्रवादी लोग हैं जो प्रधान मंत्री के एक आव्हान पर रात दिन बिना किसी लाभ के भारत की उन्नति के लिए प्रयासरत हैं व देशद्रोहियों की नींद उडा कर रखते हैं। इसका अर्थ यह जाता है कि कोई भी व्यक्ति खुलकर राष्ट्रवाद, देशभक्ति की बात करेगा, या कांग्रेस व उनके समूह के लोगों के किसी भी भ्रष्टाचार,अपराध को पर्दाफाश करने की कोशिश करेगा तो उसका परिणाम कंगना या अर्नब गोस्वामी की तरह होगा, यह सन्देश आज की घटना के माध्यम से देश विरोधी ताकतों ने स्पष्ट कर दिया है। यह सन्देश भी स्पष्ट है कि जब हम देश के सबसे लोकप्रिय मीडिया समूह के मालिक जो स्वयं सबसे लोकप्रिय पत्रकार है उनको घसीट कर ले जा सकते है तो बाकी किस खेत की गाजर-मूली हैं?
दूसरा सन्देश यह है कि कांग्रेस मृत नहीं है, वह आज के हर इको सिस्टम में मौजूद है और आप से अधिक शक्ति रखती है, उस शक्ति का दुरूपयोग करना अच्छी तरह से जानती है। यह कृत्य उद्धव ठाकरे द्वारा नहीं किया गया है वह केवल एक सत्ता लालची मोहरा हैं ,किन्तु पुरुलिया हथियार प्रकरण से लेकर मालिया, कोयला, थ्री जी से लेकर ISI, दाऊद गैंग, ड्रग तस्करी के माफिया, बॉलिवुड को चला रहे विदेशी जिहादी फण्ड को उजागर करने का दंड कांग्रेस की और से अर्नब को मिला है। देखना यह है कि केंद्र की भाजपा सरकार देश की आर्थिक राजधानी में दिन दहाड़े सरकारी गुंडागर्दी को रोक पाती है या मुंबई भी शिकागो की भांति राजनीती-अंडर वर्ल्ड के चक्रव्यूह का अभिमन्यु बनकर रह जायेगा।
लेखक – गोपाल गोस्वामी,
उद्योजक व शोधार्थी, एन.आई.टी सूरत