प्राचीन भारत के विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक:- भाग 5
विशेष माहिती श्रृंखला – (5-7)
4]औषधि विज्ञान के जनक आचार्य चरक:
आयुर्वेद के आचार्य महर्षि चरक ने ई.पू. 300-200 में आयुर्वेद के महत्वपूर्ण ग्रंथ ‘चरक संहिता’ की रचना की थी। इन्हें त्वचा चिकित्सक भी माना जाता है। उन्होंने शरीरशास्त्र, गर्भशास्त्र, रक्ताभिसरण शास्त्र, औषधिशास्त्र आदि पर गहन शोध किया तथा मधुमेह, क्षयरोग, हृदय विकार जैसे रोगों के निदान व औषधोपचार का अमूल्य ज्ञान दिया।
उन्होंने रोगों के निदान के उपाय और उससे बचाव का तरीका बताया। साथ ही, अपने ग्रंथ में इस तरह की जीवनशैली का वर्णन किया, जिससे कोई रोग-शोक न हो। 8वीं सदी में चरक संहिता का अरबी भाषा में अनुवाद हुआ और वहां से यह पश्चिमी देशों तक पहुंचा।
5]सर्जरी के आविष्कारक महर्षि सुश्रुत:
सर्जरी के आविष्कारक महर्षि सुश्रुत ने 2500 साल पहले उस समय के वैज्ञानिकों के साथ प्रसव, मोतियाबिंद, कृत्रिम अंग लगाना, पथरी का इलाज और प्लास्टिक सर्जरी जैसी कई जटिल शल्य चिकित्सा के सिद्धांत प्रतिपादित किए। आधुनिक विज्ञान मात्र 400 वर्ष पूर्व से शल्य क्रिया कर रहा है। सुश्रुत के पास अपने बनाए उपकरण थे, जिन्हें वे उबालकर प्रयोग करते थे। उनकी ‘सुश्रुत संहिता’ में शल्य चिकित्सा से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी मिलती हैं।
इसमें शल्य चिकित्सा में प्रयुक्त होने वाले चाकू, सुइयां, चिमटे जैसे 125 से भी अधिक आवश्यक उपकरणों के नाम हैं। लगभग 300 प्रकार की शल्य क्रिया के उल्लेख भी हैं। डॉ. बृजेंद्रनाथ सील लिखते हैं कि सुश्रुत औषधि से रुधिर स्राव को रोक सकते थे और पथरी भी निकालते थे।आंत्रवृद्धि, भगंदर, नाड़ी त्रण एवं अर्श को वे ठोक कर ठीक कर देते थे। वे मूढ़-गर्भ एवं स्त्रियों के रोगों के सूक्ष्म से करने में सक्षम थे। विद्यार्थियों को शिक्षा देने के लिए शवच्छेद सूक्ष्म ऑपरेशन भी होता था। उनके अनुसार, 9वीं व 10वीं सदी में चरक व सुश्रुत संहिता का जावा, मलेशिया व कम्बोडिया आदि देशों में प्रचार हो चुका था।