कुरान के कथित अपमान के बाद स्वीडन इन दिनों आग की लपटों में जल रहा है और स्वीडन में सरकारी संपत्तियों को दंगाई जमकर निशाना बना रहे हैं। ऐसा लग रहा है, कि स्वीडन को दंगाई जलाकर खाक कर देना चाह रहे हैं। जिसके बाद अब स्वीडन की पुलिस ने कानून व्यवस्था संभालने के लिए अब सख्त रूख अपनाना शुरू कर दिया है। आपको बता दें कि, स्वीडन में ये दंगे ईसाई त्योहार ईस्टर के बाद शुरू हुए हैं, जो लगातार छठ दिन भी जारी है और पुलिस की गोली लगने से तीन दंगाई घायल हुए हैं। शरण लेनेवाले २ प्रतिशत मुस्लिम जब ९% हो गए तो उन्होने बवाल काटना शुरू कर दिया।
कट्टरपंथि आतंकवादियों द्वारा स्वीडेन के कई हिस्सों में दंगे किए जा रहे हैं और चरमपंथी संगठन कई हिस्सों में पूरी प्लानिंग के साथ हमले कर रहे हैं। वहीं, स्वीडन की प्रधानमंत्री मैग्डेलेना एंडरसन ने इस हमले की निंदा की है। स्वीडन पुलिस की तरफ से जारी एक बयान में कहा गया है कि, ‘तीन लोगों को गोली लगी है, जिनका अस्पताल में इलाज किया जा रहा है और दंगा फैलाने के आरोप में उन्हें गिरफ्तार किया गया है।’ वहीं, पुलिस ने नोरकोपिंग शहर में रविवार शाम को स्थिति कंट्रोल में होने की जानकारी दी है।
ये दंगा उस वक्त शुरू हुआ, जब दक्षिमपंथी और कट्टरपंथियों के खिलाफ हमेशा से जहर उगलने वाले नेता रासमस पलुदान ने पूरे देश में ईस्टर के खत्म होने पर कार्यक्रमों का आयोजन किया था और रासमस पलुदान को कुरान का अपमान करने के लिए जाना जाता है और इन्हीं कार्यक्रमों को मुस्लिम कट्टरपंथियों ने निशाना बनाना शुरू किया। रिपोर्ट के मुताबिक, ऐसी अफवाह फैली या फैलाई गई, कि कार्यक्रम में कुरान की प्रतियां जलाई जाएंगी और इसके बाद से ही पूरे देश में हिंसक प्रदर्शन होने लगे। सऊदी अरब ने सोमवार को कुरान के कथित अपमान को लेकर स्वीडन की निंदा की है और सऊदी अरब विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि, सऊदी किंगडम शांतिपूर्वक संवाद को तरजीह देता है। सऊदी अरब ने सहिष्णुता, सह-अस्तित्व, घृणा, उग्रवाद का बहिष्कार करने और सभी धर्मों और पवित्र स्थलों के दुरुपयोग को रोकने की आवश्यकता पर भी बल दिया है।ईरान-इराक ने भी किया विरोध आपको बता दें कि, कुरान जलाने को लेकर ईरान और इराक ने भी विरोध दर्ज करवाया है और दोनों देशों ने स्वीडन के राजदूतों को तलब किया है और पूरी घटना पर जानकारी मांगी है।
यूरोप के उत्तर में बसे छोटे से देश स्वीडन में बीते कुछ दिन से हिंसक घटनाओं की खबरें आ रही हैं।यूरोप में शरणार्थी के तौर पर घुसने के बाद वहां बीते एक दशक में आतंकी व उन्मादी घटनाओं में वृद्धि हुई है। स्वीडन ही नहीं फ्रांस, बेल्जियम व स्पेन तक इसका दुष्प्रभाव दिखा है। जर्मनी, बेल्जियम समेत कई देशों ने खुले दिल से शरणार्थियों के लिए दरवाजे खोले और आज गलती का अहसास कर रहे हैं। यूरोप में मुस्लिम शरणार्थी कुनबा तेजी से बढ़ा रहे हैं। अधिकांश अपने ही तौर तरीकों के साथ अलग कालोनी बनाकर रहते हैं। यूरोप में ऐसी मुस्लिम कालोनियों की संख्या बहुत बढ़ी है।
इस समय भले ही स्वीडन इस धार्मिक कट्टरपंथ से जुड़ी हिंसा को झेल रहा हो, लेकिन वास्तविकता में फ्रांस वह देश है जो यूरोप में इस समस्या का सबसे अधिक दंश पा रहा है। बाहर से आए कट्टरपंथि स्थानीय मुस्लिमों के साथ मिलकर सामुदायिक भावना गढ़ रहे हैं।हमले और हिंसक घटनाओं की संख्या बढ़ने के बाद फ्रांस की सरकार चेती है और कहा है कि वह इस्लामिक कट्टरपंथियों की रोकथाम के लिए कड़े कदम उठाएगी, लेकिन यह आसान नहीं है। वर्ष २०१४ के बाद बढ़े हमलों के कारण आपरेशन सेंटिनेल, आपरेशन विजिलेंट गार्डियन और ब्रसेल्स लाकडाउन चलाए गए।
शरण देनेवाले यूरोपीय देशों को ही नष्ट करने लगे कट्टरपंथि तो स्वीडेन -फ़्रांस -जर्मनी में कुरआन जलाने की घटनाएं शुरू हो गयी हैं। इस बार कुरआन को जलाने की जिम्मेदारी डेनिश-स्वीडिश चरमपंथी राममुस पालु़डन ने ली है जिसके बाद स्वीडेन में हिंसा थम नहीं रही है। पांचवे दिन भी इसके कई शहरों में प्रदर्शन हुए और आगजनी की गई। माल्मो शहर में दर्जनों वाहनों को फूंक दिया गया। पुलिस और उपद्रवियों के बीच कई स्थानों पर हिंसक झड़पें हुई हैं। आमतौर पर शांत माने जाने वाले इस स्कैंडिनेवियन देश में बीते गुरुवार को वहां बसे कट्टरपंथि समुदाय की तरफ से शुरू हुआ उपद्रव लगातार बढ़ता रहा। वैसे ही दृश्य देखने को मिले जैसे पिछले लगभग दस दिनों से भारत के कई शहरों में एक के बाद योजनाबद्ध तरीके से देखे गए। पथराव, वाहनों में तोड़फोड़, आगजनी, पुलिस से सीधा टकराव और धार्मिक नारेबाजी। सड़कों पर एकत्र भीड़ स्वीडन के नोरकोपिंग शहर में उन्मादी हो गई और बड़े पैमाने पर तोड़फोड़ व आगजनी देखने को मिली। उन्माद इतना अधिक था कि पुलिस को स्थिति संभालने में भारी दिक्कत पेश आई।
स्वीडन में जब लोग ईस्टर सप्ताहांत में व्यस्त थे तभी हुई इन घटनाओं से डर का वातावरण बना। अन्य कस्बों में भी तीन-चार दिन अशांति का माहौल रहा। नोरको¨पग में तो पुलिस को रविवार को स्थिति को नियंत्रण में करने के लिए रबर की गोलियां चलानी पड़ीं जिससे तीन लोग घायल हुए। करीब एक करोड़ की जनसंख्या वाले और आमतौर पर शांत माने जाने वाले देश स्वीडन में इस अशांति के गंभीर मायने हैं। यह केवल एक यूरोपीय देश की ही बात नहीं है बल्कि वहां कई देशों में मुस्लिम कट्टरपंथ और उन्माद की घटनाएं सचेत करती हैं। इसके लिए इस बात का अध्ययन करा जाना चाहिए कि यूरोप में बीते एक दशक में बदली जनसांख्यिकी का वहां और विश्व के सामाजिक सद्भाव और शांति पर कैसा प्रभाव पड़ रहा है:
कहानी शुरू होती है दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से पीड़ित बनकर शरण मांगने आए लोगों और यूरोपीय देशों की दयालुता से। मध्य एशिया और अफ्रीका के अशांत क्षेत्रों से बड़ी संख्या में मुस्लिम आकर स्वीडन समेत अन्य यूरोपीय देशों में बसे। सरकार ने भी सुविधाएं उपलब्ध कराईं और धीरे-धीरे कभी शरणार्थी रहे ये कट्टरपंथि वहां के नागरिक हो गए। शांतिप्रिय लोकतंत्र स्वीडन ऐसे शरणार्थियों के लिए सुरक्षित स्थान रहा है।बीबीसी की रिपोर्ट में एक महिला का जिक्र है जो कभी मतांतरण कर इस्लाम अपना चुकी थी और पति के साथ सीरिया में इस्लामिक स्टेट (आइएस) की आतंकी के तौर पर गोलियां चला रही थी। वह शायद यह घिनौना खेल जारी रखती यदि संघर्ष में पति की मौत के बाद उसका कट्टरपंथ के स्याह पहलुओं से वास्ता न पड़ा होता। एक दिन जार्डन के एक पायलट को जिंदा जलाने के बाद उसे समझ आया कि यह तो उसके मूल धर्म के सिद्धांतों और भावना के खिलाफ है। तब वह वहां से भागकर वापस स्वीडन पहुंची। उसके आइएस आतंकी बनने की कहानी भी बताती है कि कैसे ब्रेनवाश कर तथाकथित इस्लामिक लड़ाके तैयार किए जा रहे हैं।
स्वीडन से निकले 300 जिहादी
वर्ष 2016 में आई एक रिपोर्ट कहती है कि इन्हीं शरणार्थियों की नई पीढ़ी स्वीडन को आंख दिखा रही है, उन्माद फैला रही है। यह उन्मादी पीढ़ी केवल स्वीडन तक ही सीमित नहीं रही, विश्व में भी आतंक फैलाने निकली। छह साल पहले तक अकेले स्वीडन से 300 से अधिक जिहादी सीरिया और इराक में इस्लामिक स्टेट (आइएस) के लिए आतंक फैलाने गए। यह आंकड़ा कहता है कि प्रति व्यक्ति गणना के हिसाब से यूरोप से सबसे अधिक जिहादी भेजने वाले देशों में स्वीडन शामिल है। यह बेहद खतरनाक संकेत है।यही कट्टरपंथ और उन्माद अब स्वीडन की आंतरिक सुरक्षा पर भारी पड़ रहा है।
गोटेनबर्ग जिहादियों की सबसे अधिक भर्ती करने वाला स्वीडिश शहर है। करीब पांच लाख की आबादी वाला यह शहर कभी औद्योगिक शक्ति रहा था और अब एक पोर्ट सिटी है, लेकिन यह दूसरे ही कारण से कुख्यात हो गया। स्वीडन से आइएस में जाने वाले 300 जिहादियों में से 100 इसी शहर से थे। उग्रता की साजिश में महिलाएं भी पीछे नहीं हैं। यहां की तिहाई से ज्यादा आबादी दूसरे देशों से आए लोगों की हैं जिसमें से अधिकांश कट्टरपंथि हैं। उत्तर पूर्वी कस्बे एंग्रेड में तो यह संख्या कुल आबादी के सत्तर प्रतिशत से भी अधिक है। पुलिस ने इस क्षेत्र को अतिसंवेदनशील, कानून व्यवस्था के लिए खतरा व समानांतर समाज बनाने की साजिश माना।
जिहादियों की बढ़ती संख्या का एक कारण स्वीडन के इन क्षेत्र विशेष में स्कूल जाने वाले बच्चों की संख्या में गिरावट होना भी है। बेरोजगारी भी १५ प्रतिशत तक पहुंची जो स्वीडन के सामान्य आंकड़ों से बहुत अधिक है। यही बेरोजगार व अशिक्षित युवा जिहादी बनाए जाने के अभियान का आसान निशाना बनते हैं।
यूरोपीय शहरों पर २०१४ से बढ़ा हमलों का सिलसिला
यूरोपीय संघ के २८ देशों में करीब ढाई करोड़ कट्टरपंथि आबादी है। कई दशक पहले से वहां कामकाज के सिलसिरक्को, पाकिस्तान आदि देशों से लोग जाते और बसते रहे हैं, लेकिन बीते एक दशक में मध्य एशिया और अफ्रीकी देशों से मुस्लिम शरणार्थियों की संख्या बढ़ी है। आंकड़े बताते हैं कि २०१४ के बाद यूरोप में आतंकी घटनाओं में वृद्धि हुई। इसके पहले के हमलों में आइएस और अलकायदा शामिल रहे लेकिन बाद में वहां ‘लोन वोल्फ हमले’ यानी अकेले एक व्यक्ति द्वारा गोलीबारी, चाकूबाजी या गाड़ी चढ़ाने के मामले बढ़े हैं। कई हमलों में कट्टरपंथि भी शामिल पाए गए।
मुख्य आतंकी हमले
२०१४ में बेल्जियम में यहूदी संग्रहालय पर हमला यूरोप में सीरिया से लौटे जिहादी द्वारा किया गया पहला आतंकी हमला था
नवंबर २०१५ में पेरिस हमले में १३० की मौत हुई
जुलाई २०१६ में फ्रांस के नाइस शहर में ट्रक से हुए हमले में ८६ मारे गए
जून २०१६ में अतातुर्क एयरपोर्ट हमले में ४५ की मौत
मार्च २०१६ में ब्रसेल्स में बम धमाकों में ३२ मारे गए
मई २०१७ में मैनचेस्टर एरीना में बम विस्फोट में २२ की मौत
कौन हैं रासमस पलुदान?
रासमस पलुदान डेनमार्क-स्वीडिश नागरिक हैं और वो इस्लाम विरोधी आंदोलनों के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने स्वीडन में अवैध कट्टरपंथि घुसपैठियों को देश से बाहर निकालने की मुहिम छेड़ रखी है और ऐसी रिपोर्ट है, कि उन्होंने अपने कार्यक्रमों में कुरान की प्रतियां जलाने की बात कही थी। रासमस पलुदान को उग्रवादी सोच के लिए नवंबर २०२० में फ्रांस में गिरफ्तार किया गया था और फिर उन्हें फ्रांस की सरकार ने देश से बाहर निकाल दिया था। इसके ठीक बात बेल्जियम में रासमस पलुदान के पांच कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया था और ऐसा आरोप है, कि उन्होंने बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स में कुरान को जलाकर घृणा फैलाने और कट्टरपंथि समुदाय की भावनाओं को भड़काने की कोशिश की थी। स्टार्म कुर्स पार्टी चलाने वाले रासमस पलुदान ने कहा है कि, उन्होंने इस्लाम की सबसे पवित्र पुस्तक कुरान को जलाया है और वो आगे भी कुरान को जलाते रहेंगे। स्वीडन से आ रही रिपोर्टों के मुताबिक, जिन-जिन जगहों पर रासमस पलुदान के कार्यक्रम थे, उन-उन जगहों पर दंगे फैले हैं।