धार्मिक विचारों के प्रसार में साहित्य का बहुत बड़ी भूमिका है। इस नाते हिन्दू साहित्य के प्रचार व प्रसार में गीता प्रेस, गोरखपुर का योगदान विश्व इतिहास में अतुलनीय है।
पूर्वी उत्तर प्रदेश का गोरखपुर नगर महायोगी गुरु गोरखनाथ, गौतम बुद्ध और महात्मा कबीर की तपस्थली व कर्मस्थली रहा है। नेपाल से लगा होने के कारण यह दैनन्दिन व्यापार का भी बहुत बड़ा केन्द्र है। इसी नगर में सेठ जयदयाल जी गोयन्दका ने 29 अप्रैल, 1923 को धार्मिक साहित्य के प्रचार के लिए गीता प्रेस की स्थापना की थी।
गोयन्दका जी के मन में इस बात की बहुत पीड़ा थी कि ईसाइयों का साहित्य तो विपुल मात्रा में प्रकाशित हो रहा है, पर हिन्दू साहित्य प्रायः दिखाई नहीं देता। इसी प्रकार जो साहित्य प्रकाशित होता है, उसमें इतनी गलतियां होती थीं कि प्रायः अर्थ का अनर्थ हो जाता है। हर प्रकाशक अपनी ओर से इनमें कुछ जोड़ या छोड़ देता था। इस कारण गीता, रामायण, श्रीरामचरितमानस, श्रीमद्भागवत, पुराण, उपनिषद आदि की प्रामाणिक व्याख्या नहीं की जा सकती थी। इसी को लेकर विधर्मी लोग हिन्दू धर्म की हंसी उड़ाते थे।
इस कमी को पूरा करने के लिए ही गोयन्दका जी ने गीताप्रेस की स्थापना की। उन्होंने तुलसीकृत श्रीरामचरितमानस की सभी प्रकार की उपलब्ध प्रतियां मंगायी। विद्वानों को एकत्र कर उसका शुद्ध पाठ तैयार कराया और फिर उसे प्रकाशित किया।
वर्ष 2007-08 तक 85 वर्षों की यात्रा में प्रेस से प्रकाशित पुस्तकों की संख्या 42 करोड़ तक पहुंच चुकी है। सस्ती और ‘विज्ञापन रहित‘ पुस्तकों की रिकार्ड बिक्री करने वाला विश्व का सबसे बड़ा प्रकाशन संस्थान श्रद्धालु ग्राहकों की मांग को पूरा नहीं कर पा रहा है। गत वित्तीय वर्ष में गीता प्रेस ने 29.50 करोड़ रुपये की पुस्तकें बेची। संस्थान में लगभग 1,000 कर्मचारी हैं, जिनके माध्यम से यह कार्य सम्पन्न हो रहा है।
नई तकनीक, आधुनिक मशीनों एवं आवश्यक सुविधाओं से युक्त गीताप्रेस हिन्दी, बांग्ला, मराठी, गुजराती, तमिल, तेलुगू, कन्नड़, उडि़या, मलयालम, पंजाबी, असमिया तथा उर्दू भाषियों के लिए, उन्हीं की भाषा में ‘हिन्दू धर्म ग्रन्थ‘ उपलब्ध करा रहा है।
2006 में नेपाली भाषा में ‘रामचरितमानस‘ का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। अध्यात्म प्रधान ‘कल्याण‘ मासिक पत्रिका का नियमित प्रकाशन संस्थान की एक विशेष उपलब्धि है। धर्मप्रेमी पाठकों में यह अत्यधिक लोकप्रिय है। वर्तमान में इसके लगभग ढाई लाख ग्राहक हैं। इसके अब तक 80 विशेषांक प्रकाशित हो चुके हैं। भाई हनुमान प्रसाद पोद्दार, स्वामी रामसुख दास जैसे मनीषी इसके सम्पादक रह चुके हैं।
यों तो संस्थान की सभी पुस्तकें अति लोकप्रिय हैं; पर अकेले ‘तुलसीकृत रामचरितमानस‘ की सात करोड़ तथा हिन्दी और संस्कृत गीता की 7.50 करोड़ प्रतियां बिक चुकी हैं। पुराण दो करोड़, नारी व बालोपयोगी साहित्य 9.50 करोड़ तथा भक्त-चरित्र 5.25 करोड़ की संख्या में बिक चुके हैं। इस प्रकार समस्त विश्व को ‘हिन्दू धर्म‘ की श्रेष्ठता व विशिष्टता से परिचित कराने के उद्देश्य से यह संस्थान अपनी साधना में लगा है।
इस पुनीत प्रकाशन ने विश्व के हर हिन्दू तथा भारतीय संस्कृति व अध्यात्म प्रेमी लोगों के घरों में भी गीता, रामचरितमानस के साथ काफी श्रेष्ठ साहित्य पहुंचा दिया है। कम मूल्य के साथ ही इसकी एक विशेषता यह भी है कि मुद्रण एकदम शुद्ध होता है। यदि किसी कारण से कोई भूल रह भी जाए, तो उसे हाथ से ठीक कर ही ग्राहक को दिया जाता है।
– विजय कुमार
साभार : हिंदी विवेक