विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र मे भारत का योगदान: भाग 2
विशेष माहिती श्रृंखला : भाग 2 (2-३०)
-प्राचीन भारतीय कृषि से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण पुरातात्विक तथ्य:
1. भारतवर्ष चावल, जूट, कपास, दालों, आम, नींबू जैसे फलों, काली मिर्च, गेहूं, राई, अलसी, सेव, नाशपाती तथा अखरोट आदि के उत्पादन के प्राचीनतम केंद्रों में से एक था।
2, गेहूं, जौ, कपास आदि का उत्पादन तथा हल, बीज ड्रिल, पहियेवाली गाड़ियों आदि उपकरणों का उपयोग हड़प्पा सभ्यता (लाहौर से लगभग 160 किलोमीटर दूर) की कुछ मुख्य विशेषताएं है। लोथल में अनाज भंडार भी मिले हैं।
3. प्राचीनतम कृषि में केला, गन्ना, रतालू, साबूदाना, पाम के मानस्पतिक वर्धन आदि पौधों की जानकारी उपलब्ध थी।
4. खेती तथा अन्य उपयोगों के लिये पशुओं को पालतू बनाया गया था ।
5. अनाज के व्यापार में परिवहन के लिये नौकाओं का उपयोग किया जाता था ।
6. कपास की सफाई कताई तथा बुनाई में प्रयुक्त उपकरण भी मिले हैं।
प्राचीन भारतीय साहित्य : कृषि प्रगति संबंधी साक्ष्य
ऋग्वेद (1500 ई.पू.)
ऋग्वेद की ऋचाओं में पर्यावरण, पशुपालन, वानिकी, कृषि संसाधनों और कार्य प्रणाली के विभिन्न पहलुओं का वर्णन है। इनमें मानवजाति के लिये सूर्य, वर्षा, वृक्ष तथा पशु-पक्षियों की उपयोगिता पर भी प्रकाश डाला गया है। कृषि-सूक्त और अक्ष-सूक्त में खेती के महत्व को दर्शाया गया है।
अथर्व वेद
इसकी ऋचाओं में पादप सुरक्षा, पवित्र उपवनी तथा अशोक, पीपल व बरगद आदि पवित्र वृक्षों का वर्णन है।
कृषि पराशर (400 ई.पू.)
यह पुस्तक, पूर्णतः कृषि से संबंधित प्राचीनतम पुस्तक मानी जाती है। इसमें कृषि प्रबंधन, कृषि-आजार, पशु विज्ञान (प्रबंधन सुदूर यात्रा, गोबर खाद), कृषि प्रक्रियाओं (बुआई, प्रत्यारोपण, पादप-संरक्षण, निराई (weeding). जल धारण, निकासी), कटाई, उपज-मापन अनाज भंडारण आदि तथा वर्षा (प्रतिमाह प्रेक्षण, पूर्वानुमान, ग्रहों का प्रभाव, अकाल संसूचक) जैसे विषयों का समावेश है।
कोटिल्य का अर्थशास्त्र (300 ई. पू.)
इस विख्यात ग्रंथ में अन्य विषयों के अतिरिक्त, कृषि सं संबंधित एक अलग प्रखंड है जिसमें कृषि-प्रक्रियाओं मौसमी फसलों और नदी तलों के उपयोग का वर्णन है।
वराहमिहिर की बृहत् संहिता (500 ई. पू.) इस महत्वपूर्ण ग्रंथ का कृषि प्रखंड अत्यंत विस्तृत है और इसमें मिट्टी के वर्गीकरण, सिंचाई प्रणालियों तथा कृषि आजार आदि विषयों पर प्रकाश डाला गया है।
कश्यप का कृषि सूक्त (800 ई.) इसमें अनेक उपयोगी पौधों को लगाने का वर्णन है।
सुरपाल का वृक्षायुर्वेद (1000 ई.) यह पुस्तक पादप विज्ञान से संबंधित क्रियाओं तथा जानकारी का विशाल संग्रह है। इसमें पौधों की बीमारियों तथा उपचार के लिये ‘त्रिधातु’ परिकल्पना की चर्चा है। इसमें वृक्षारोपण के विभिन्न पहलुओं पादप-वर्गीकरण पौधों के गुणन, पोषण व संरक्षण, बीज व बुआई, भू-जल, मिट्टी वर्गीकरण व चयन, पशुओं व फसलों को बढ़ाने के लिये जमीन उपयोग के वनस्पति संसूचक बिहार उद्यानों तथा बागवानी के आश्चर्यों का समावेश है।
इनके अतिरिक्त, सोमेश्वरदेव की ‘मानसोल्लास’, शांरंगधर की ‘उपवन विनोद’, मेधालिथि की ‘अभिघन रत्नमाला’ तथा ‘नामलिंगानुशासन’, ‘वीरमित्रोदय’ व ‘शिवतत्व रत्नाकर’ इस विषय के कुछ अन्य उपयोगी संदर्भ ग्रंथ हैं।