विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र मे भारत का योगदान: भाग 28
विशेष माहिती श्रृंखला : भाग 28 (28-30)
प्राचीन भारत में वस्त्रकला
मोहनजोदड़ों में हुई खुदाई से, उस काल के कई भारतीय परिधानों एवं वस्त्र बनाने में प्रयुक्त पदार्थों के बारे में पता चला है। वहीं कपास के पाये जाने से स्पष्ट होता है कि सिंघ के लोगों को 5000 वर्ष पहले कपास की जानकारी थी । संभवतः, गर्म कपड़े बनाने के लिये ऊन का प्रयोग भी होता था।
मोहनजोदडों काल में परिधानों के स्पष्ट प्रमाण उपलब्ध है। एक आदमी को बाये कंधे से दायीं बांह के नीचे जाती हुई शाल ओढ़े दिखाया गया है। कुछ प्रतिमाओं को घुटनों तक स्कर्ट या नेकर (जांधिया) पहने भी दिखाया गया है। बालों को बांधने के लिये बुने हुए वस्त्र के फीते का उपयोग होता था।
स्त्रियां घुटने से ऊपर तक की बुनी हुई साड़ी पहनती थी जिसे बेल्ट या कमरबंद से बांधा जाता था। ऐसी साड़ी वैदिक साहित्य में वर्णित निवि से काफी मिलती जुलती है।
कपड़ों के लिये व वस, वसन था वस्त्र शब्द का प्रयोग हुआ है। वैदिक काल के भारतीय सुंदर परिधानों के शौकीन थे सुवसस् अर्थात सुंदर परिधान, एक बहुप्रचलित शब्द था शरीर पर पूर्णतः फिट आने वाले वस्त्रों का रिवाज था व इस के लिये ‘सुरभि’ शब्द का प्रयोग हुआ है।
वस्त्रों पर बहुधा सोने से बने बार्डर या कढ़ाई होती थी सफेद वस्त्रों की बहुलता थी यद्यपि कुछ स्त्रियां रंगीन कपड़े भी पहनती थी। नृत्य गहरे नीले रंग का कपडा प्रयोग करते थे।
वैदिक काल में लोग मुख्यतः तीन वस्त्रों का प्रयोग करते थे। निवि अथवा अधोवस्त्र (जिसमें कभी कभी झालर भी लगी होती थी). ऊपरी शरीर पर दसस तथा ऊपर ओढ़ने के लिये
उपवसन या अधिवास । ऊपरी वस्त्र शाल, जैकेट, चोली या गाउन के रूप में होता था (जैसे प्रतीधि, द्रापी या अत्क) । बाद में वैदिक साहित्य में उस्निसा या पगड़ी का उल्लेख आया है जिसे राजा, वृत्य तथा कभी कभी स्त्रियां भी पहनती थी।
काशी के आस पास के क्षेत्र में कपास काफी उगायी जाती थी। बुद्ध के जीवन काल में काशी सूती वस्त्रों का मुख्य केंद्र था। सूत कातने वाले तथा कपड़ा बुनने वालों की निपुणता के कारण इन कपड़ों की बुनाई महीन होती थी। मृदु पानी के कारण कपड़ों का विरंजन भी बढ़िया होता था। काशी रेशम उत्पादन के लिये भी प्रसिद्ध थी और आज तक देश के अग्रणी रेशम केंद्रों में से एक है।
कौटिल्य की पुस्तकों से पता चलता है कि धागे, कपड़े, कोट तथा रस्सियां बनाने के लिये राज्य में एक अधीक्षक के अधीन अलग विभाग होता था । कपड़ों के लिये कपास, रेशम, ऊन, सन या अन्य तंतुओं का उपयोग किया जाता था ।