हिन्दू रानियों को भ्रष्ट करने और मंदिरों में गाय की बलि रोज देनेवाले मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर चादर चढाने अजमेर जाते हैं हिन्दू
हिन्दू राजा की बेटी ‘बीबी उमिया’ का अपहरण और उससे मोइनुद्दीन का निकाह
अजमेरवासी ख्वाजा गरीबनवाज़ उर्फ़ मोइनुद्दीन चिश्ती बलपूर्वक हिन्दुओं का इस्लाम में कन्वर्जन कराते थे और उनके शागिर्द यानी शिष्य हिन्दू रानियों का अपहरण करके उपहारस्वरूप उन्हें मोइनुद्दीन चिश्ती को सौंपते थे।मध्ययुगीन लेख ‘जवाहर-ए-फरीदी’ में इस बात का उल्लेख किया गया है कि मोइनुद्दीन चिश्ती ने अजमेर की आना सागर झील (जो कि हिन्दुओं का एक पवित्र तीर्थ स्थल है, पर बड़ी संख्या में गायों का क़त्ल किया) और इस क्षेत्र में गायों के खून से मंदिरों को अपवित्र करने का काम किया था। मोइनुद्दीन चिश्ती के शागिर्द प्रतिदिन एक गाय का वध करते थे और मंदिर परिसर में बैठकर गोमांस खाते थे।
श्रीप्रकाश मिश्र
इतिहासकार एमए खान ने अपनी पुस्तक ‘इस्लामिक जिहाद: एक जबरन धर्मांतरण, साम्राज्यवाद और दासता की विरासत’ (Islamic Jihad: A Legacy of Forced Conversion, Imperialism, and Slavery) में विस्तार से लिखा है कि मोइनुद्दीन चिश्ती, निज़ामुद्दीन औलिया, नसीरुद्दीन चिराग और शाह जलाल जैसे सूफी संत जब इस्लाम के मुख्य सिद्धांतों की बात करते थे, तो वे वास्तव में रूढ़िवादी और असहिष्णु विचार रखते थे, जो कि मुख्यधारा के जनमत के विपरीत था। इस पुस्तक में इस बात का भी जिक्र किया है गया है कि वास्तव में, हिंदुओं के उत्पीड़न का विरोध करने की बात तो दूर, इन सूफियों ने बलपूर्वक हिंदुओं के इस्लाम में कन्वर्जन में भी बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी। यही नहीं, ‘सूफी संत’ मोइनुद्दीन चिश्ती के शागिर्दों ने हिंदू रानियों का अपहरण किया और उन्हें मोईनुद्दीन चिश्ती को उपहार के रूप में प्रस्तुत किया।
मोइनुद्दीन चिश्ती का एक शागिर्द था मलिक ख़ितब। उसने एक हिंदू राजा की बेटी का अपहरण कर लिया और उसे चिश्ती को निकाह के लिए ‘उपहार’ के रूप में प्रस्तुत किया। चिश्ती ने खुशी से ‘उपहार’ स्वीकार किया और उसे ‘बीबी उमिया’ नाम दिया। मोइनुद्दीन चिश्ती, मुइज़-दीन मुहम्मद ग़ोरी की सेना के साथ भारत आए और गोरी द्वारा अजमेर को जीतने से पहले वहाँ गोरी की तरफ से अजमेर के राजा पृथ्वीराज चौहान की जासूसी करने के लिए अजमेर में बस गए थे। यहाँ उन्होंने पुष्कर झील के पास अपने ठिकाने स्थापित किए।
अधिकांश सूफी संत या तो इस्लामिक आक्रांताओं की आक्रमणकारी सेनाओं के साथ भारत आए थे, या इस्लाम के सैनिकों द्वारा की गई कुछ व्यापक विजय के बाद। लेकिन इन सबके भारत आने के पीछे सिर्फ एक ही लक्ष्य था और वह था इस्लाम का प्रचार। इसके लिए उलेमाओं के क्रूरतम आदेशों के साथ गाने-बजाने की आड़ में हिन्दुओं की आस्था पर चोट करने वाले ‘संतों’ से बेहतर और क्या हो सकता था? ‘शांतिपूर्ण सूफीवाद’ का मिथक, कई सदियों तक इस्लामिक ‘विचारकों’ और वामपंथी इतिहासकारों द्वारा खूब फैलाया गया है। वास्तविकता इन दावों से कहीं अलग और विपरीत है। वास्तविकता यह है कि इन सूफी संतों को भारत में इस्लामिक जिहाद को बढ़ावा देने, ‘काफिरों’ के कन्वर्जन और इस्लाम को स्थापित करने के उद्देश्य से लाया गया था।
इसी में एक सबसे प्रसिद्ध नाम आता है ‘सूफी संत’ मोइनुद्दीन चिश्ती (Khwaja Moinuddin Chishti) का, जिन्हें कि हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ के नाम से भी पुकारा जाता है। सूफी संत मोइनुद्दीन चिश्ती का जन्म ईरान में हुआ था, लेकिन उन्हें राजस्थान के अजमेर में दफनाया गया था। ‘काफिरों’ को लेकर सूफीवाद के महानतम विद्वानों का दृष्टिकोण ISIS के दृष्टिकोण से अलग है, यह कहना एकदम गलत है। इसका उदाहरण सूफी विचारधारा के सबसे बड़े प्रतीक माने जाने वाले मोइनुद्दीन चिश्ती और औलिया हैं, जिन्होंने वो काम सदियों पहले कर दिया था, जिसे ISIS और कट्टर इस्लामिक संगठन आज की सदी में कर रहे हैं।
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एमए खान की पुस्तक का अंश
उदाहरण के लिए, सूफी संत मोईनुद्दीन चिश्ती और औलिया इस्लाम के कुछ पहलुओं जैसे- नाच (रक़) और संगीत (सामा) को लेकर उदार थे, जो कि उन्होंने रूढ़िवादी उलेमा के धर्मगुरु से अपनाया, लेकिन एक बार भी उन्होंने कभी हिंदुओं के उत्पीड़न के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया। औलिया ने अपने शिष्य शाह जलाल को बंगाल के हिंदू राजा के खिलाफ जिहाद छेड़ने के लिए 360 अन्य शागिर्दों के साथ बंगाल भेजा था। यह भी एक ऐतिहासिक तथ्य है कि चिश्ती, शाह जलाल और औलिया जैसे सूफी ‘काफिरों’ के खिलाफ जिहाद छेड़ने के लिए भारत आए थे। चिश्ती और उसके चेले प्रतिदिन गाय का वध और मंदिरों को अपवित्र करते थे चिश्ती के शागिर्द।
अना सागर झील का निर्माण ‘राजा अरणो रा आनाजी’ ने 1135 से 1150 के बीच करवाया था। ‘राजा अरणो रा आनाजी’ सम्राट पृथ्वीराज चौहान के पिता थे। मध्ययुगीन लेख ‘जवाहर-ए-फरीदी’ में इस बात का उल्लेख किया गया है कि किस तरह चिश्ती ने अजमेर की आना सागर झील, जो कि हिन्दुओं का एक पवित्र तीर्थ स्थल है, पर बड़ी संख्या में गायों का क़त्ल किया, और इस क्षेत्र में गायों के खून से मंदिरों को अपवित्र करने का काम किया था। मोइनुद्दीन चिश्ती के शागिर्द प्रतिदिन एक गाय का वध करते थे और मंदिर परिसर में बैठकर गोमांस खाते थे।आज इतिहास की किताबों में अजमेर को हिन्दू-मुस्लिम’ समन्वय के पाठ के रूप में तो पढ़ाया जाता है, लेकिन यह जिक्र नहीं किया जाता है कि यह सूफी संत भारत में जिहाद को बढ़ावा देने और इस्लाम के प्रचार के लिए आए थे, जिसके लिए उन्होंने हिन्दुओं के साथ हर प्रकार का उत्पीड़न स्वीकार किया।
मोइनुद्दीन चिश्ती अजमेर का सच
यहाँ तक कि आज भी इन सूफी संतों की वास्तविकता से उलट यह बताया जाता है कि ये क़व्वाली, समाख्वानी, और उपन्यासों द्वारा लोगों को ईश्वर के बारे में बताकर उन्हें मुक्ति मार्ग दर्शन करवाते थे। लेकिन तत्कालीन हिन्दू राजाओं के साथ इनकी झड़प और उनके कारणों का जिक्र शायद ही किसी इतिहास की किताब में मिलता हो। खुद मोइनुद्दीन चिश्ती ने तराइन की लड़ाई में पृथ्वीराज चौहान को पकड़ लिया था और उन्हें ‘इस्लाम की सेना’ को सौंप दिया। लेख में इस बात का प्रमाण है कि चिश्ती ने चेतावनी भी जारी की थी, जिसमें उन्होंने दावा किया था – “हमने पिथौरा (पृथ्वीराज) को जिंदा पकड़ लिया है और उसे इस्लाम की सेना को सौंप दिया है।” मोइनुद्दीन चिश्ती का एक शागिर्द था मलिक ख़ितब। उसने एक हिंदू राजा की बेटी का अपहरण कर लिया और उसे चिश्ती को निकाह के लिए ‘उपहार’ के रूप में प्रस्तुत किया। चिश्ती ने खुशी से ‘उपहार’ स्वीकार किया और उसे ‘बीबी उमिया’ नाम दिया।
Moinuddin Chisti had a follower named Malik khitab.
He abducted daughter of a Hindu Raja and presented her as a gift to Chishti.
Chishti gladly accepted the gift and gave her the name “Bibi Umiya”
(Snippet:Translation of Sufi Biography Siyar Al Aqtab) pic.twitter.com/ljxO5a5M1D — True Indology (@TIinExile) June 18, 2020
लेकिन संयोगवश ‘सूफी संत’ मोईनुद्दीन चिश्ती के बारे में इतिहास में दर्ज ये तथ्य बॉलीवुड की फिल्मों, गानों, सूफी संगीत और वामपंथी इतिहास से एकदम अलग हैं।
सिर्फ इस्लाम की स्थापना था उलेमा और सूफी संतों का लक्ष्य
अपनी पुस्तक ‘भारत में मुस्लिम शासन की विरासत’ (Legacy of Muslim Rule in India) में इतिहासकार केएस लाल ने लिखा है, “मुस्लिम मुशाहिक (सूफी आध्यात्मिक नेता) उलेमाओं की तरह ही धर्मांतरण को लेकर उत्सुक थे, और सूफी ‘संतों’ को लेकर आम धारणा के विपरीत, हिंदुओं के प्रति दयालु होने के स्थान पर, वे चाहते थे कि यदि इस्लाम अपनाने से इनकार करते हैं तो उन्हें दूसरे दर्जे के नागरिक के तौर पर रखा जाए।”