पुलिस से मदद मांगी तो चिश्तियों ने लड़कियों के फोटो सार्वजनिक कर दिए
(अजमेरशरीफ के बदमाश चिश्ती भाग 3)
राजेश झा
बलात्कार के बाद फारुख और नफीस ने ब्लैकमेलिंग शुरू की ,दोनों ने गीता को अन्य लड़कियों से उन्हें मिलवाने के लिए मजबूर किया। कभी-कभी वह उन्हें अपने ‘भाइयों’ के रूप में मिलवाती थी ताकि उनका विश्वास बन सके और वे फ़ॉय सागर रोड पर स्थित उनके फार्महाउस या फारूक के बंगले में होने वाली ‘पार्टियों’ में स्वेच्छा से शामिल हों।इनमें से कई महिलाओं का एक या कई पुरुषों द्वारा यौन उत्पीड़न किया गया था। बलात्कारी आमतौर पर बलात्कार की तस्वीरें भी लेते थे क्योंकि शर्म और ब्लैकमेल इन पीड़िताओं की चुप्पी बरक़रार रखने की सबसे विश्वसनीय गारंटी थी। अजमेर दरगाह थाना के थानेदार दलबीर सिंह बताते हैं – ‘मीडिया ने यह कहकर इस मामले को सनसनीखेज बना दिया कि ये सब आईएएस-आईपीएस अधिकारियों की बेटियां हैं। उनमें से एक राजस्थान सिविल सेवा अधिकारी की बेटी थी और दूसरी एक कृषि अधिकारी की। ’
यहां परेशान होने वाली बात यह है कि, गीता की गवाही के अनुसार सामूहिक बलात्कार के इस दौर के शुरुआती दिनों में, उसने और एक अन्य पीड़िता कृष्णाबाला* ने एक पुलिस कांस्टेबल से संपर्क किया था, जिसने उन्हें अजमेर पुलिस की विशेष शाखा में काम करने वाले एक अधिकारी से भी मिलवाया। उन्होंने पीड़िताओं को उनकी ब्लैकमेल वाली तस्वीरों को वापस प्राप्त करने में मदद करने का वादा किया, लेकिन जल्द ही इन महिलाओं को इस बात के लिए धमकी भरे फोन आए और उनसे पूछा गया कि उन्होंने पुलिस से संपर्क क्यों किया? गीता ने दावा किया कि इस कांस्टेबल ने एक बार उसे और कृष्णाबाला को दरगाह क्षेत्र से तस्वीरें बरामद करने के लिए अपने साथ जाने के लिए कहा था। जब पुलिसकर्मी कुछ दूरी पर खड़ा था, तभी इस गिरोह के सदस्यों में से एक, मोइजुल्लाह उर्फ पुत्तन इलाहाबादी, चहलकदमी करते हुए उनके पास आया और उसने गुप्त रूप से कहा, कि ‘जो खेल वे खेल रहीं हैं वह एक ऐसा खेल था जिसे उन्होंने बहुत पहले ही खेल रखा है।वे तस्वीरें कभी वापस नहीं की गईं।
पत्रकार संतोष गुप्ता याद करते हए कहते हैं, ‘दरगाह पर आने वाले लोग उनके हाथ चूमते थे। उन्होंने इस मजहबी ताकत का इस्तेमाल राजनीतिक प्रभाव पाने के लिए किया। एसएचओ से लेकर एसपी तक सब उन्हें एफआईआर पर बातचीत करने या अपील जारी करने के लिए फोन करते थे। कोई उन्हें न नहीं कह सकता था। ’इस बीच, इन महिलाओं की सबसे बड़ी आशंका सच हो गई।उस फोटो लैब (जहां यौन उत्पीड़न की ये तस्वीरें छापी जाती थीं) के कुछ कर्मचारियों ने उन तस्वीरों को प्रसारित कर दिया, जिससे उनके प्रति हुआ दुर्व्यवहार और भी बढ़ गया।अगर इसका कोई अच्छा नतीजा हुआ तो वह यह था कि सारा मामला लोगों के सामने आ गया।
संतोष गुप्ता के अनुसार, पुरुषोत्तम नामक एक रील डेवलपर (तस्वीरें साफ़ करने वाला) ने जब अपने पड़ोसी देवेंद्र जैन को एक अश्लील पत्रिका में छपीं तस्वीरों को देखते हुए पाया तो उसने यौन शोषण की इन तस्वीरों के बारे में डींग मारी। पुरुषोत्तम ने स्पष्ट रूप से उपहास करते हुए कहा था : ‘यह तो कुछ भी नहीं है. मैं तुम्हें असली चीजें दिखाऊंगा।‘ इस ‘असली चीज’ ने देवेंद्र के कान खड़े कर दिए. उसने इन तस्वीरों की प्रतियां बनाईं और फिर उन्हें ‘दैनिक नवज्योति’ तथा विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के स्थानीय समूह को भेज दिया. इसके बाद विहिप कार्यकर्ताओं ने ये तस्वीरें पुलिस को दीं, जिसने उनकी जांच शुरू की।