RSS

वे पंद्रह दिन…06 अगस्त,1947

इसी बीच उधर सिंध प्रांत के हैदराबाद में गुरूजी का भोजन समाप्त हो चुका था, और वे वहां के स्वयंसेवकों के साथ बातचीत कर रहे थे. आबाजी ने उन्हें एक-दो बार टोका भी कि वे कृपया थोड़ी देर आराम कर लें, निद्रा ले लें. परन्तु सिंध प्रान्त के उस विषाक्त वातावरण को देखते हुए गुरूजी के लिए निद्रा तो दूर, थोड़ी देर लेटना भी संभव नहीं था.

हैदराबाद के स्वयंसेवक पिछले वर्ष नेहरू जी के हैदराबाद दौरे का किस्सा सुना रहे थे.

नेहरू जी ने पिछले वर्ष, अर्थात् 1946 में, हैदराबाद में एक आमसभा लेने का सोचा था. उस समय तक विभाजन वाली कोई बात नहीं थी. सिंध प्रांत में मुसलमानों की संख्या गांवों में ही अधिक थी. कराची को छोड़कर लगभग सभी शहर हिन्दू बहुल थे. लरकाना, और शिकारपुर में 63% हिन्दू जनसंख्या थी, जबकि हैदराबाद में लगभग एक लाख हिन्दू थे, अर्थात 70% से भी अधिक हिन्दू जनसंख्या थी. इसके बावजूद मुस्लिम लीग की तरफ से देश के विभाजन की मांग वाला आंदोलन जोर-शोर से चल रहा था, और यह आंदोलन पूरी तरह हिंसक था. इसीलिए केवल 30% होने के बावजूद मुसलमानों ने शहर पर अपना दबदबा कायम कर लिया था. सभी सार्वजनिक स्थानों पर हिंदुओं के विरोध में बड़े-बड़े बैनर लगे हुए थे. सिंध प्रांत के मंत्रिमंडल में मुस्लिम लीग का मंत्री खुर्रम तो सरेआम अपने भाषणों में हिंदुओं की लड़कियां उठा ले जाने की धमकियां दे रहा था.

इन दंगाई मुसलमानों की गुंडागर्दी का मुकाबला करने में केवल एक ही संस्था सक्षम सिद्ध हो रही थी, और वह थी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ. हैदराबाद में संघ शाखाओं की अच्छी खासी संख्या थी. प्रांत प्रचारक राजपाल पुरी इस क्षेत्र में नियमित रूप से प्रवास पर आते रहते थे.

इसीलिए जब कांग्रेस कार्यकर्ताओं को यह पता चला कि हैदराबाद में 1946 में जवाहरलाल नेहरू की होने वाली सभा को मुस्लिम लीग के गुंडे बर्बाद करने वाले हैं तथा नेहरू की हत्या की योजना बना रहे हैं, तब उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए. इस समय सिंध के वरिष्ठ कांग्रेस नेता चिमनदास और लाला कृष्णचंद ने संघ के प्रांत प्रचारक राजपाल पुरी से संपर्क किया और नेहरू की सुरक्षा के लिए संघ स्वयंसेवकों की मदद मांगी. राजपाल जी ने सहमति जताई और मुस्लिम लीग की चुनौती स्वीकार की.

इसके बाद ही हैदराबाद में नेहरू जी की एक विशाल आमसभा हुई, जिसमें संघ के स्वयंसेवकों की सुरक्षा व्यवस्था एकदम चौकस थी. उन्हीं के कारण इस आमसभा में कोई गड़बड़ी नहीं हुई ना ही कोई व्यवधान उत्पन्न हुआ. (सन्दर्भ :- ‘Hindus in Partition – During and After’ , www.revitalization.blogspot.in – V. Sundaram, Retd IAS Officer)

गुरूजी के सान्निध्य में हैदराबाद में स्वयंसेवकों का बड़े पैमाने पर एकत्रीकरण हुआ. लगभग दो हजार से अधिक स्वयंसेवक उपस्थित थे. पूर्ण गणवेश में उत्तम सांघिक संपन्न हुआ. इसके पश्चात गुरूजी अपना उद्बोधन देने के लिए खड़े हुए. उनके अधिकांश मुद्दे वही थे जो उन्होंने कराची के भाषण में कहे थे. अलबत्ता गुरूजी ने इस बात पर बल दिया कि “नियति ने हमारे संगठन पर एक बड़ी जिम्मेदारी सौंप दी है. परिस्थितियों के कारण राजा दाहिर जैसे वीरों के इस सिंध प्रांत में हमें अस्थायी और तात्कालिक रूप से पीछे हटना पड़ रहा है. इस कारण सभी हिन्दू-सिख बंधुओं को उनके परिवारों सहित सुरक्षित रूप से भारत ले जाने के लिए हमें अपने प्राणों की बाजी लगानी है.”

“इस बात पर हमें पूरा विश्वास और श्रद्धा है कि गुण्डागर्दी और हिंसा के सामने झुककर जो विभाजन स्वीकार किया गया है, वह कृत्रिम है. आज नहीं तो कल हम पुनः अखंड भारत बनेंगे. लेकिन फिलहाल हमारे सामने हिन्दुओं की सुरक्षा का काम अधिक महत्त्वपूर्ण और चुनौती भरा है.” अपने बौद्धिक का समापन करते हुए गुरूजी ने संगठन का महत्त्व प्रतिपादित किया. “अपनी संगठन शक्ति के बल पर ऐसे अनेक असाध्य कार्य हम संपन्न कर सकते हैं, इसलिए धैर्य रखें. संगठन के माध्यम से हमें अपना पुरुषार्थ दिखाना है…”.

इस बौद्धिक के पश्चात गुरूजी स्वयंसेवकों से भेंट करते जा रहे थे. उन्हें हालचाल पूछ रहे थे. ऐसे अस्थिर, विपरीत एवं हिंसक वातावरण में भी गुरूजी के मुख से निकले शब्द स्वयंसेवकों के लिए बहुमूल्य और धैर्य बढ़ाने वाले साबित हो रहे थे… उनका उत्साह बढ़ाने वाले शब्द थे वे.

Back to top button