Opinion

सामाजिक समरसता का त्यौहार; रक्षाबंधन

भारत में वैसे तो पूरे वर्ष भर ही कई प्रकार के धार्मिक, आध्यात्मिक, सामाजिक त्यौहार मनाए जाते हैं परंतु रक्षाबंधन का त्यौहार विशेष महत्व का त्यौहार माना जाता है। भारतीय सनातन हिंदू धर्म संस्कृति के अनुसार रक्षाबन्धन का त्योहार श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह त्योहार विशेष रूप से बहन भाई को स्नेह की डोर में बांधता है। इस दिन बहन अपने भाई के मस्तक पर टीका लगाकर रक्षासूत्र बांधती है, जिसे राखी भी कहा जाता है। रक्षाबंधन एक ऐसा पावन पर्व है जो बहन एवं भाई के पवित्र रिश्ते को पूरा आदर और सम्मान देता है।श्रावण (सावन) में मनाये जाने के कारण रक्षाबंधन को श्रावणी (सावनी) या सलूनो भी कहते हैं। रक्षाबन्धन में राखी या रक्षासूत्र का सबसे अधिक महत्त्व है। रक्षाबंधन के दिन बहने अपने भाईयों की तरक्की के लिए भगवान से प्रार्थना करती हैं। राखी सामान्यतः बहनें अपने भाईयों को बांधती हैं परन्तु ब्राह्मणों, गुरुओं, सम्मानित सम्बंधियों (जैसे पुत्री द्वारा पिता को) और प्रतिष्ठित व्यक्तियों को भी राखी बांधी जाती है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा पूरे वर्ष भर में मनाए जाने वाले 6 महत्वपूर्ण उत्सवों (गुरु पूजन, शस्त्र पूजन (दशहरा), हिन्दू सम्राज्य दिन, रक्षाबंधन, वर्ष प्रतिपदा एवं मकर संक्रान्ति) में रक्षाबंधन भी शामिल है।संघ द्वारा रक्षाबंधन के त्यौहार को सामाजिक समरसता को मजबूत करने एवं नि:शेष हिन्दू समाज को संगठित करने के उद्देश्य से मनाया जाता है।

रक्षाबंधन का त्यौहार हिंदू, सिक्ख एवं जैन समाज के परिवार उत्साह पूर्वक मनाते हैं और इस अनूठे त्यौहार के दिन समाज में सभी परिवार एकता के सूत्र में बंधते दिखाई देते हैं तथा आपस में राखी, उपहार और मिठाई बांटकर एक दूसरे की रक्षा करने की शपथ लेते हैं एवं अपना स्नेह और प्यार साझा करते है।

रक्षाबंधन उत्सव सामाजिक समरसता आधारित त्यौहार माना जाता है और यह सुरक्षा की भावना को विकसित करता है। रक्षा सूत्र केवल भाई द्वारा बहिन की रक्षा के लिए नहीं है बल्कि हिंदू, सिक्ख एवं जैन समाज के सभी वर्गों की एक दूसरे की रक्षा के लिए भी है। अब तो प्रकृति संरक्षण हेतु वृक्षों को राखी बांधने की परम्परा भी प्रारम्भ हो गयी है।

रक्षाबंधन का पावन पर्व मनाए जाने का वर्णन कई पौराणिक कथाओं में भी मिलता है। कहा जाता है कि एक बार राजा बलि रसातल में चला गया तब राजा बलि ने अपनी भक्ति के बल पर भगवान विष्णु से दिन रात अपने सामने रहने का वचन ले लिया। भगवान विष्णु के वापिस घर न लौटने से परेशान देवी लक्ष्मी जी को नारद जी ने एक उपाय बताया। उस उपाय का पालन करते हुए देवी लक्ष्मी जी ने राजा बलि के पास जाकर उसे रक्षासूत्र बांधकर अपना भाई बनाया और अपने पति भगवान विष्णु को अपने साथ घर ले आयीं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी। इस प्रकार इस दिन को रक्षाबंधन के रूप में मनाया जाने लगा।

भारतीय पुराणों में भी एक वर्णन मिलता है कि देव और दानवों के बीच जब युद्ध शुरू हुआ तब दानव हावी होते नजर आने लगे। भगवान इन्द्र देव घबरा कर बृहस्पति गुरु जी के पास गये। वहां बैठी इन्द्र देव की पत्नी इंद्राणी देवी ने भी पति की चिंता को सुना और उन्होंने रेशम का धागा मन्त्रों की शक्ति से पवित्र करके अपने पति के हाथ पर बांध दिया। संयोग से वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था। इसके बाद इंद्र देव ने दानवों को युद्ध में परास्त कर दिया। ऐसा माना जाता है कि इन्द्र देव इस युद्ध में इसी पवित्र धागे की मन्त्र शक्ति के बल पर ही विजयी हुए थे। उसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन यह पवित्र धागा रक्षासूत्र के रूप में बांधने की परम्परा चली आ रही है। यह पवित्र रक्षसूत्र धन, शक्ति, हर्ष और विजय देने में पूरी तरह से समर्थ माना जाता है।

इसी प्रकार इतिहास मे श्रीकृष्ण एवं द्रौपदी की भी एक कहानी प्रसिद्ध है। जिसके अनुसार, एक युद्ध के दौरान श्रीकृष्ण की उंगली घायल हो गई थी और द्रौपदी ने अपनी साड़ी के पल्लू का टुकड़ा काटकर तुरंत श्रीकृष्ण की घायल उंगली पर बांध दिया था। ऐसा कहा जाता है कि इस उपकार के बदले श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को किसी भी संकट मे उसकी सहायता करने का वचन दिया था। स्कन्ध पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत में वामनावतार नामक कथा में भी रक्षाबन्धन त्यौहार का प्रसंग मिलता है।

प्राचीन काल में भारत में जब स्नातक अपनी शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात गुरुकुल से विदा लेता था तो वह आचार्य का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उसे रक्षासूत्र बांधता था जबकि आचार्य अपने विद्यार्थी को इस कामना के साथ रक्षासूत्र बांधता था कि उसने जो ज्ञान प्राप्त किया है वह अपने भावी जीवन में उसका समुचित ढंग से प्रयोग करे ताकि वह अपने ज्ञान के साथ-साथ आचार्य की गरिमा की रक्षा करने में भी सफल हो। इसी परम्परा के अनुरूप आज भी किसी धार्मिक विधि विधान से पूर्व पुरोहित यजमान को रक्षासूत्र बांधता है और यजमान पुरोहित को। इस प्रकार दोनों एक दूसरे के सम्मान की रक्षा करने के लिये परस्पर एक दूसरे को अपने बन्धन में बांधते हैं।

रक्षाबंधन का त्यौहार पूरे भारत वर्ष में अपार उत्साह के साथ मनाया जाता है। परंतु, विभिन्न प्रदेशों में इसे अलग अलग नामों से पुकारा जाता है।राजस्थान में रक्षाबंधन के दिन रामराखी और चूड़ाराखी या लूंबा बांधने की परम्परा है। रामराखी सामान्य राखी से भिन्न होती है और इसमें लाल डोरे पर एक पीले छींटों वाला फुंदना लगा होता है। रामराखी केवल भगवान को ही बांधी जाती है। अमरनाथ की अतिविख्यात धार्मिक यात्रा गुरु पूर्णिमा से प्रारम्भ होकर रक्षाबन्धन के दिन सम्पूर्ण होती है।

भारत में वर्तमान परिस्थितियों के देखते हुए रक्षाबंधन त्यौहार का महत्व और भी बढ़ जाता है। देश में भारतीय सनातन हिंदू संस्कृति पर लगातार हमले हो रहे हैं। जिस प्रकार अंग्रेजों एवं मुगलों ने अपने शासनकाल में भारतीय सनातन हिंदू संस्कृति को नुक्सान पहुंचाया था एवं हिंदुओं को अपने ही धर्म से विमुख करने के भरपूर प्रयास किए थे। हालांकि, इन कुत्सित प्रयासों में वे पूर्णतः विफल रहे थे, परंतु आज फिर कुछ विदेशी ताकतें एवं आतंकवादी संगठन, भारत के ही कुछ भटके हुए नागरिकों के साथ मिलकर भारत में अव्यवस्था फैलाने का भरपूर प्रयास कर रहे हैं।

रक्षाबंधन जैसे पवित्र त्यौहार के दिन हम सभी भारतीय नागरिकों को, एक दूसरे को, पवित्र रक्षासूत्र बांधकर एक दूसरे की रक्षा करने का संकल्प लेने की आज महती आवश्यकता है। साथ ही, रक्षाबंधन त्यौहार को देश में सामाजिक समरसता स्थापित करने के पवित्र उत्सव के रूप में मनाये जाने की सख्त आवश्यकता है। रक्षाबंधन त्यौहार के माध्यम से आगे आने वाली अपनी युवा पीढ़ी को  भारतीय परंपराओं एवं संस्कारों से भी अवगत कराया जाना चाहिए।

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