Christianity

हिंदुत्व के रक्षापथ पर हुतात्मा हुए स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती

साधुओं के हत्यारे ईसाईयों की रक्षा में खड़ी थी तत्कालीन केंद्र – सरकार

गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य द्वारा “विधर्मी कुचक्र विदारण महारथी” की उपाधि से विभूषित स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती को 23 अगस्त, 2008 की रात ईसाई मिशनरियों और माओवादियों ने षड्यंत्र कर निर्दयतापूर्वक उनके चार शिष्यों सहित मरवा दिया क्योंकि वे असहाय वनवासियों के ईसाइयत में कन्वर्जन की राह में बड़ी बाधा थे।यह हत्याकांड उन ईसाईयों ने किया जो स्वयं को ईसा के अनुयायी कहते हैं और सेवा -त्याग शांति एवं क्षमा की बात करते नहीं अघाते।
स्वामी लक्ष्मणानंद वनवासी बहुल उड़ीसा के कंधमाल जिले में स्थानीय वनवासियों के कल्याण के लिए निरंतर काम कर रहे थे।इससे पहले उनपर 8 बार प्राणघातक हमले हो चुके थे किन्तु वे सनातन धर्म की रक्षा के मार्ग से डिगे नहीं।उड़ीसा धर्म की स्वतंत्रता अधिनियम 1967 को लागू करने में प्रशासन की विफलता तथा गोहत्या निवारण अधिनियम लागू करने में प्रशासन की विफलता के कारण यह हत्याकांड हुआ।

ईसाई मिशनरियों के कुचक्रों को विफल करने वाले स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती को गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य ने “विधर्मी कुचक्र विदारण महारथी” की उपाधि से सम्मानित किया था। वे प्रायः कहा करते थे कि जहां आंसू या खून गिरता है वह क्षेत्र कभी समृद्ध नहीं होता। वे गोहत्या के विरुद्ध थे। उन्होंने कंधमाल में जनजातियों को उनके मूल विश्वास में वापस लाने के लिए अपने स्तर पर अनेक प्रयास किये। “विधर्मी कुचक्र विदारण महारथी” स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती का मुख्य लक्ष्य था:

  1. जनजातीय युवाओं को मजबूत, निडर, शिक्षित और आर्थिक रूप से समृद्ध बनाना।
  2. जनजाति समाज को उनकी धार्मिक आस्थाओं के प्रति दृढ़ बनाना, कन्वर्जन पर रोक लगाना और कन्वर्ट हो गए लोगों को फिर से घरवापसी करवाना।
  3. गो-रक्षा
    इसके लिए उन्होंने जिले भर के गांवों की पदयात्राएं कीं। लोगों को जोड़ा और जनजाति समाज के लाखों लोगों के जीवन में स्वाभिमान की भावना जगाई। उन्होंने सैकड़ों गांवों में श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन किया। 1986 में स्वामीजी ने सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध जनजागरूकता पैदा करने, गोरक्षा को बढ़ावा देने और जनजाति समाज में चेतना व भक्ति जागृत करने के लिए भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली।

चौरासी वर्षीय स्वामी लक्ष्मणानंद और उनके शिष्यों की हत्या के बाद पूरे कंधमाल जिले में हड़कंप मच गया।हज़ारों लोगों ने हुतात्माओं के शव के साथ जुलुस निकाला किन्तु ईसाई मिशनरियों ने षड्यंत्र कर अपने कुछ घरों में आग लगाकर स्वयं को चर्चों में बंद कर लिया और उल्टा विमर्श चलाकर ओडिशा सरकार को विवश करके लगभग 500 हिन्दुओं को ही गिरफ्तार करवा दिया।तब चर्चों और अन्य ईसाई संगठनों को राहत के रूप में लाखों रुपये प्रदान किये गए थे,हालाँकि उन्हें कोई क्षति नहीं पहुंची थी।ईसाई उग्रवादियों ने रात 8 बजे श्री कृष्ण जन्मोत्सव के अवसर पर स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती, भक्तिमयी माता, अमृतानंद बाबा, किशोर बाबा और कन्याश्रम के संरक्षक पुरुबग्रंथी की निर्ममता पूर्वक हत्या कर दी थी। 5 लोगों की गोली मारकर हत्या करने के बाद ईसाई उग्रवादियों ने उन पांचों के शव पर कुल्हाड़ी से प्रहार कर सर अलग किया। इससे पहले 10 से 21 अगस्त, 2008 के बीच स्वामीजी को अपहरण और मौत की धमकी देने वाले 3 पत्र मिले थे।

ओडिशा के वनाच्छादित फूलबनी (कंधमाल) जिले के ग्राम गुरजंग में 1924 में जन्मे स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती ने जनजाति समाज के लोगों के सामाजिक और धार्मिक विकास के अलावा उन्हें सशक्त बनाने के लिए चालीस वर्षों से अधिक समय तक काम किया। उन्होंने कंधमाल के दूरस्थ स्थान चकपाद में संस्कृत पढ़ाने के लिए गुरुकुल पद्धति पर आधारित एक विद्यालय, महाविद्यालय और कन्या -आश्रम की स्थापना की एवं बिरुपाक्ष्य, कुमारेश्वर और जोगेश्वर मंदिरों का जीर्णोद्धार किया। उन्होंने चकपाद को अपनी गतिविधियों का केन्द्र बनाया क्योंकि वहाँ प्रसिद्ध बिरूपाख्या मंदिर है। इसके बाद उन्होंने जलेस्पट्टा में कन्या आश्रम, तुलसीपुर में सेवा स्कूल, कटक जिले के बांकी और अंगुल जिले के पाणिग्रोला में एक आश्रम की स्थापना की। चकपाद का प्राचीन नाम एकचक्रनगरी है। यह नाम रामायण से जुड़ा है। यहां एक शिव मंदिर है, जहां लिंग दक्षिण की ओर झुका हुआ है और उस स्थान के सभी वृक्ष भी दक्षिण की ओर झुके हुए हैं। दुर्भाग्य है कि आज भी प्रशासनिक तंत्र ऐसा है कि उसका पूरा इकोसिस्टम ‘हिन्दू विरोधी वर्ग ‘ की और झुका हुआ है। पानो वनवासी के सदस्यों को बल, प्रलोभन और धोखाधड़ी के माध्यम से ईसाइयत में परिवर्तित कर दिया गया है और कन्वर्टेड लोगों को आरक्षण का लाभ देने के लिए एक अभियान चल रहा था। चर्चों ने क्षेत्र के अन्य गैर-परिवर्तित अनुसूचित जनजातियों से संबंधित भूमि के बड़े भूभाग को अपने नियंत्रण में ले लिया था।जनजातीय समाज को कन्वर्ट कराने के लिए ईसाई मिशनरी जनजातीय समाज की संस्कृति और विश्वासों को बदलने के प्रयास कर रहे थे। स्वामीजी उनकी गतिविधियों में बाधक सिद्ध हो रहे थे। वंचित बंधुओं के मध्य स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती जी ने सनातन धर्म के जागरण के लिए समाज बंधुओं को भय, लोभ,लालच से दूर रहने को कहा था।इससे ईसाई मत में मंतातरण करने में लगे विधर्मियों और माओवादियों को अपना लक्ष्य पूरा करने में निरंतर मुंह की खानी पड़ रही थी। वे अपने जीवनकाल में समस्त सनातन धर्म के अनुयायियों को एक करने का प्रयास करते रहे। उन्होंने ईसाई मत में मतांतरित हजारों सनातन अनुयायियों को सनातन धर्म में वापस दीक्षित किया था।

25 अगस्त से 1 सितंबर के बीच स्वामी जी की हत्या में मिशनरियों की भूमिका को छुपाने के लिए कई ईसाइयों ने अपने घरों को स्वयं आग लगा दी और चर्चों में स्थानांतरित हो गए। इसके बाद ओड़ीशा में बड़ी संख्या में हिंदुओं की अंधाधुंध गिरफ्तारी हुई। ईसाइयों द्वारा बड़े पैमाने पर झूठा और दुर्भावनापूर्ण अभियान चलाया गया। पोप बेनेडिक्ट XVI ने कंधमाल में ईसाइयों की कथित हत्या की निंदा जारी की। 3 सितंबर को बिशप राफेल चेनाथ ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की और राज्य सरकार द्वारा ओडिशा में किसी धरना -प्रदर्शन एवं जुलुस पर रोक लगवा दी। 5 सितंबर को पुलिस ने 453 निर्दोष हिंदुओं को गिरफ्तार किया जिसके विरोध में 6 सितंबर को हजारों साधु भुवनेश्वर में इकट्ठे हुए और उन्होने अपनी गिरफ्तारी दी।

तत्कालीन केंद्र सरकार द्वारा स्वामीजी की हत्या पर कोई बयान नहीं दिया गया उलटे कंधमाल के ईसाइयों के पक्ष में वक्तव्य जारी किया।उस समय के केंद्रीय गृह मंत्री ने ईसाई बस्तियों और राहत शिविरों का दौरा किया लेकिन आश्रम जाने की आवश्यकता नहीं समझी। केन्द्र और राज्य सरकार दोनों ने घटनाओं के बाद कथित रूप से प्रभावित ईसाई परिवारों को वित्तीय सहायता प्रदान की जबकि हिंदुओं को फूटी कौड़ी भी नहीं दी गई।दोषियों (ईसाई उग्रवादियों) की गिरफ्तारी और उनके द्वारा रखे गए अवैध हथियारों की जांच तथा उन्हें अपने नियंत्रण में लेने के लिए सरकार या प्रशासन द्वारा कोई प्रयास नहीं किए गए।स्वामी जी की हत्या में ईसाई गैर सरकारी संगठनों की भूमिकाओं की जांच नहीं की गई।सरकार का रवैया ईसाइयों की रक्षा और हिंदुओं को प्रताड़ित करने का था।सैकड़ों हिंदुओं को गिरफ्तार किया गया लेकिन बहुत कम ईसाइयों से पूछताछ की गई।

स्वामी लक्ष्मणानंद की हत्या के बाद 23 अगस्त की रात को ही अनेक जगहों पर रस्ते रोके गए और कई जगहों पर विरोध प्रदर्शन हुए।प्रशासन ने जलेस्पेटा में कर्फ्यू लगा दिया। 24 अगस्त: लोगों ने मृत साधुओं के शव के साथ जुलूस निकाले। दबाव में उड़ीसा सरकार ने न्यायिक जांच के आदेश दिए। 25 अगस्त को ओडिशा में राज्य व्यापी बंद का आह्वान किया गया था । कई जगहों से कड़ी प्रतिक्रियाएं आईं। चकपाद में स्वामीजी का अंतिम संस्कार जुलूस निकाला गया।
28 अगस्त को पूरे देश में कंधमाल में अत्याचारों के विरोध में ईसाई शिक्षण संस्थान बंद रहे।

स्वामीजी ने ईसाई मिशनरियों द्वारा अवैध रूप से भूमि कब्जा करने के षडयंत्र को उजागर किया और जनजाति उत्थान गतिविधियों द्वारा उन ईसाई मिशनरियों को चुनौती दी जो असहाय जनजातियों को कन्वर्ट करने में लगे थे।स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती ने अपनी सामाजिक -सांस्कृतिक व आर्थिक गतिविधियों के माध्यम से कंधमाल के लोगों के जीवन में आमूल चूल परिवर्तन ला दिया था। उन्होंने कक्षा में छात्रों को व्याकरण और खेतों में अच्छी खेती की तकनीक सिखाई। कटिंगिया में सब्जी सहकारी समिति भी बनाई। उनके इन प्रयासों से स्थानीय लोगों की आर्थिक स्थिति में काफी सुधार हुआ। संयुक्त वन प्रबंधन प्रणाली जिसे सरकार ने बहुत बाद में शुरू किया, उसे स्वामीजी ने 1970 में ही शुरू कर दिया था। उन्होंने कई स्थानों पर वनवासी देव स्थान (धर्माणीपेनू) की स्थापना की और उनका जीर्णोद्धार किया। इसी तरह उन्होंने गजपति और कंधमाल जिले से होते हुए एक रथयात्रा शुरू की, जिसके दौरान हजारों वनवासी अपनी आस्था व्यवस्था में वापस जाकर उसका पालन करने के लिए प्रेरित हुए।

स्वामी जी को कन्वर्जन के काम में बाधा मानते हुए ईसाई मिशनरियों ने 1970 से दिसंबर 2007 तक उन पर 8 बार हमला किया। इन हमलों के बावजूद स्वामी जी जनजाति समाज को ईसाइयत में कन्वर्जन के विरुद्ध जागरूक करते रहे। अंतत: वे ईसाई मिशनरियों के षड्यंत्र के शिकार हो ही गए।

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