वामपंथी -इस्लाम- ईसाई गठजोड़ सिखों को हिन्दू से अलग बताते नहीं थकते और तरह -तरह से इसके प्रयास करते रहते हैं जबकि सिख सम्प्रदाय के सर्वाधिक प्रतिष्ठित धर्मग्रन्थ ‘श्री गुरु ग्रन्थ साहिब’ इस बात का सबसे बड़ा प्रमाण है कि सिख मूलतः हिन्दू धर्म का अंश और महत्वपूर्ण अंग हैं। इसका प्रथम संकलन वर्ष 1604 के भाद्र शुक्ल प्रतिपदा को अमृतसर के हरमंदिर साहेब गुरुद्वारा में पांचवें गुरु अर्जुन देव जी ने प्रकाशित किया जिसमें कुल पंक्तियों की संख्या – 26852 तथा कुल शब्दों की संख्या – 398697 है और सबसे अधिक बार दोहराया जाने वाला शब्द “हरि” है जिसका उल्लेख 9288 बार आया है। इतना ही नहीं ‘श्री गुरुग्रंथ साहिब ‘में ‘राम’ का 2533 बार , ‘प्रभु’ का 1371 बार , ‘गोपाल’ का 491 बार ,’गोविन्द’ का 475 बार , ‘नारायण’ का 89 बार, ‘परमात्मा’ का 324 बार , ‘कर्ता’ का 228 बार, ‘ठाकुर’ का 216 बार , ‘दाता’ का 151 बार ,’परमेश्वर’ का 139 बार , ‘मुरारी’ का 97 बार , ‘अन्तर्यामी’ का 61 बार, ‘जगदीश’ का 60 बार , ‘सतनाम’ 59 बार , ‘मोहन’ का 54 बार , तथा ‘भगवान’ का उल्लेख 30 बार है। ये सभी नाम हिन्दू धर्म के ग्रंथों – लोककथाओं एवं लोकगीतों से आये हैं।
सिख पंथ की स्थापना 15 वीं शताब्दी में गुरु नानक ने की जब तलवार के बल पर हिन्दुओं को जबरन मुसलमान बनाया जा रहा था। उस समय सिख धर्म उनके इस अत्याचार के विरोध में खड़ा हुआ। गुरु नानक पहले व्यक्ति थे जिन्होने बाबर के विरुद्ध आवाज उठायी थी। सिख धर्म अत्याचार के प्रतिकार, ईश्वर-भक्ति, और सबकी समानता का अनूठा संगम है। सिख पंथ को हिन्दू धर्म का अभिन्न अंग बताते हुए दसवें और अंतिम गुरु गोबिन्द सिंह कहते हैं कि “सकल जगत में खालसा पंथ गाजे, जगे धर्म हिंदू सकल भंड भाजे।
गुरुग्रंथ साहिब में गुरु नानक कहते हैं- ‘बाबरवाणी फिरी गई कुईरू ना रो खाई’.जिसका मतलब है कि बाबर का साम्राज्य फैल रहा है. जुल्म की हद ये है कि शहज़ादियों तक ने भी खाना नहीं खाया है। बाबर के ऐसे किस्सों के संग्रह को बाबरवाणी कहा जाता है. इसमें नानक ने बाबर के आक्रमणों का गंभीर आकलन किया है ( देखें https://hindi.news18.com/photogallery/knowledge/when-mughal-emperor-babur-met-founder-of-sikhism-guru-nanak-2-1871509-page-4.html) । जब 1526 में बाबर ने दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी को हराकर मुगल वंश की नींव रखी उसी दौर में गुरु नानक यात्रा पर थे। वे बाबर के आक्रमण के चश्मदीद थे. शहर के बाकी बाशिंदो की तरह, गुरु नानक को भी क़ैदखाने में रखा गया था. क़ैद होने के बाद भी गुरु नानक ने कीर्तन बंद नहीं किए थे।
बाबरगाथा में नानकदेव की चार रचनाएं संग्रहीत हैं , पहले चरण में नानकदेव ने बाबर के हमलावरों की ओर से महिलाओं पर अत्याचार का जिक्र किया है. जिसमें हमलावरों द्वारा बहू-बेटियों को उठाने फिर उनसे जबर्दस्ती निकाह का उल्लेख है। कविता के दूसरे चरण में नानकदेव ने बाबर के आक्रमण को हिन्दुस्तान को आग में झोंक देने जैसा बताया है , यहां हुई मारकाट से हर आदमी के कराहने की बात कही गई है। चौथे चरण में नानक ने सर्वशक्तिमान रब का स्मरण किया।वे लिखते हैं-‘ यह जगत निश्चित मेरा है पर तू ही इसका अकेला मालिक है।तू ही इसे बनाता और नष्ट करता है।सारे सुख-दुख तेरे ही हुक्म से आते और जाते हैं । ‘
गुरु अर्जुन देव ने ‘आदिग्रन्थ’ में ही रामकथा कह दी है। अवतारों को मान्यता न देने के बावजूद ‘हुकमि उपाई दस अवतारा‘ लिख कर गुरुवाणी ने सनातन के दशावतार को मान्यता दी है। राम-रावण युद्ध का प्रसंग भी उसमें है। “भूलो रावण मुगधु अचेति, लूटी लंका सीस समेत” वाली पंक्ति पर गौर कीजिए। गुरु गोविंद सिंह ने नैनादेवी पहाड़ के नीचे सतलज नदी के किनारे बैठ कर जुलाई 23, 1698 को ‘रामावतार’ की रचना पूरी की थी। सिख धर्म पर अध्ययन कर चुके इतिहासकार प्रोफेसर लुइस फेनेस का मानना है कि सिख धर्म की जड़ें भारत की संत परंपरा में ही हैं।सिख शब्द एक संस्कृत शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ है ‘शिष्य’, या जो सीखता है(देखें https://www.hmoob.in/wiki/Islam_and_Sikhism)।
सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या के सम्बन्ध में दिए अपने 1045 पेज के जजमेंट में गुरु नानक देव जी का भी जिक्र किया है। उनका नाम आते ही यह साफ़ हो जाता है कि अयोध्या में बाबर के आक्रमण से पहले भगवान श्रीराम की पूजा होती थी। 1858 में निहंग सिखों ने बाबरी में घुस के राम नाम अंकित कर दिया था।(देखें https://hindi.opindia.com/miscellaneous/indology/guru-nanak-son-baba-srichand-established-udasi-gobind-singh-wrote-ramayana-sikh-hindu-history/) अयोध्या के सम्बन्ध में दिए सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के पृष्ठ संख्या 991-995 में सिखों के प्रथम गुरु का उल्लेख किया गया है। एक तरह से ये प्रमुख आधार रहा, जिसका संज्ञान लेते हुए न्यायालय ने यह माना कि बाबर के आक्रमण से वर्षों पहले भी अयोध्या एक तीर्थस्थल था और वहाँ पूजा-पाठ होते थे। दरअसल, सुनवाई के दौरान राजिंदर सिंह नामक वकील कोर्ट में पेश हुए थे, जो सिख इतिहासकार हैं और सिख साहित्यों के बड़े विद्वान भी हैं। उन्होंने सिख साहित्यों के आधार पर यह साबित किया कि गुरु नानक देव 1510 में भगवान श्रीराम का दर्शन करने गए थे।
इतिहासकार और गुरु नानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर के पूर्व कुलपति और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडी, शिमला के निदेशक और बाद में अध्यक्ष रहे जे.एस. ग्रेवाल और पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ में प्रोफेसर एमेरिटस इंदु बंगा ने ‘आउटलुक’ के लिए लिखे अपने लेख में लिखा है कि गुरु नानक सुल्तानपुर में अपने 10 साल के प्रवास और बाद में अपनी यात्राओं के दौरान इस्लाम के संपर्क में आए।उपरोक्त लेखकों के अनुसार ”गुरु नानक कहते हैं,-कोई खून का प्यासा राजा भी मेरी गरदन पर तलवार रख दे तब भी मैं ईश्वर उपासना नहीं छोड़ूंगा।”
गुरु नानक ने नैतिकता पर बहुत जोर दिया है। मुक्ति के लिए नैतिक जीवन की अनिवार्यता पर उनके कई पद हैं। कुछ तो सीधे मुसलमानों से मुखातिब हैं: “अगर खून से सना कपड़ा नापाक है, तो आदमी के खून के प्यासे का दिमाग कैसे पाक हो सकता है?मुसलमान को अपनी मस्जिद को करुणा, नेकनीयत वाली नमाज-चटाई, कुरान को ईमानदारी से अर्जित करना, खतना को नम्रता से लेना और शराफत से व्रत का पालन करना चाहिए। सच्चे मुसलमान को अपने अच्छे कर्मों को काबा बनाना चाहिए, सच्चाई उसका मार्गदर्शक बने, अच्छे कार्य कलमा और नमाज बनें, खुदा इसी मनके से खुश होता है।”
गुरु नानक मुल्ला और काजी से कहते थे कि पांचों वक्त नमाज, कुरान का पाठ, ग्रंथों का अध्ययन, रमजान के महीने में उपवास और मक्का में हज करने से उनकी उम्र नहीं बढ़ेगी। गुरु नानक मुसलमानों की प्रथाओं की आलोचना भी करते हैं। एक तो दफनाने के रिवाज पर ही है: “दफनाने के बाद मुसलमान की मिट्टी भी गूंथकर बर्तन और ईंट बनाई जा सकती है, उसे आग में पकाया जाएगा और चिंगारी गिरेगी तो बेचारी धरती कराहेगी (देखें https://www.outlookhindi.com/story/guru-nanaks-islam-2048)। ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब: टीचिंग्स फॉर मुस्लिम्स ‘में संपादक नानक सिंह निश्तर ने आमुख में लिखा है कि सिख गुरुओं ने इस्लामिक मान्यताओं और प्रथाओं के आधार पर नेक मुसलमान बनने की सीख दी। आज ऐसे समय में जब दुनिया के अधिकांश देश जिहादी आतंक से संत्रस्त हैं, तब गुरु नानक देव सहित सनातन संस्कृति और मानवता की रक्षा में शहीद हुए सभी सिख गुरुओं का स्मरण हो आना स्वाभाविक है (देखें https://www.mymandir.com/p/Qjckoc )।
पांचवें सिख गुरु अर्जन देव को बादशाह जहांगीर के आदेश पर 1606 में इसलिए मार दिया गया, क्योंकि वह धार्मिक सहिष्णुता और बहुलतावाद के घोर समर्थक थे(देखें https://www.amarujala.com/columns/opinion/beyond-the-wave-of-hatred-speak-against-islamic-bigotry-need-to-learn-lessons-from-the-past) ।ऐसे बर्बर कृत्य सिखों समेत सभी हिंदुओं की स्मृतियों में गहरे तक समाए हुए हैं। गुरु अर्जुन देव की मुस्लिम शासकों ने नदी में डुबोकर हत्या करवा दी थी। छठे गुरु हरगोविंद के काल में मुग़ल बादशाहों के गैर मुसलमानों पर अत्याचार बढ़ते जा रहे थे, जिसका उन्होंने बहादुरी से मुक़ाबला किया। उन्होंने अपने अनुयायियों को हिन्तुत्व की रक्षा हेतु सिपाहियों की तरह लैस रहने और अच्छे घुड़सवार बनने का उपदेश दिया। गुरु तेगबहादुर द्वारा भी इस्लाम धर्म स्वीकार न करने से इन्कार कर देने पर औरंगज़ेब ने उनके दोनों पोतों को दीवार में चिनवा दिया।
दसवें गुरु गोविंद सिंह ने सिक्ख पंथ को नया स्वरूप, नयी शक्ति और नयी ओजस्विता प्रदान की।(देखें https://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%96_%E0%A4%A7%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE ) खालसा कालेज अमृतसर के सिख इतिहास एवं अनुसंधान केंद्र के प्रमुख डॉ. जोगिंदर सिंह कहते हैं, हमारे गुरुओं ने न्याय की खातिर अपने और अपने जीवन और परिवारों का बलिदान दिया।” गुरु नानक देव के संदेश के अनुसार, यदि कोई अन्याय होता है, तो सिखों को हर कीमत पर इसके खिलाफ आवाज उठानी चाहिए (देखें https://hindi.newsclick.in/experts-say-sikh-leadership-must-oppose-atrocities-against-muslims) । जगतपुर बाबा सेंटर फॉर इंटरफेथ हार्मोनी, पटियाला के निदेशक सरबजिंदर सिंह कहते हैं -सिख पंथ हमेशा से ही क्रूर, आतताई हुकूमत के खिलाफ रहा है। उस जमाने में मुगल ‘ज़ालिम’ [उत्पीड़क] थे।