भिकल्या लाडक्या धिन्डा को प्रथम ‘कलाऋषि अमीरचंद’ सम्मान
मुंबई। वारली वनवासी समाज (varli vanvasi samaj) के तारपा वादक भिक्ल्या लाडक्या धिन्डा को प्रथम ‘कलाऋषि अमीरचंद’ सम्मान प्रख्यात फिल्मकार सुभाष घई एवं गायक -अभिनेता -सांसद मनोज तिवारी मृदुल के हाथों रविवार को आयोजित अमीरोत्सव के अवसर पर दिया गया। संस्कार भारती के राष्ट्रीय संगठन मंत्री अभिजीत दादा गोखले , प्रसिद्ध मराठी फिल्मकार राजदत्त , राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के पूर्व निदेशक पद्मश्री वामन केंद्रे ,रामायण धारावाहिक के सम्पादक सुभाष सहगल समेत बड़ी संख्या में कला जगत के लोग वहां उपस्थित थे।संस्कार भारती के राष्ट्रीय महासचिव अमीरचंद जी की स्मृति में हर वर्ष यह सम्मान कला के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन एवं लुप्त प्राय कलाओं को संजीवनी देनेवाले उल्लेखनीय उपलब्धि प्राप्त करने एवं अनुपम योगदान देनेवाले लोक कलाकार को दिए जाने की घोषणा भी की गयी। इस अवसर पर अमीरचंद जी की प्रकाशनाधीन जीवनी ‘एक यात्रा की यात्राएं’ के कवर पेज का लोकार्पण भी किया गया।
फिल्मसिटी (गोरेगाव ) स्थित विशलिंग वूड फिल्म स्कूल में अमीरोत्सव का आयोजन ‘नेशन फर्स्ट कलेक्टिव ‘द्वारा किया गया था। उल्लेखनीय है कि अमीरचंद जी ने देश भर के कलाकारों को एकजुट करने और उनकी कलाओं को पुष्पित -पल्लवित करने में अपना पूरा जीवन लगाया। उनकी कीर्ति यह है कि देश के कोने -कोने में लोक कलाएं और भारतीय कलाकारों ने नवजीवन ही नहीं पाया बल्कि वे आपस में जुड़े भी। सभी प्रकार की प्रदर्शनकारी कलाओं को अमीरचंद जी ने राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मंच उपलब्ध कराए। कोरोनाकाल में उनके द्वारा चलाए गए ‘पीर पराई जाने रे ‘ आयोजन ने सैंकड़ों कलाकारों को जीवनरक्षक सुविधाएं एवं संसाधन उपलब्ध कराये थे।
फिल्मकार सुभाष घई ने इस अवसर पर अमीरचंद जी को याद करते हुए कहा कि अमीरचंद जी के बारे में सबकुछ कहने के बाद भी कहने के लिए बहुत कुछ बच जाता है। वे अपने विचारों से सबको प्रेरित करनेवाले एवं ऊर्जा फैलानेवाले व्यक्ति थे। ‘कुम्भ ‘ पर डॉक्यूमेंट्री फिल्म मैंने बनाई तो उसका बीजारोपण उन्होने किया था। वे सबसे आत्मीय सम्बन्ध इस तरह जोड़ लेते थे कि हर कोई सदा सर्वदा के लिए उनका हो जाता था। आज की पीढ़ी ‘मान्यताओं ‘ नहीं प्रमाणकों को मानती हैं इसलिए उनसे जुड़ने का मंत्र भी इसी प्रक्रिया से गढ़ा जाता है। श्रद्धा और विज्ञान दोनों का सम्मिश्रण उनमें था और राष्ट्र के लिए बहुत कुछ करने की ललक उनमें थी। भारतीय संस्कृति को विश्वभर में ले जाने की सदिच्छा वे दूसरों में भी सहज ही रोप देते थे।
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के पूर्व निदेशक पद्मश्री वामन केंद्रे ने भारतीय कलाओं को विश्वाकाश पर पहुंचाकर अमीरचंद जी को श्रद्धांजलि देने का आवाहन करते हुए बताया कि वास्तव में संस्कृति के विस्तार से ही सभ्यताएं जीवंत रहती हैं। हमें पश्चिम के नरेटिव्स में बहकने की आवश्यकता नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व को अपनी कला -संस्कृति एवं साहित्यों से परिचित करने की आवश्यकता है। उन्होने कहा कि अमीरचंद जी ने ‘भरत मुनि ‘ के नाम पर पुरस्कार शुरू करने की कल्पना अमीरचंद जी ने की थी।
संस्कार भारती के राष्ट्रीय संगठनमंत्री अभिजीत दादा गोखले ने कहा कि अमीरचंद जी भव्य -भव्य कल्पनाओं का विचार करते थे। नैमिष्य फाउंडेशन की ओर से कलाजगत में जो पुरस्कार दिया जाएगा वह नोबेल से भी अधिक प्रतिष्ठित होना चाहिए ऐसा विचार वे रखते थे। उनमें विचारों की अमीरी थी और कला जगत को अमीर बनाना उनकी विशेषता रही। अमीर बनाने के लिए सपने देखना ही नहीं होता उसके लिए परिश्रम करना भी होता है और परिश्रम में भी उन्होने अमीरी दिखाई यह उनकी विशेषता रही। वे सदैव चुनौतियों को चुनौती देते थे। वे चुनौती को उसके स्थान पर जाकर चुनौती देते थे। जहाँ संस्कृति से नाता टूटा है वहां जाकर अमीरचंद जी ने काम किया और वहां भारतीय संस्कृति को पुनर्स्थापित करने का काम उन्होने किया। यह उनका अनूठा योगदान है।
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अमीरचंद जी की पहली पुण्यस्मृति के अवसर पर उनपर बनी १५ मिनट की डॉक्यूमेंट्री फिल्म का प्रदर्शन भी किया गया। उसके बाद गायक -अभिनेता -सांसद मनोज तिवारी ने कबीर के दोहे गाकर अपनी स्वरांजलि अनुपम संगठक अमीरचंद जी को अर्पित की तो कत्थक नृत्यांगना राजश्री शिर्के और उनकी टोली ने रामलीला के एक अंश का प्रदर्शन कर अपनी कलात्मक – श्रद्धांजलि दी , वहीं वारली वाद्ययंत्र तारपा का वादन और उसपर नृत्य कर ८३ वर्षीय भिकल्या लाडक्या धिन्डा ने उन महामानव की पुण्यस्मृति को अपनी कृतज्ञता भेंट की। इस आयोजन का आरम्भ भजन गायन से हुआ था और मंच संचालन का दायित्व प्रवीण सिनेमैटोग्राफर धरम गुलाटी पर था।