पुलिस बल में नियुक्ति से किन्नरों को सामाजिक मुख्यधारा में लाना संभव होगा
महाराष्ट्र एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल (MAT) ने महाराष्ट्र सरकार को आदेश दिया है कि वो पुलिस सब-इंस्पेक्टर (PSI) का एक पद ट्रांसजेंडर के लिए आरक्षित करे। MAT की अध्यक्ष एवं सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति मृदुला भाटकर ने पारित अपने आदेश में कहा कि सुप्रीम कोर्ट के 2014 के उस फैसले के बाद से यह अनिवार्य है। भारत की जनगणना 2011 के अनुसार भारत में लगभग 4.5 लाख किन्नर हैं और इनकी समाज के सभी जगहों में सहज प्रवेश की विशिष्टता के कारण पहले भी अनौपचारिक रूप से पुलिस एवं बैंक इत्यादि इनकी सेवाएं लेते रहे हैं। नए निर्देश से किन्नरों को पुलिस सेवाओं में औपचारिक रूप से सम्मिलित किये जाने से अंग्रेजी सरकार की षड्यंत्रकारी नीतियों के कारण अपमानित जीवन जीने को अभिशप्त समाज का यह महत्वपूर्ण भाग समाज की मुख्यधारा से भी जुड़ेगा।उल्लेखनीय है कि कर्नाटक, तमिलनाडु ,केरल ,छत्तीसगढ़ ,बिहार एवं राजस्थान में यह प्रावधान किया जा चुका है।
शेष विश्व में जहां उत्पादकता और उपयोगिता के आधार पर समाज चलता है वहीं भारत में सभी के लिए संसाधनों और सेवाओं की उपलब्धता को प्रमुखता दी गयी है। इसलिए हमारे समाज में किन्नरों को कभी उपेक्षित या हीन दृष्टि से नहीं देखा गया। हमारे साहित्यों में उनकी गरिमा का प्रतिनिधित्व करते शिखंडी जैसे चरित्र हैं। लेकिन 1871 की क्रिमिनल ट्रिब्यूनल एक्ट के तहत अंग्रेजों ने किन्नर समुदाय को ‘जरायमपेशा जनजातियों’ में सम्मिलित कर दिया था । इसके साथ ही इस समुदाय को ‘ आपराधी ‘ घोषित कर सामाजिक अधिकार, सम्पत्ति का अधिकार, परिवार, सेज सम्बन्धी और सार्वजनिक जीवन की सभी स्वतंत्रताएँ उनसे छीन कर हर अधिकार से वंचित कर दिए जाने के पीछे की साजिश यही थी कि जो लोग उत्पादन या सृजन प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बन सकते, उनको समाज के बीच रहने का भी हक़ नहीं है। स्वाधीनता के बाद 1951 ई० में किन्नर समुदाय पर लगे सभी तरह के प्रतिबन्ध हटा लिए गए। लेकिन सार्वजनिक जीवन में उनकी उपस्थिति अभी भी सहज नहीं थी, डर और नफरत का वातावरण अभी भी वैसा था। मतदान, शिक्षा, चिकित्सा, घर, राशन कार्ड, बिजली-पानी जैसी बुनियादी जरूरतें अभी भी लगभग वैसी की वैसी हैं।
महाराष्ट्र एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल (MAT) की मुंबई पीठ ने महाराष्ट्र सरकार को पुलिस सब इंस्पेक्टर (PSI) का एक पद ट्रांसजेंडर के लिए आरक्षित रखने का आदेश जारी किया हैं। सोमवार को MAT की अध्यक्ष एवं सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति मृदुला भाटकर ने पारित अपने आदेश में कहा कि सुप्रीम कोर्ट के साल 2014 के उस फैसले के बाद से यह जरूरी है, जिसमें सभी राज्य सरकारों को सभी सार्वजनिक नियुक्तियों में ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को रिजर्वेशन देने को कहा गया था।ट्रिब्यूनल विनायक काशीद द्वारा दायर एक आवेदन पर सुनवाई कर रहा था। इसमें महाराष्ट्र लोक सेवा आयोग (MPSC) को एक ट्रांसजेंडर कैंडिडेट के तौर पर पीएसआई पद के लिए आवेदन देने की अनुमति संबंधी आदेश देने की अपील की गई थी। MAT के आदेश की प्रति मंगलवार को हरी झंडी दिखाई गई। इस साल अगस्त में ट्रिब्यूनल ने महाराष्ट्र सरकार को शैक्षणिक संस्थानों और सार्वजनिक कार्यालयों में ट्रांसजेंडर के लिए पदों के प्रावधान के संबंध में 6 महीने में एक नीति लाने का आदेश भी दिया था। इस साल जून में विनायक काशीद ने निकाली गई 800 सब-इंस्पेक्टर की रिक्तियों में ट्रांसजेंडर के लिए रिजर्वेशन की डिमांड की है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि सभी ट्रांसजेंडर को अपना सेल्फ-आइडेंटिफाइड जेंडर तय करने का पूरा अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और सभी राज्य सरकारों को एजुकेशनल इंस्टीट्यूशन्स में एडमिशन और सार्वजनिक नियुक्तियों के मामलों में रिजर्वेशन देने का आदेश जारी किया था। MAT ने कहा, ‘राज्य सरकार के इस रुख को स्वीकार करना मुश्किल है कि नीतिगत फैसला आज तक नहीं लिया गया है। 2014 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मद्देनजर, सरकार की ओर से देश के कानून का पालन करना अनिवार्य है.’ इसने कहा, भले ही अभी तक सरकार ने कोई फैसला नहीं लिया है, लेकिन ट्रिब्यूनल को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले के तहत काम करना होगा। महाराष्ट्र एडमिनिस्ट्रेटर ट्रिब्यूनल ने सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के अनुसार ट्रांसजेंडर को पुलिस सब- इंस्पेक्टर बनाने का निर्देश जारी करके भारतीय संस्कृति के एक सम्मानित समुदाय को पुनः मुख्यधारा में लाने की दिशा में स्वागतयोग्य कार्य किया है।