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महाराष्ट्र में हिन्दू गौर, बंजारा लबाना महाकुंभ

घुमन्तु समाज में स्वाभिमान जागरण और सनातन समरसता का महाअभियान

भारत (bharat)में परतंत्रता के लंबे अंधकार और विदेशी शासकों द्वारा भारतीय समाज का ताना बाना ध्वस्त करने के षड्यंत्र से बेबस घुमन्तु समाज के स्वत्व जागरण और उन्हे पुनः हिन्दु (hindu)समाज से एकात्म करने का एक महा प्रयास सामने आया है । इसके लिये महाराष्ट्र के जलगांव क्षेत्र में एक विशाल बंजारा महाकुंभ(banjara kumbh) का आयोजन होने जा रहा है । इस समागम में गौर, लवाना, बंजारा आदि घुमन्तु वर्गों के अतिरिक्त सनातन समाज के स्वनामधन्य धर्म गुरु और अन्य समाज सेवी को भी सम्मिलित हो रहे है जिससे समस्त सनातन हिन्दु समाज के स्वरूप में एकत्व की स्थापना हो सके ।


धर्म जागरण मंच जलगांव(jalgaon) द्वारा गोदी(godri) जामनेर (jamner)क्षेत्र में आयोजित यहह बंजारा महाकुंभ भव्य समागम का आयोजन 25 से 30 जनवरी के बीच हो रहा है । इस अनूठे समागम में लगभग दस लाख लोगों के भाग लेने की संभावना है जिसमें गौर, लबाना बंजारा समाज के लोग अपने परिवार सहित आयेंगे । इनके अतिरिक्त सनातन समाज के अनेक साधु-संत, दंडीस्वामी और महामण्डलेश्वर भी शामिल हो रहे हैं। महामंडेश्वर चैतन्य स्वामी, महामंडेश्वर जनार्दन हरीजी और महामंडेश्वर गोपाल चैतन्य जी ने सनातन समाज के सभी धर्म प्रमुखों से समागम को सफल बनाने आव्हान किया है ।


इसकी तैयारियों को देखकर इस समागम की भव्यता और व्यापकता का अनुमान लगता है । आयोजन स्थल ढाई सौ एकड़ में फैला है । आगन्तुक अतिथियों और सहभागियों के लिए सात नगरों का निर्माण किया गया है। इस महा प्रांगण में आयुर्वेद चिकित्सा के विशेषज्ञ और गौसेवक धोंडीराम बाबा का एक मंदिर निर्माण और गुरु नानक देव के ज्येष्ठ सुपुत्र आचार्य श्री चंद्रबाबा की प्रतिमा भी स्थापित की जा रही है । घुमन्तु बंजारा समाज अनेक उपवर्गों में इनके प्रति अगाध आस्था है । इस बंजारा कुंभ के आयोजन का उद्देश्य समस्त हिंदु समाज को एक धारा में जोड़ना है । गोर बंजारा और लबाना आदि घुमन्तु समुदाय की सनातन हिन्दू समाज से दूरियाँ बढ़ रहीं थीं। आयोजन का उद्देश्य उन दूरियों को समाप्त कर समस्त सनातन हिन्दु समाज में एकत्व और समरसता स्थापित करना है ।


भारतीय बंजारा समाज(banjara samaj ) शोध कर्ताओं के लिए सदैव जिज्ञासा का केन्द्र रहा है । भारतीय और पश्चिमी विश्वविद्यालयों द्वारा अनेक अनुसंधान हुये हैं और सबने अपनी अपनी धारणाएँ स्थापित करने का प्रयास किया है । पर इसमें कोई दो राय नहीं कि समस्त घुमन्तु वर्ग और बंजारा समाज विशाल हिन्दु सनातन समाज का अभिन्न अंग है उनका रहन सहन और रीति-रिवाज राजस्थान के लोक जीवन से मिलता है । उनके गोत्र भी राजपूत गोत्र से मेल खाते हैं। समय के साथ उनके भीतर आस्था के प्रतीकों की वृद्धि तो हुई है पर मूल रूप से देवी साधना पूजा पद्धति भी भारतीय सनातन एवं राजपूत समाज से मेल खाती है । पर यह प्रश्न स्वाभाविक है कि इनका कोई स्थायी निवास या ठिकाना क्यों न बन पाया । ये किसी ग्राम के स्थायी निवासी या कहीं कृषि भूमि के स्वामी क्यों न पाये । इनके पास वनोषधियाँ होतीं हैं उनकी पहचान भी होती है । पर ये उसके भी व्यापारी नहीं बन पाये ।

इसके दो ही कारण हो सकते हैं। एक तो यह कि सभ्यता विकास के आरंभिक काल में ये राज्य स्थापना अथवा राजपूत परंपरा के विकास के पूर्वज हों । चूँकि यह घुमन्तु बंजारा समाज राजस्थान, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक आदि प्राँतों में भ्रमण करता है । यहीं से देश के अन्य भागों में विचरण को गया । यह समूह मूल रूप से राजस्थान अरावली पर्वत की छाया में विकसित हुआ है । अरावली पर्वत हिमालय से भी प्राचीन है । अनेक भौगोलिक परिवर्तनों और उतार चढ़ाव के बीच भी अरावली से लेकर सतपुड़ा और विन्ध्याचल के बीच की धरती में अधिक परिवर्तन नहीं हुआ । इसलिए इस क्षेत्र की मानव सभ्यता को उतनी क्षति नहीं हुई जितनी विश्व के अन्य भागों में हुई । बंजारा शब्द शुध्द संस्कृत का शब्द है । जो वनचारी या वनचारा से अपभ्रंश होकर बना । इसलिए यदि यह माना जाता है कि ये राजपूत परंपरा के जनक हैं ।

अनुसंधान का दूसरा निष्कर्ष यह है कि राजस्थान और मालवा मध्यकाल के सतत आक्रमणों से आक्रांत रहा । इनसे बचने के लिये ये लोग परिवार सहित चलायमान हो गये । वे अपनी संस्कृति और परंपरा को साथ लेकर चले । अंग्रेजी राज ने वन संपदा पर अधिकार करने का अभियान चलाया तब इन्होंने प्रतिकार भी किया । इन्होंने प्रत्येक काल-खंड में छापामार युद्ध भी किये । इस कारण प्रत्येक विदेशी शासन ने इनका दमन किया । सल्तनत काल में भी और अंग्रेजी राज में भी । ये अंग्रेजों द्वारा वन संपदा शोषण का सबसे प्रबल प्रतिकार वनवासी और बंजारा समाज ने ही किया । इससे चिढ़ कर अंग्रेजों ने तो घुमन्तू समाज के कुछ वर्गों को अपराधी ही घोषित कर दिया था । इस समाज ने इतना दमन सहा । विषम और विपरीत परिस्थतियों में अपना जीवन जिया किन्तु किसी ने भी अपनी परंपरा और संस्कृति का त्याग नहीं किया ।

समय के साथ इन समुदायों की मौलिक परंपराओं कुछ परिवर्तन भी आये इसका लाभ उठाकर कुछ लोग धर्मान्तरण कराने के उद्देश्य से इनके बीच कुछ समूह सक्रिय हुये हैं। उनकी बातों में आकर कुछ परिवारों ने अपनी धारा भी बदल भी ली है । किन्तु अब समय बदल रहा है । समस्त घुमन्तु समाज में जाग्रति आ रही है । इसी सामाजिक जाग्रति को सशक्त बनाने का बीड़ा उठाया है धर्म जागरण मंच ने । मंच की जलगांव इकाई ने भारत भर की घुमन्तु बंजारा समाज से संपर्क करने का प्रयास किया और समाज को उनके संकल्पशील अतीत का स्मरण कराकर स्वाभिमान जागरण का अभियान चलाया और इसी की एक बानगी है यह बंजारा महाकुंभ । धर्म जागरण मंच के प्रत्यनों से बंजारा समाज में अपने स्वत्व का वोध हुआ और इस महाकुंभ में दस लाख तक की उपस्थिति की संभावना बढ़ी ।


भारतीय संविधान (indian constitution ) में घुमन्तु बंजारा समाज को जनजाति वर्ग में सम्मिलित किया गया है । इस प्रावधान के अंतर्गत इस समाज को अनेक सुविधाएँ देने का प्रावधान भी है । पर घुमन्तु होने के कारण इस समाज का कोई स्थायी निवास या पता प्रमाणित न हो पाया । इस कारण ये समाज संवैधानिक अधिकार का कभी लाभ ही नहीं ले पाया । लेकिन अब केन्द्र सरकार ने इनके स्वाभिमान के साथ एक स्थाई निवास और जीवन स्वरूप देने का अभियान चलाया है । पिछले दिनों प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने कर्नाटक राज्य में घुमन्तु समाज को स्थाई पट्टे आवंटित कर एक ही स्थान पर बसाने का प्रयास किया है । जिसका स्वागत देश भर के घुमन्तु समाज ने किया है । यह संभावना भी व्यक्त की जा रही है कि महाराष्ट्र के जलगाँव क्षेत्र में आयोजित इस समागम के बाद विभिन्न प्रातों में इनके सम्मान जीवन के लिये स्थायी बस्तियाँ बनाने का अभियान चले ।

इस महाकुंभ में विभिन्न राज्यों और केन्द्र के कुछ ऐसे विशिष्ट जनों को भी आमंत्रित किया गया है जो इस समुदाय के स्थायी निवास बनाने के अभियान में सहयोग कर सकें। इन विशिष्ट एवं मुख्य अतिथियों के लिए चार हेलीपैड बनाये जा रहे हैं । गोदरी ग्राम को जोड़ने वाले नौ सड़को की सुधार किया गया है। कुंभ के लिए तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक और महाराष्ट्र राज्य से आने वाले सहभागियों में महिलाओं के लिए अलग नगर होगा।

इसमें 2500 से 3000 महिलाओं के रहने की व्यवस्था भी की गई है। इस महाकुंभ में महिलाओं के स्व सहायता समूहों को अपने स्टॉल लगाने के लिए जगह पृथक से स्थान उपलब्ध कराया गया है. इसमें 200 महिला बचत स्वसहायता समूह अपने अपने उत्पादों का प्रदर्शन करेंगे। केंद्रीय कार्यालय धार्मिक स्थल पर मंदिर के पीछे स्थित होगा। ताकि आगन्तुक समाज अपनी आस्था के अनुरूप पूजा प्रार्थना कर सके । इन धार्मिक स्थलों पर अमृतसर, नांदेड़ में गुरुद्वारा की ओर से प्रसाद लंगर का प्रबंध किया जा रहा है ।

सुचारू व्यवस्था के लिये दो हजार पुलिसकर्मी तैनात किए गये हैं। इसके अतिरिक्त इन श्रृद्धालुओं की सेवा के लिये स्वयं सेवक रहेंगे सो अलग। आयोजन स्थल पर फायर ब्रिगेड, एंबुलेंस और अस्पताल, बस सेवा की व्यवस्था भी की गई है। साथ ही मोबाइल कनेक्टिविटी के लिए बीएसएनएल द्वारा एक अस्थाई मोबाइल टावर का निर्माण किया जा रहा है । कुल मिलाकर इसकी व्यवस्था एकदम महा कुंभ की व्यवस्था की भाँति की गई है । जो समस्त घुमन्तु बंजारा समाज के लिये एक अविस्मरणीय स्मृति होगी । उनमें स्वत्व जागरण होगा। स्वाभिमान की अनुभूति होगी और आत्म गौरव के भाव का संचार होगा । संभवतः आयोजन का उद्देश्य भी यही है ।

–रमेश शर्मा

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