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कारगिल विजय दिवस

26 जुलाई, 1999
‘मुझे तोड़ लेना बनमाली, उस पथ पर देना तुम फेंक, मातृ-भूमि पर शीश चढ़ाने, जिस पथ पर जावें वीर अनेक’ – माखनलाल चतुर्वेदी ( पुष्प की अभिलाषा )

संक्षिप्त परिचय
26 जुलाई 1999 अर्थात् ‘कारगिल विजय दिवस’ भारत के प्रत्येक नागरिक के लिए भारतीय सेना के उस अद्वितीय शौर्य, बलिदान और विजयगाथा के प्रति कृतज्ञता, सम्मान और एक समर्थ राष्ट्र का नागरिक होने का अप्रतिम गौरव बोध स्मरण करने का दिन है। जब भारतीय सेना के वीर जवानों ने पाकिस्तान की कुटिल महत्वाकांक्षा, खोखले दुस्साहस और भारत को खंडित करने के एक दिवास्वप्न को अपने पैरों तले रौंद कर कारगिल की चोटियों पर भारत की विजय पताका फहरा दी थी। इसी दिन भारत पाकिस्तान नियंत्रण रेखा से लगी कारगिल की पहाड़ियों पर कब्ज़ा जमाए आतंकियों और उनके भेष में घुस आए पाकिस्तानी सैनिकों को भारतीय सैनिकों ने मार भगाया था। यह वह दिन भी है जब पूरा विश्व यह अनुभव करने पर विवश हुआ कि भारत को परमाणु आक्रमण जैसे गंभीर संकट की संभावनाओं के डर से भी डराया नहीं जा सकता। वह अपनी एकता और अखंडता की रक्षा के लिए विश्व की किसी भी महाशक्ति के दबाव अथवा प्रभाव के आगे नहीं झुकेगा।

पाकिस्तानी हमले का उद्देश्य

  1. नेशनल हाईवे एक की सप्लाई बंद करवाना। यह हाईवे श्रीनगर को लेह से जोड़ता है।
  2. पाकिस्तानियों को लगता था कि सप्लाई बंद होने से भारतीय सेना बहुत जल्दी किसी भी तरह का जवाबी हमला नहीं कर पायेगी।
  3. पाकिस्तानियों को लगता था कि भारत में इतनी क्षमता नहीं है कि वो पाकिस्तानी सेना को उनकी जगह से हटा पाए।
  4. इसके अतिरिक्त यह भी कहा जाता है कि कारगिल हमले का वृहद् पक्ष भी था जिसका खुलासा आज तक नहीं हो पाया है। यह जम्मू कश्मीर राज्य के सबसे छोटे हिस्से कश्मीर पर जेहादी हमला करके कब्जा कर लेने की योजना का था। कारगिल हमले के बाद भारतीय सेना इतना मुहतोड़ जवाब देगी इसकी कल्पना पाकिस्तानी सेना के अधिकारियों को नहीं थी और इसी के कारण इसका न तो क्रियान्वयन हो पाया और न ही ठीक से खुलासा।
  5. इस वृहद् पक्ष के अनुसार अफगानिस्तान में तालिबान प्रमुख मुल्ला महसूद रब्बानी से कश्मीर में जेहाद लड़ने के लिए पाकिस्तान ने २० से ३० हजार लड़ाको की माँग की गई थी। रब्बानी ने 50 हजार लड़ाकों का वायदा कर दिया था। पाकिस्तानी आर्मी के अधिकारी इस प्रस्ताव से बेहद खुश थे।
  6. कारगिल को लेकर परवेज़ मुशर्रफ़ बेचैन थे। 1965 के युद्ध से पहले कारगिल की चोटियों पर पाकिस्तानी सेना थी, सुरक्षा और सामरिक रूप से महत्वपूर्ण जगह पर थी। लेकिन 1965 और 1971 के युद्ध में भारत ने यह महत्वपूर्ण चोटियाँ अपने कब्ज़े में ले ली थी। मुशर्रफ इन चोटियों को वापिस लेना चाहता था।
  7. कश्मीर को ऐसा अंतर्राष्ट्रीय मसला बनाना जिससे विश्व समुदाय को यह संदेश जाए कि इसे लेकर परमाणु युद्ध की आशंका है और इसमें तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप की तत्काल आवश्यकता है।
  8. नियंत्रण रेखा की पवित्रता को भंगकर कारगिल के अनियंत्रित क्षेत्रों को कब्जे में लेना।

कारगिल घटनाक्रम

कारगिल युद्ध की शुरुआत पाकिस्तान की सेना और पाकिस्तान समर्थित घुसपैठियों द्वारा जम्मू और कश्मीर के कारगिल जिले में नियंत्रण रेखा (LOC) पार कर भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ करने के साथ हुई। इस घुसपैठ का उद्देश्य कारगिल के क्षेत्र में सामरिक रूप से महत्वपूर्ण चोटियों पर कब्जा करना था, जिससे श्रीनगर-लेह राष्ट्रीय राजमार्ग को काटा जा सके और भारत की आपूर्ति लाइनों को बाधित किया जा सके।

युद्ध का आरंभ : मई 1999 में, भारतीय सेना को स्थानीय चरवाहों से दुश्मनों की घुसपैठ की जानकारी मिली। प्रारंभिक जांच के बाद, भारतीय सेना ने पाया कि दुश्मन ने कई ऊंची चोटियों पर कब्जा कर लिया है। यह जानने के बाद, भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य इन क्षेत्रों को वापस अपने नियंत्रण में लेना था।

ऑपरेशन विजय : भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन विजय’ नामक एक व्यापक सैन्य अभियान शुरू किया, जिसमें सेना, वायु सेना और तोपखाने की मदद ली गई। इस ऑपरेशन का उद्देश्य घुसपैठियों को खदेड़कर भारतीय क्षेत्र को पुनः प्राप्त करना था।

भारतीय वायु सेना की भूमिका : भारतीय वायु सेना ने ‘ऑपरेशन सफेद सागर’ के तहत दुश्मन के ठिकानों पर हवाई हमले किए। मिग-21, मिग-27 और मिराज-2000 विमानों का उपयोग कर दुश्मनों के बंकर और सप्लाई लाइन को निशाना बनाया गया।

महत्वपूर्ण चोटियों पर कब्जा : भारतीय सेना ने क्रमशः टोलोलिंग, टाइगर हिल, प्वाइंट 4875, और अन्य महत्वपूर्ण चोटियों को पुनः कब्जा किया। इन लड़ाइयों में भारतीय सेना ने अद्वितीय साहस और धैर्य का प्रदर्शन किया।

युद्ध का अंत : भारतीय सेना के लगातार हमलों और साहसिक अभियानों के चलते, पाकिस्तान की सेना और घुसपैठियों को भारी नुकसान उठाना पड़ा और अंततः उन्हें पीछे हटने पर मजबूर होना पड़ा। जुलाई 1999 के अंत तक भारतीय सेना ने लगभग सभी महत्वपूर्ण क्षेत्रों को पुनः अपने नियंत्रण में ले लिया।
26 जुलाई 1999 को भारत ने कारगिल विजय की घोषणा की, जिसे हर साल ‘कारगिल विजय दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। करीब दो महीने तक चला कारगिल युद्ध भारतीय सेना के साहस और पराक्रम का ऐसा उदाहरण है जिस पर हर भारतीय देशवासी को गर्व है।

करीब 18 हजार फीट की ऊँचाई पर कारगिल में लड़ी गई इस जंग में देश ने लगभग 527 से ज्यादा वीर योद्धाओं को खोया था वहीं 1300 से ज्यादा घायल हुए थे। युद्ध में 2700 पाकिस्तानी सैनिक मारे गए और 750 पाकिस्तानी सैनिक जंग छोड़ के भाग गए।

कारगिल युद्ध स्मारक : भारतीय सेना द्वारा निर्मित कारगिल युद्ध स्मारक, टोलोलिंग पहाड़ी की तलहटी में द्रास में स्थित है। टाइगर हिल के पार शहर के केंद्र से लगभग 5 किमी दूर स्थित यह स्मारक, कारगिल युद्ध के शहीदों की याद में बनाया गया है। युद्ध में अपनी जान गंवाने वाले सैनिकों के नाम स्मारक की दीवार पर अंकित हैं और आगंतुक उन्हें पढ़ सकते हैं। कारगिल युद्ध स्मारक से जुड़ा एक संग्रहालय, जिसे ऑपरेशन विजय की जीत का जश्न मनाने के लिए स्थापित किया गया था, इसमें भारतीय सैनिकों की तस्वीरें, महत्वपूर्ण युद्ध दस्तावेजों और रिकॉर्डिंग के अभिलेखागार, पाकिस्तानी युद्ध उपकरण और गियर और कारगिल युद्ध से सेना के आधिकारिक प्रतीक हैं।

कारगिल युद्ध – हर मोर्चे पर पाकिस्तान की किरकिरी
कारगिल युद्ध ने पाकिस्तान को एक दुष्ट राष्ट्र के रूप में पूरी तरह से बेनकाब कर दिया था। तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री और सेना प्रमुख दोनों एक दूसरे पर आरोप लगाते रहे। नवाज़ शरीफ का स्टैंड है कि उन्हें कारगिल हमले के बारे में कुछ नहीं पता था, दूसरी तरफ मुशर्रफ़ का कहना है कि नवाज़ शरीफ को सब पता था। अब नवाज़ शरीफ को पता था या नहीं दोनों ही सूरत में पाकिस्तान की किरकिरी होती है। यदि पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री नवाज़ शरीफ को इस हमले का नहीं पता था तो यह बात और पुख्ता हो जाती है कि “पाकिस्तान के पास सेना नहीं है बल्कि सेना के पास एक पाकिस्तान है”।

तत्कालीन पाकिस्तानी विदेश मंत्री का भी कहना है कि देश का विदेश मंत्री होने के बाद भी उन्हें 17 मई की सुबह कारगिल हमले के विषय में जानकारी प्राप्त हुई और उनसे कभी भी इस स्थिति के डिप्लोमेटिक स्तर पर क्या परिणाम होंगे इसके बारे में कभी भी नहीं पूछा गया।

पाकिस्तानी सेना में इस कदर अफरा तफरी थी कि पाकिस्तान के तत्कालीन एडमिरल फैसुद्दीन बुखारी ने मुशर्रफ़ से सीधे पूछ लिया था कि मुझे इस आपरेशन की कोई जानकारी नहीं है परन्तु मैं पूछता हूँ कि इतने बड़े मोबिलाइजेशन का क्या उद्देश्य है? हम एक उजाड़ सी जगह के लिए युद्ध करना चाहते है जिसे हमें वैसे भी सर्दियों के समय खाली करना पड़ेगा। मुशर्रफ़ के पास इस बात का कोई जवाब नहीं था।

पूरी दुनिया के साथ -साथ पाकिस्तान के साथी चीन ने भी पाकिस्तान को कारगिल की चोटियों से अपनी सेना वापिस बुलाने के लिए कहा था। शुरुआत में पाकिस्तान लगातार कह रहा था कारगिल के पहाड़ो में मुजाहिदीन लड़ रहे है लेकिन वैश्विक दबाव में जब पाकिस्तान को अपने सैनिक वापस बुलाने पड़े तो वह पूरे विश्व के सामने बेनकाब हुआ कि पाकिस्तान मुजाहिदीनो को कंट्रोल कर सकता है। इस से पूरे विश्व में एक बात स्पष्ट होने लगी कि पाकिस्तान कश्मीर में मुजाहिदीनो के नाम पर आतंक फैला रहा है।

परवेज़ मुशर्रफ़ कारगिल को अपनी सैनिक विजय मानता है किन्तु सत्य यह है कि पाकिस्तान ने अपने सैनिको को कारगिल की ऊँचाइयों पर मरने के लिए छोड़ दिया था। कई जवानो की पोस्ट मार्टम रिपोर्ट्स से पता चला उनके पेट में घास थी यानी कि जवानों के पास खाने को भी कुछ नहीं था।परवेज़ मुशर्रफ़ ने अपनी किताब में लिखा कि मिलिट्री ने जो अर्जित किया, डिप्लोमेसी में हमने वो गँवा दिया। लेकिन दूसरी तरफ नवाज ने एक इंटरव्यू में बोला कि जब तक मैं अमेरिका के पास मदद मांगने गया और अमेरिका मदद करने को तैयार हुआ, तब तक भारतीय फौजें कारगिल से लगभग सब जगह से पाकिस्तानियों को निकाल चुकी थी और तेजी से आगे बढ़ रही थी ऐसे मे मैने पाकिस्तानी सेना के सम्मान को बचाया।

मुशर्रफ़ का कहना है कि उसने नवाज़ से नहीं कहा था कि वो अमेरिका से बातचीत करे। लेकिन दूसरी ओर नवाज़ ने कहा कि जब वह अमेरिका जा रहे थे तो मुशर्रफ़ उनको एअरपोर्ट छोड़ने आया और उसने अमेरिका से बात करने को कहा ताकि पाकिस्तानी सेना के जवान कारगिल की चोटियों से सुरक्षित निकल सके, जहाँ अब भारतीय फौजे आगे बढ़ रही थी।

पाकिस्तान जब से अस्तित्व में आया तब से ही वहाँ किसी भी तरह की जवाबदेही वहाँ तय नहीं की जाती है । जिस आर्मी चीफ ने इतना बड़ी ग़लती की, वह पाकिस्तान का राष्ट्रपति बना एक और सेना अधिकारी जिसके नेतृत्व में यह लड़ाई लड़ी गयी उसे प्रमोशन मिला।

कुल मिलकर कहा जा सकता है कि पाकिस्तान चार कट्टरपंथी “फैनेटिक फोर” (पाकिस्तानी सेना के वे चार अधिकारी जिन्होंने कारगिल युद्ध की योजना बनाई थी) की कोरी कल्पना (फैन्टसी) का शिकार हुआ और इस तरह एक असफल देश का कुटिल प्रयास भी अफसल रहा।

कारगिल विजय के अविस्मरणीय राष्ट्रीय नायक

कारगिल युद्ध 1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ था, जिसमें भारतीय सेना ने दुश्मनों को परास्त कर कारगिल की चोटियों को फिर से अपने कब्जे में लिया था। इस युद्ध में कई वीर जवानों ने अपने प्राणों की आहुति दी और अपनी वीरता का प्रदर्शन किया। कारगिल विजय के राष्ट्रीय नायक इस प्रकार हैं –
कैप्टन विक्रम बत्रा (परमवीर चक्र)


● कैप्टन विक्रम बत्रा को उनके अदम्य साहस और नेतृत्व के लिए जाना जाता है। कैप्टन विक्रम बत्रा का जन्म 9 सितंबर, 1974 को पालमपुर, हिमाचल प्रदेश में पिता गिरधारी लाल बत्रा और माता कमल कांता के घर हुआ था।
● विज्ञान विषय में स्नातक करने के बाद विक्रम का चयन सीडीएस के जरिए सेना में हो गया। जुलाई 1996 में उन्होंने भारतीय सैन्य अकादमी देहरादून में प्रवेश लिया। दिसंबर 1997 में प्रशिक्षण समाप्त होने पर उन्हें 6 दिसम्बर 1997 को जम्मू के सोपोर नामक स्थान पर सेना की 13 जम्मू-कश्मीर रायफल्स में लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्ति मिली। उन्होंने 1999 में कमांडो ट्रेनिंग के साथ कई प्रशिक्षण भी लिए। पहली जून 1999 को उनकी टुकड़ी को कारगिल युद्ध में भेजा गया। कुछ समय पश्चात विक्रम बत्रा को कैप्टन बना दिया गया।
● इसके बाद श्रीनगर-लेह मार्ग के ठीक ऊपर सबसे महत्त्वपूर्ण 5140 चोटी को पाक सेना से मुक्त करवाने की ज़िम्मेदारी कैप्टन बत्रा की टुकड़ी को मिली। कैप्टन बत्रा अपनी कंपनी के साथ घूमकर पूर्व दिशा की ओर से इस क्षेत्र की तरफ बडे़ और बिना शत्रु को भनक लगे हुए उसकी मारक दूरी के भीतर तक पहुंच गए। कैप्टेन बत्रा ने अपने दस्ते को पुर्नगठित किया और उन्हें दुश्मन के ठिकानों पर सीधे आक्रमण के लिए प्रेरित किया।
● सबसे आगे रहकर दस्ते का नेतृत्व करते हुए उन्होनें बड़ी निडरता से शत्रु पर धावा बोल दिया और आमने-सामने के गुतथ्मगुत्था लड़ाई मे उनमें से चार को मार डाला। बेहद दुर्गम क्षेत्र होने के बावजूद विक्रम बत्रा ने अपने साथियों के साथ 20 जून 1999 को सुबह तीन बजकर 30 मिनट पर इस चोटी को अपने कब्ज़े में ले लिया।
● कैप्टन विक्रम बत्रा ने जब इस चोटी से रेडियो के जरिए अपना विजय उद्घोष ‘यह दिल मांगे मोर’ कहा तो सेना ही नहीं बल्कि पूरे भारत में उनका नाम छा गया और उन्हें ‘कारगिल का शेर’ की भी संज्ञा दी गई।
● उनके इस असाधारण नेतृत्व से प्रेरित उनके साथी जवान प्रतिशोध लेने के लिए शत्रु पर टूट पड़े और शत्रु का सफ़ाया करते हुए प्वॉइंट 4875 पर कब्ज़ा कर लिया।
● कैप्टन बत्रा के पिता जी.एल. बत्रा कहते हैं कि उनके बेटे के कमांडिंग ऑफिसर लेफ्टीनेंट कर्नल वाई.के. जोशी ने विक्रम को शेर शाह उपनाम से नवाजा था।
● उन्होंने ‘शेरशाह’ के नाम से प्रसिद्ध होकर दुश्मनों के दांत खट्टे किए। 7 जुलाई 1999 को उन्होंने प्वाइंट 4875 पर हमला करते समय अद्वितीय वीरता का प्रदर्शन किया, उन्होंने जान की परवाह न करते हुए अपने साथियों के साथ, कई पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतारा किंतु ज़ख्मों के कारण कैप्टन विक्रम बत्रा वीरगति को प्राप्त हुए।
● सम्मान : उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया, जो भारत का सर्वोच्च सैन्य सम्मान है। कारगिल विजय को आधार बनाकर कई भारतीय फिल्म भी बनी जिनमें 2003 में एल.ओ.सी. कारगिल महत्त्वपूर्ण है, इसके साथ ही 2021 में बनी शेरशाह फिल्म कैप्टन विक्रम बत्रा के जीवन पर आधारित है।
कैप्टन अनुज नैयर (महावीर चक्र)
● कैप्टन अनुज नैयर ने 7 जुलाई 1999 को प्वाइंट 4875 पर हमला करते समय अद्वितीय वीरता का प्रदर्शन किया। उन्होंने अपने प्लाटून को नेतृत्व करते हुए दुश्मनों के कई बंकर नष्ट किए और दुश्मनों को भारी नुकसान पहुँचाया।
● सम्मान : उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया।
कैप्टन योगेंद्र सिंह यादव (परमवीर चक्र)


● कैप्टन योगेंद्र सिंह यादव ने 4 जुलाई 1999 को प्वाइंट 4875 की चोटी पर कब्जा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने भारी गोलीबारी के बावजूद अपने साथियों का मनोबल बढ़ाया और दुश्मनों के कई बंकर नष्ट किए।
● जान की बाजी लगाकर दुश्मन की 17 गोलियां झेलकर भी अदम्य साहस के परिचय देते हुए कारगिल युद्ध में सामरिक टाइगर हिल चोटी फतह करने में अनुकरणीय भूमिका के कारण भारत के राष्ट्रपति द्वारा परमवीर चक्र का सम्मान दिया गया।
● कैप्टन योगेंद्र सिंह यादव परमवीर चक्र पाने वाले देश के सबसे युवा सैनिक हैं। कैप्टन योगेंद्र सिंह यादव को टाइगर हिल का टाइगर कहा जाता है। वह कौन बनेगा करोड़पति शो में अमिताभ बच्चन के विशेष आमंत्रण पर अपने साथी परमवीर चक्र विजेता सूबेदार संजय कुमार के साथ शामिल हुए और जीती गई पूरी धनराशि आर्मी वेलफेयर फण्ड में दान कर दिया।
● देश सेवा के लिए वर्ष 2014 में इनको उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रदेश के सर्वोच्च पुरस्कार यश भारती से सम्मानित किया गया। उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया, जो जीवित रहते हुए यह सम्मान प्राप्त करने वाले कुछ सैनिकों में से एक हैं।
राइफलमैन संजय कुमार (परमवीर चक्र)
● वीरता और योगदान : राइफलमैन संजय कुमार ने 4 जुलाई 1999 को प्वाइंट 4875 की ओर बढ़ते समय अद्वितीय वीरता का प्रदर्शन किया। उन्होंने अपने साथी सैनिकों के साथ दुश्मनों के कई बंकर पर कब्जा किया और उनकी गोलाबारी के बीच अपने मिशन को सफलतापूर्वक अंजाम दिया।
● सम्मान : उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडेय (परमवीर चक्र)
● लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडेय ने 3 जुलाई 1999 को खालुबार चोटी पर दुश्मनों के खिलाफ लड़ाई में अद्वितीय वीरता का प्रदर्शन किया। उन्होंने अपने साथी सैनिकों के साथ दुश्मनों के कई बंकर नष्ट किए और अंततः अपने प्राणों की आहुति दे दी।
● सम्मान : उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
● ये वीर सैनिक भारतीय सेना के वे अद्वितीय योद्धा हैं जिन्होंने कारगिल युद्ध में अपनी वीरता, साहस और बलिदान का प्रदर्शन किया और देश की रक्षा की। इनकी वीरता और बलिदान हमेशा याद किए जाएंगे और नई पीढ़ियों को प्रेरित करते रहेंगे।
तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का पाकिस्तान को दो टूक जवाब
भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 7 जून 1999 को राष्ट्र के नाम संबोधन दिया जिसमें भारतीय सीमा के अन्दर कारगिल में पाकिस्तान सेना की घुसपैठ का विषय रखते हुए उन्होंने पकिस्तान को दो टूक जवाब दिया। उन्होंने इसे गंभीर स्थिति बताते हुए कहा, “कोई भी देश इस तरह के आक्रमण को सहन नहीं करेगा, कम-से-कम हमारी सरकार तो नहीं। हमारे सशस्त्र बलों ने पाकिस्तान की सेना को पीछे खदेड़ने के लिए बड़ा अभियान शुरू कर दिया है।” प्रधानमंत्री ने सेना पर भरोसा जताया और कहा, “इस अभियान को हमारे जवान समाप्त करेंगे और सुनिश्चित किया जायेगा कि भविष्य में ऐसा अपघात करने की कोई हिम्मत नहीं करेगा।”

अटल जी के भाषण में हुई कांग्रेस की किरकिरी

“मुझे याद दिलाने की जरूरत नहीं है कि जब कारगिल की लड़ाई हुई तो देश में कामचलाऊ सरकार थी, चुनाव आनेवाले थे और शायद यही वक्त देखकर हमें हमले का निशाना बनाया गया था। लेकिन हमारी सेना ने बहादुरी दिखाई, सेनापतियों ने ठीक संचालन किया और हमें विजय मिली और यह विजय पूरे देश की विजय थी। …बांग्लादेश के युद्ध के बाद और स्वतंत्र बांग्लादेश के निर्माण के बाद मैं प्रतिपक्ष के नेता के नाते सदन में और सदन के बाहर बोला था। आप उन भाषणों को देखिए और कारगिल विजय के बाद आप लोगों ने जिस तरह की भाषा बोली, वह भी आनेवाला इतिहास देखेगा।“

‘कारगिल विजय’ के बाद पाकिस्तान की स्थिति

कारगिल विजय के बाद पाकिस्तान पूरी तरह से अलग-थलग पड़ गया था। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसकी विश्वसनीयता ख़त्म हो चुकी थी। जबकि भारत की प्रतिष्ठा में बढ़ोतरी हुई। वह अपने सैन्य प्रबंधन के कारण विश्व में भारत को जिम्मेदार और आत्म-नियंत्रण में सक्षम ताकत माना जाना लगा। (Proceedings and Debates of the U.S. Congress, 29 July, 1999)

पाकिस्तान की हार से वहां आंतरिक तौर पर सेना और सरकार दोनों की आलोचना होने लगी। कारगिल युद्ध के कर्ताधर्ता परवेज मुशर्रफ उन समय आर्मी स्टाफ के प्रमुख थे। उन्होंने सितम्बर 2006 में अपनी पुस्तक ‘इन द लाइन ऑफ़ फायर : ए मेमोआर’ का प्रकाशन किया। इस किताब में उन्होंने खुद स्वीकार किया है कि पाकिस्तान सेना की ‘उपलब्धियां’ उसकी असफलताएं है।

पाकिस्तान की भूतपूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टों ने ‘द न्यूज़’ को 22 जुलाई, 1999 को बताया, “पाकिस्तान के इतिहास में कारगिल सबसे बड़ी गलती थी। पूरा अभियान पाकिस्तान को महंगा पड़ा।

कारगिल युद्ध ने पाकिस्तान में ऐसे हालात पैदा कर दिए कि वहां सेना और सरकार का एक-दूसरे से विश्वास तक उठ गया। वहां के सभी समाचार-पत्र सरकार की आलोचना से भरे जाने लगे। विदेशी मीडिया ने भी पाकिस्तान के युद्ध छेड़ने की निंदा की और भारतीय नीति और हमारी सेना की भूमिका की सराहना की। जनरल वी.पी. मालिक लिखते है, “कारगिल युद्ध भारतीय सेना की रणक्षेत्र में प्रदर्शित वीरता, धैर्य और दृढ़ निश्चय की अतुलनीय गाथा के रूप में भारतीय इतिहास में दर्ज रहेगा। यह महान गौरव और प्रेरणा का प्रतीक बनेगा।”

कारगिल विजय : एक ऐतिहासिक उपलब्धि

इस युद्ध से भारत को एक और महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल हुई। पाकिस्तान और चीन के साथ हुए पिछले युद्धों में हमने जो कुछ प्राप्त किया अथवा कुछ भी हम जीते, वह हमारी तत्कालीन सरकारों ने संधियों और दवाब के बहकावे में आकर गंवा दिया। साल 1947 में जम्मू-कश्मीर का एक-तिहाई हिस्सा पाकिस्तान के जबरन कब्जे में चला गया। साल 1962 में 38,000 वर्ग किलोमीटर की हमारी जमीन चीन ने हड़प ली। साल 1971 में बिना किसी शर्त और लिखित में 90,000 सैनिक पाकिस्तान को वापस कर दिए गए। जबकि कारगिल युद्ध में वाजपेयी सरकार ने एक इंच भूमि नहीं गंवाई और पाकिस्तान को हिन्दुस्तान की सीमा से बाहर कर दिया।

हरीश कपाडिया ने कारगिल स्मृति में पद्मनाभ शिखर पर चढ़ाई पूरी कर श्रद्धांजलि अर्पित की
कारगिल युद्ध के शहीदों या कहें कि सम्पूर्ण देशवासियों की रक्षा करने वाले इन राष्ट्रीय नायकों को अलग-अलग तरीके से श्रद्धांजलि अर्पित की गई। हरीश कपाडिया ने कारगिल स्मृति में पद्मनाभ शिखर पर चढ़ाई की और बेटे तथा कारगिल हीरो लेफ्टिनेंट नवांग कपाड़िया को याद करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की।

‘मेरा जीवन मेरा देश’ : लालकृष्ण आडवाणी

एल. के. आडवाणी ने अपनी पुस्तक “मेरा जीवन मेरा देश ” में कारगिल युद्ध को एक बडा संघर्ष और निर्णायक घटना माना है। उन्होंने इस युद्ध को भारतीय सेना के साहस, समर्पण, और पराक्रम का प्रतीक माना है। उन्होंने युद्ध के दौरान भारतीय सेना के जवानों और अधिकारियों की बहादुरी और उनके त्याग को सराहा है।

अडवाणी ने अपनी पुस्तक में भी यह उजागर किया है कि कारगिल युद्ध ने भारतीय समाज में राष्ट्रीय एकता और राष्ट्रीय भावनाओं को मजबूत किया था। इस युद्ध ने देश के लोगों में सेना के प्रति गर्व और सम्मान की भावना को उत्तेजित किया था। उन्होंने यह भी व्यक्त किया है कि युद्ध की विजय भारतीय सेना की शक्ति और सामर्थ्य का प्रदर्शन था, जो आज भी याद किया जाता है।

आडवाणी जी के अनुसार कारगिल युद्ध ने भारतीय समाज में राष्ट्रीय एकता, साहस, और समर्थन की भावना को मजबूत किया। उन्होंने यह भी बताया कि युद्ध के पश्चात्, देश के लोगों में सेना के प्रति अधिक समर्थन और विश्वास बढ़ा, जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है।

कारगिल: एक अभूतपूर्व विजय : जनरल वी. पी. मालिक

वी. पी. मालिक ने अपनी पुस्तक ‘कारगिल: एक अभूतपूर्व विजय’ में कारगिल युद्ध को एक महत्वपूर्ण और अभूतपूर्व घटना माना है, जो भारतीय सेना के लिए एक विशेष विजय का प्रतीक रही। उन्होंने यह बताया है कि कारगिल युद्ध भारतीय सेना के लिए एक बड़ी विजय रही, जिसने सेना की ताकत और संघर्ष का प्रदर्शन किया। इस युद्ध ने देश में एकता और समर्थन की भावना को मजबूत किया।

उन्होंने अपनी पुस्तक में यह भी बताया कि कारगिल युद्ध में भारतीय सेना ने सैन्य कौशल का शानदार प्रदर्शन किया। सेना ने गुटों के साथ कठोर युद्ध की योजना बनाई और पाकिस्तान के अवैध कब्जे को हटाने में सफलता प्राप्त की।

जनरल वी. पी. मलिक ने उन सैनिकों और अधिकारियों की बहादुरी को उजागर किया है जिन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना दुश्मन के ठिकानों पर हमला किया।

अपनी इस पुस्तक में उन्होंने पकिस्तान के परवेज मुशर्रफ के कारगिल सम्बन्धी झूठे वादों का खंडन किया है। उन्होंने इस पर विशेष ध्यान दिया है कि मुशर्रफ ने युद्ध के समय अपने देश को बहकाने के लिए कई झूठे दावे किए थे। जनरल वी. पी. मलिक ने बताया है कि मुशर्रफ ने कहा था कि युद्ध की शुरुआत भारत ने की थी, लेकिन यह एक झूठा दावा था। वास्तव में, युद्ध की शुरुआत पाकिस्तान द्वारा की गई थी।

कारगिल विजय की 25 वीं वर्षगांठ : मोदी जी के नेतृत्व में किए गए सैन्य सुधार
डॉ. जितेंद्र सिंह अनुसार पिछली सरकारों के विपरीत, प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार सशस्त्र बलों और उनके शहीदों के कल्याण के प्रति संवेदनशील और चिंतित है। पिछले नौ वर्षों में शहीदों के परिवारों की देखभाल के लिए जितने लाभ और कल्याणकारी उपाय शुरू किए गए हैं, उतने किसी अन्य सरकार ने नहीं किए हैं। डॉ. जितेंद्र सिंह “2014 में पीएम मोदी के कार्यभार संभालने के बाद से भारत का रवैया बदल गया है। एक स्पष्ट संकेत गया है कि सीमा पार से प्रायोजित आतंकवादी हमलों से सख्ती से निपटा जाएगा”।

भारत छह देशों के साथ एक स्थलीय सीमा और सात देशों के साथ एक समुद्री सीमा साझा करता है। 75 वर्षों में हमने आंतरिक सुरक्षा के मोर्चे पर आतंकवाद, उग्रवाद और वामपंथी उग्रवाद का सामना किया है और हजारों निर्दोष नागरिक और सुरक्षाकर्मी इनके शिकार हुए हैं।

माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा भारत में आतंकवाद के खात्मे के साथ-साथ सैन्य कर्मियों के उत्थान के लिए अपनाई गई नीतियाँ इस प्रकार हैं :-

  1. 2014 से मोदी सरकार ने जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई है और आतंकवाद को पूरी तरह से खत्म करने की रणनीति बनाई है। हमने न केवल आतंकवाद से निपटना जरूरी समझा है, बल्कि इसके इकोसिस्टम को भी ध्वस्त करने का काम किया है। अपनी दोतरफा नीति के कारण मोदी सरकार ने इन तीनों हॉटस्पॉट में बड़ी सफलता हासिल की है।
  2. सरकार ने सीएपीएफ के लिए आधुनिकीकरण योजना-III की निरंतरता में केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएपीएफ) के लिए आधुनिकीकरण योजना-IV को मंजूरी दी है। आधुनिकीकरण योजना-IV 01.02.2022 से 31.03.2026 तक चलेगी। 1,523 करोड़ रुपये के कुल वित्तीय परिव्यय के साथ सीएपीएफ के लिए आधुनिकीकरण योजना-IV को केंद्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह के मार्गदर्शन में गृह मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित किया जाना है और विभिन्न थिएटरों में उनकी तैनाती पैटर्न को ध्यान में रखते हुए सीएपीएफ को उनकी परिचालन आवश्यकता के अनुसार आधुनिक अत्याधुनिक हथियारों और उपकरणों से लैस किया जाएगा। इसके अलावा, CAPF को उन्नत आईटी समाधान भी प्रदान किए जाएंगे। इस योजना के कार्यान्वयन से CAPFs को समग्र परिचालन दक्षता/तैयारी में सुधार करने में मदद मिलेगी, जिसका देश में आंतरिक सुरक्षा परिदृश्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। इससे सरकार की अंतर्राष्ट्रीय सीमा/एलओसी/एलएसी के साथ-साथ वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित क्षेत्रों, केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर, लद्दाख और उग्रवाद से प्रभावित पूर्वोत्तर राज्यों जैसे विभिन्न क्षेत्रों में आने वाली चुनौतियों का समाधान करने की क्षमता बढ़ेगी।
  3. भारत सरकार ने सीमा पार से घुसपैठ से निपटने के लिए एक अच्छी तरह से समन्वित और बहुआयामी रणनीति अपनाई है। इसमें अंतर्राष्ट्रीय सीमा (आईबी)/नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर बलों की सामरिक तैनाती, निगरानी कैमरे, नाइट विजन कैमरे, हीट सेंसिंग गैजेट आदि जैसी तकनीक का उपयोग, आईबी/एलओसी पर बहु-स्तरीय तैनाती, सीमा पर बाड़ लगाना, घुसपैठ पर अग्रिम और लक्ष्य-उन्मुख इनपुट एकत्र करने के लिए खुफिया कर्मियों की तैनाती, सेना/सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) द्वारा घात और पैदल गश्त, स्थानीय खुफिया जानकारी जुटाने और घुसपैठियों के खिलाफ सक्रिय कार्रवाई करने के लिए सीमा पुलिस चौकियों की स्थापना शामिल है। सीमा पार से घुसपैठ से निपटने के लिए भारत सरकार द्वारा अपनाए गए दृष्टिकोण ने घुसपैठ में उल्लेखनीय गिरावट सुनिश्चित की है। जिसका वर्षवार विवरण इस प्रकार है –

Year 2019 2020 2021 2022 2023 (upto 30th June)
Net infiltration 141 51 34 14 00

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व में नव विकसित सीसीएमएस आतंकवाद और संगठित अपराध के मामलों के खिलाफ एनआईए को मजबूत करेगा। गृह मंत्री श्री अमित शाह ने जम्मू और कोच्चि में एनआईए के 2 नए शाखा कार्यालयों और रायपुर में एक आवासीय परिसर का ई-उद्घाटन किया। सीसीएमएस एनआईए के कामकाज के समन्वय में सुधार करेगा जिससे न्याय प्रणाली में सुधार होगा। एनआईए ने सीसीएमएस को एक उपयोगकर्ता के अनुकूल ब्राउज़र आधारित सॉफ्टवेयर के रूप में विकसित किया है। गृह मंत्री ने एक मोबाइल ऐप ‘संकलन’ भी लॉन्च किया – एनसीआरबी द्वारा नए आपराधिक कानूनों का एक संग्रह ‘संकलन’ एक व्यापक मार्गदर्शिका है, जो पुराने और नए कानूनी प्रावधानों की विस्तार से तुलना करने में सक्षम है। पुराने और नए आपराधिक कानूनों के बीच एक सेतु के रूप में नए आपराधिक कानूनों को समझने के लिए संकल्प ऐप तैयार किया गया है। संकल्प ऐप गूगल प्ले स्टोर, एप्पल स्टोर पर डाउनलोड के लिए उपलब्ध होगा और इसका डेस्कटॉप संस्करण गृह मंत्रालय और एनसीआरबी की आधिकारिक वेबसाइटों से डाउनलोड किया जा सकता है।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि सशस्त्र बल विदेशी हथियारों और उपकरणों पर निर्भर न हों, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि असली ताकत ‘आत्मनिर्भर’ होने में निहित है, खासकर जब कोई आपातकालीन स्थिति उत्पन्न होती है।

युद्ध की प्रकृति में प्रौद्योगिकी द्वारा एक आदर्श बदलाव लाया गया है। “आज अधिकांश हथियार इलेक्ट्रॉनिक-आधारित प्रणाली हैं, जो विरोधियों को संवेदनशील जानकारी बता सकते हैं। चूंकि आयातित उपकरणों की कुछ सीमाएँ हैं, इसलिए हमें क्षितिज से आगे जाने और विशिष्ट तकनीकों में आत्मनिर्भरता हासिल करने की आवश्यकता है। नवीनतम हथियार/उपकरण हमारे सैनिकों की बहादुरी के समान ही महत्वपूर्ण हैं। यदि भारत वैश्विक स्तर पर एक सैन्य शक्ति बनना चाहता है, तो रक्षा निर्माण में आत्मनिर्भर होने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है। ”रक्षा मंत्री ने 2023 में कहा जब उन्होंने एक मजबूत रक्षा पारिस्थितिकी तंत्र बनाने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदमों को भी गिनाया, जो न केवल घरेलू आवश्यकताओं को पूरा करता है, बल्कि मित्र देशों की सुरक्षा जरूरतों को भी पूरा करता है। इनमें उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में रक्षा औद्योगिक गलियारे (डीआईसी) की स्थापना; वित्त वर्ष 2023-24 में रक्षा पूंजी खरीद बजट का रिकॉर्ड 75 प्रतिशत (लगभग एक लाख करोड़ रुपये) घरेलू उद्योग के लिए निर्धारित करना; निजी उद्योग के लिए 25 प्रतिशत अनुसंधान एवं विकास बजट तथा स्टार्ट-अप को बढ़ावा देने के लिए रक्षा उत्कृष्टता के लिए नवाचार (आईडीईएक्स) पहल और प्रौद्योगिकी विकास कोष शामिल हैं।

संदर्भ ग्रन्थ :-

● अटल बिहारी वाजपेयी: गठबंधन की राजनीति, ‘पोखरण से कारगिल तक’ भाषण से, संपादक, डॉ. ना. मा. घटाटे, प्रभात प्रकाशन, दिल्ली
● Kargil From Surprise to Victory, General V. P. Malik, New Delhi
● My country my life, L.K. Advani, New Delhi

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