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प्राण जाय पर धरम न जाई कहनेवाले धर्मवीर संतश्रेष्ठ रविदास महाराज

sant ravidas maharaj jayanti 2025

संत रविदासजी की महानता और भक्ति भावना की शक्ति के प्रमाण इनके जीवन के अनेक घटनाओ में मिलती है. जिसके कारण उस समय का सबसे शक्तिशाली राजा मुगल साम्राज्य बाबर भी संत रविदासजी के सामने नतमस्तक था और जब वह संत रविदास जी से वो मिलता है, तो संत रविदास जी बाबर को दण्डित कर देते है जिसके कारण बाबर का हृदय परिवर्तन हो जाता है और फिर सामाजिक कार्यो में लग जाता था ।

उस समय मुस्लिम शासकों द्वारा प्रयास किया जाता था कि येन केन प्रकारेण हिंदुओं को मुस्लिम बनाया जाये। संत रविदासजी की ख्याति लगातार बढ़ रही थी, उनके लाखों भक्त थे जिनमें हर जाति के लोग शामिल थे। ये देखते हुए उस समय का परिद्ध मुस्लिम ‘सदना पीर’ उनको मुसलमान बनाने आया था, उसका सोचना था कि संत रविदास जी को मुस्लिम बनाने से उनके लाखो भक्त भी मुस्लिम हो जायेंगे. ऐसा सोचकर उनपर अनेक प्रकार के दबाव बनाये जाते थे। किन्तु संत रविदासजी की श्रद्धा और निष्ठा हिन्दू धर्म के प्रति अटूट रहती है।
सदना पीर ने शास्त्रार्थ करके हिंदू धर्म की निंदा की और मुसलमान धर्म की प्रशंसा की। संत रविदासजी ने उनकी बातों को ध्यान से सुना और फिर उत्तर दिया और उन्होनें इस्लाम धर्म के दोष बताते हुआ कहा कि..

वेद धरम है पूरन धरमा
वेद अतिरिक्त और सब भरमा।
वेद वाक्य उत्तम धरम, निर्मल वाका ग्यान
यह सच्चा मत छोड़कर, मैँ क्योँ पढूँ कुरान
स्त्रुति-सास्त्र-स्मृति गाई, प्राण जाय पर धरम न जाई।।

वे आगे कहते हैँ कि, मुझे कुरान मे बहिश्त की हूयी हूरे नहीँ चाहिए क्योँकि ये तो व्यर्थ बकवाद है।

कुरान बहिश्त न चाहिए मुझको हूर हजार|
वेद धरम त्यागूँ नहीँ जो गल चलै कटार||
वेद धरम है पूरन धरमा|
करि कल्याण मिटावे भरमा||

सत्य सनातन वेद हैँ, ज्ञान धर्म मर्याद|
जो ना जाने वेद को वृथा करे बकवाद||

संत रविदासजी के तर्को के आगे सदना पीर टिक न सका । वो आया तो था संत रविदासजी को मुसलमान बनाने के लिये लेकिन वह स्वयं हिंदू बन बैठा। रामदास नाम से इनका शिष्य बन गया। याने उसने स्वयं इस्लाम छोड़ दिया।

इसी प्रकार की सिकंदर लोदी के दिल्ली मे शासन के समय की घटना हैं।
रविदासजी के विषय में सिकंदर लोधी भी काफी सुन रखा था। उसने संत रविदासजी को मुसलमान बनाने के लिये दिल्ली बुलाया और उन्हें मुसलमान बनने के लिये बहुत सारे प्रलोभन दिये। संत रविदासजी ने काफी निर्भीक शब्दों में उसकी निंदा की।
सुल्तान सिकन्दर लोदी को जवाब देते हुए रविदासजी ने वैदिक हिन्दू धर्म को पवित्र गंगा के समान कहते हुए इस्लाम की तुलना तालाब से की है-

मैँ नहीँ दब्बू बाल गंवारा
गंग त्याग गहूँ ताल किनारा
प्राण तजूँ पर धर्म न देऊँ
तुमसे शाह सत्य कह देऊँ
चोटी शिखा कबहुँ तहिँ त्यागूँ
वस्त्र समेत देह भल त्यागूँ
कंठ कृपाण का करौ प्रहारा
चाहे डुबाओ सिँधु मंझारा

संत रविदास जी की बातो से चिढ़कर सिकंदर लोदी ने संत रविदासजी को जेल में डाल दिया। लोदी ने कहा कि यदि वे मुसलमान नहीं बनेंगे तो उन्हें कठोर दंड दिया जायेगा। मगर जेल में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने संत रविदासजी को दर्शन दिये और कहा कि धर्मनिष्ठा तथा सेवा ही आपकी रक्षा करेगी। अगले दिन जब सुल्तान सिकंदर नमाज पढ़ने गया तो सामने रविदास को खड़ा पाया। उसे चारो दिशाओं में संत रविदासजी के ही दर्शन हुये। यह चमत्कार देखकर सिकंदर लोदी घबरा गया। लोदी ने तत्काल संत रविदासजी को रिहा कर दिया और माफी मांग ली।

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