विश्व जनसंख्या दिवस और भारत की चुनौतियाँ
सभी को समझना होगा कि अजेय और समृद्ध भारत के निर्माण में जनसंख्या वृद्धि बड़ी बाधा है।
जनसंख्या नीति का संबंध प्रत्येक नागरिक के जीवन में खुशहाली एवं समृद्धि लाने से है। पूरी दुनिया में बढ़ती जनसंख्या से विकास के प्रभावित होने की चर्चाएं चल रही हैं।जहां भी जनसंख्या नियंत्रित करने के प्रयास हुए हैं वहां विकास की गति बढ़ी है। जनसंख्या नियंत्रण के लिए सभी को राजनीतिक दल, जाति, मजहब व संप्रदाय की राजनीति से आगे बढ़कर राष्ट्रहित तथा समाज हित में जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने में मदद करें। कानून बनाकर जनसंख्या नियंत्रित करने से देश की जनता को प्रदूषण, दुर्बलता ,रोग , बेरोजगारी, अशिक्षा के साथ ही अन्य कई समस्याओं से मुक्ति मिल सकेगी । बढ़ती जनसंख्या की चुनौती पर चर्चा होती है लेकिन राजनैतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण ठोस कार्रवाई नहीं होती है। राजनेताओं का एक वर्ग इसे साम्प्रदायिक तूल देने लगता है।
ताजा आंकड़ों के अनुसार भारत की आबादी 140 करोड़ के करीब हो चुकी है. प्रतिदिन भारत में औसतन 75 हजार बच्चों का जन्म होता है। आबादी के मामले में पूरे विश्व में भारत लगभग 18% आबादी का योगदान देते हुए दूसरे नंबर पर आ चुका है. इस बढती आबादी ने हमारे देश के संसाधनों पर भी असर डालना शुरू भी कर दिया हैं. इसी का परिणाम है की आज देश में चारों ओर गरीबी, बेरोजगारी, भुखमरी, प्रदुषण और अपराध जैसी तस्वीरे देखने और सुनने को मिलती रहती हैं।देश में 50 फ़ीसदी समस्याओं के लिए जनसंख्या विस्फोट को जिम्मेदार बताते हुए जनसंख्या नियंत्रण कानून पूरे देश में लागू करने के लिए याचिका दायर की गई है। भारत के लोगों में भी जनसंख्या वृद्धि को लेकर जागरूकता देखने को मिल रही है. अगर सरकार इस मामले को गंभीरता से नहीं लेती है तो आने वाले कुछ सालों में भारत की स्थिति बद से बदतर होने से कोई नहीं रोक सकता है।
भारत में भौतिक संसाधन सीमित हैं और जनसंख्या लगातार बढ़ती जा रही है। आशंका है अगले 10-12 साल में हमारी जनसंख्या 1.5 अरब को पार कर जाएगी। 1857 में भारत का क्षेत्रफल 83 लाख वर्ग किलोमीटर था। तब हमारी जनसंख्या 35 करोड़ थी। आज भारत का क्षेत्रफल 33 लाख वर्ग किलोमीटर रह गया है जबकि जनसंख्या 138 करोड़ पहुंच गई है। दुनिया की18 प्रतिशत जनसंख्या भारत में निवास करती है किन्तु इस देश के पास यहां जमीन 2.4 फीसदी, पीने का पानी चार फीसदी तथा वन क्षेत्र 2.4 फीसदी है।यह आंकड़ें चिंता पैदा करने वाले हैं। जनसंख्या नियंत्रित नहीं किया गया तो आने वाले दिनों में लोगों के लिए आवास की दिक्कतें भी हो सकती हैं।
किसी भी देश का सर्वांगीण विकास तभी हो सकता है जब उस देश का समाज भी जागरूक होगा। देश में बढ़ती जनसंख्या बेरोजगारी को जन्म देती है. जहां बेरोजगारी बढ़ेगी वहां गरीबी, भूखमरी, प्रदूषण और अपराध जैसी समस्याएं उत्पन्न होना स्वभाविक है। इस परिस्थिति में देश के विकास की कल्पना करना भी स्वप्न देखने के समान है. यदि किसी देश की जनसंख्या तेजी से बढ़ेगी तो उस देश में मौजूद आधारभूत संरचना और संसाधनों पर भी दबाव बढ़ेगा। ऐसा होने से देश में विकास गति स्वतः धीमी पड़ जाएगी और देश गरीबी के कुचक्रों में फंसता चला जायेगा। भारत की सभी प्रकार की समस्या के मूल में जनसंख्या विस्फोट ही है। भारत की जनसंख्या वर्तमान दर बढ़ती रही तो जल्दी ही चीन को पछाड़कर यह दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन जाएगा, जो भारत की उपलब्धि में तो नहीं बल्कि अवन्ति का कारण बन जाएगा। संसाधनों का वितरण समुचित तरीके से बाधित होगा। बढ़ती जनसंख्या रोकने के लिए अविलंब जनसंख्या नियंत्रण कानून नहीं बना तो भारत को गृहयुद्ध से बचा पाना नामुमकिन हो जाएगा।
ऐसा नहीं है कि इन बातों पर देश के बुद्धिजीवियों का ध्यान नहीं जा रहा है , बल्कि समाज के कई संगठन और बुद्धिजीवीयों ने भारत की बढ़ती जनसंख्या पर चिंता व्यक्त की है। जनसंख्या समाधान फाउंडेशन के तहत इस जनसंख्या नियंत्रण कानून की मांग पिछले 8 वर्षों से की जा रही है. इस संगठन के माध्यम से देश में कई जगहों पर जन जागरण के कार्य किये जा रहे हैं। लोगों को बढ़ती जनसंख्या से होने वाले नुकसान के बारे में भी बताया जा रहा है ,उनके द्वारा देश के सांसदों और विधायकों से मिलकर उन्हें जनसंख्या नियंत्रण कानून लाने और लागू करवाने का प्रयास भी जारी है।