वे पंद्रह दिन…/11अगस्त,1947
स्वाधीनता का अमृत महोत्सव
सुबह के ग्यारह बजे हैं. आज सूर्य बहुत आग उगल रहा है. बारिश के कोई आसार नजर नहीं आ रहे हैं. आकाश एकदम स्वच्छ है. सप्ताह भर पहले अच्छी बारिश हुई थी, इसलिए आसपास का वातावरण हरा-भरा है.
कलात…. बलूचिस्तान के प्रमुख शहरों में से एक. क्वेटा से केवल नब्बे मील दूरी पर स्थित सघन जनसंख्या वाला यह शहर है. मजबूत दीवारों के भीतर बसे हुए इस शहर का इतिहास दो-ढाई हजार वर्ष पुराना है. कुजदर, गंदावा, नुश्की, क्वेटा जैसे शहरों में जाना हो तो कलात शहर को पार करके ही जाना पड़ता था. इसीलिए इस शहर का एक विशिष्ट सामरिक महत्त्व भी था. बड़ी-बड़ी दीवारों के अंदर बसे इस शहर के मध्यभाग में एक बड़ी सी हवेली है. इस हवेली के, (गढी के) जो खान हैं, उनका ‘राजभवन’ यह बलूचिस्तान की राजनीति का प्रमुख केन्द्र है. इस राजभवन में मुस्लिम लीग, ब्रिटिश सरकार के रेजिडेंट और कलात के मीर अहमद यार खान की एक बैठक चल रही है. इनके बीच एक संधि पर हस्ताक्षर होने वाले हैं, जिसके माध्यम से आज दिनांक से, अर्थात् 11 अगस्त 1947 से, कलात एक स्वतन्त्र देश के रूप में काम करने लगेगा.
ब्रिटिश राज्य व्यवस्था में बलूचिस्तान के कलात का एक विशेष स्थान पहले से ही है. सारी 560 रियासतों और रजवाड़ों को इन्होंने ‘अ’ श्रेणी में रखा है, जबकि सिक्किम, भूटान, और कलात को उन्होंने ‘ब’ श्रेणी की रियासत का दर्जा दिया हुआ है. अंततः दोपहर एक बजे संधि पत्र पर तीनों के हस्ताक्षर हो गए. इस संधि के द्वारा यह घोषित किया गया कि कलात अब भारत का राज्य नहीं रहा, बल्कि यह एक स्वतन्त्र राष्ट्र है. मीर अहमद यारखान इस देश के पहले राष्ट्रप्रमुख हैं.
कलात के साथ ही मीर अहमद यार खान साहब का पूर्ण वर्चस्व इस इलाके के पड़ोस में स्थित लासबेला, मकरान और खारान क्षेत्रों पर भी हैं. इसलिए भारत और पाकिस्तान का निर्माण होने से पहले ही, इन सभी भागों को मिलाकर, मीर अहमद यार खान के नेतृत्व में बलूचिस्तान राष्ट्र का निर्माण हो गया है…!
मद्रास.
यहां पर जस्टिस पार्टी की बैठक जारी है. यह पार्टी 31 वर्ष पुरानी है, लेकिन आज भी यह ब्राह्मणवाद विरोधी राजनीति ही करती है. इसके अध्यक्ष पी.टी. राजन ने इस बैठक में भारत की स्वतंत्रता का स्वागत करने संबंधी प्रस्ताव रखा, जो बहुमत से पारित किया गया. यह भी निश्चित किया गया कि, पन्द्रह अगस्त के दिन मद्रास राज्य में स्वतंत्रता दिवस उत्साह और उल्लास के साथ मनाया जाएगा.
इसके साथ ही यह प्रस्ताव भी पारित किया गया कि भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद तत्काल ही भाषावार प्रान्तों की रचना करने की मांग रखी जाएगी.
बंगाल के पूर्व में स्थित जेस्सोर, खुलना, राजशाही, दीनाजपुर, रंगपुर, फरीदपुर, बारीसाल, नदिया जैसे गांवों में शाम के साढ़े पांच बजे दीप प्रज्ज्वलन और रोशनी का समय हो चुका है. अंधियारी शाम का यह उदास वातावरण, हल्की बारिश और संभावित दंगों का भय… इनके कारण समूचे वातावरण में एक मलिनता सी छाई हुई है. ये सभी गांव हिन्दू बहुल थे, परन्तु पिछले वर्ष ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ के बाद से ही यहां मुस्लिम लीग के गुंडे बेहद आक्रामक हो चले हैं. इन्होंने हिन्दू डॉक्टरों, प्राध्यापकों और जमींदारों को पश्चिम बंगाल भाग जाने का आदेश दिया हुआ है.
बारिसाल… साठ-सत्तर हजार जनसंख्या वाला छोटा सा शहर. इसे पूर्व का वेनिस भी कहा जाता है. ‘कीर्तन खोला’ नदी के किनारे पर बसा हुआ यह शहर, पूरी तरह से हिन्दू संस्कृति में रचा-बसा है. बारिसाल पर तो बंगाल के नवाब का शासन भी संभव नहीं हुआ था. अंग्रेजों द्वारा बंगाल को अधीन करने से पहले यहां के अंतिम राजा थे, राजा रामरंजन चक्रवर्ती. मुकुंद दास नामक कविराज द्वारा निर्मित भव्य काली मंदिर और हिन्दू राजाओं द्वारा निर्माण किया गया विशाल दुर्गा सरोवर… बारिसाल की विशिष्टता हैं. ऐसे हिन्दू चेहरे-मोहरे-संस्कृति वाले बारिसाल से हिन्दुओं को मुसलमान, जबरन बाहर निकाल रहे हैं. पता नहीं बारिसाल और समूचे पूर्वी बंगाल के हिन्दुओं ने कौन से पाप किए हैं..?