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मुंबई उच्च न्यायालय: लाउडस्पीकर का इस्तेमाल करना कोई धार्मिक प्रथा का अंग नहीं

Use of loudspeaker is not an essential part of any religion bombay high court

जस्टिस अजय गडकरी और श्याम चांडक की बेंच ने मुंबई पुलिस को 23 जनवरी 2025 को ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) नियम, 2000 को सख्ती से लागू करने के निर्देश दिए है। कुर्ला के नेहरू नगर में 9 मस्जिदों के लाउडस्पीकर से परेशान निवासियों ने पुलिस के पास कई बार शिकायत करने पर भी कारवाई न करने के कारणों को आगे किया जाता रहा। इसी विषय में स्थानिकों द्वारा कोर्ट में याचिका दायर करने पर कोर्ट ने महत्वपूर्ण टिप्पणी की।

मुंबई के कुर्ला और चूनाभट्टी इलाकों में दो रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएश द्वारा दायर याचिकाओं के अनुसार अजान और प्रवचनों के लिए लाउडस्पीकरों का उपयोग ध्वनि प्रदूषण का कारण बन रहा है। साथ ही उनके इलाकों में शांति को बाधित कर रहा है। मस्जिदों और अन्य धार्मिक आयोजनों में इस्तेमाल किए जाने वाले लाउडस्पीकरों से होने वाला शोर तय सीमा से अधिक है, और इस तरह की प्रथाएँ शांतिपूर्ण वातावरण के उनके अधिकार का उल्लंघन कर रही है। याचिकाओं में कहा गया है कि पुलिस की निष्क्रियता लापरवाही और ध्वनि प्रदूषण नियमों का उल्लंघन है।

याचिकाकर्ताओं के अनुसार पुलिस प्रशासन और अधिकारियों से बार-बार शिकायत करने के बावजूद लाउडस्पीकरों के ऐसे इस्तेमाल के खिलाफ कोई कारवाई नहीं की गई। पुलिस की ओर से इसे प्रदुषण नियंत्रण बोर्ड (PCB) का काम बताया जाता रहा। याचकाकर्ताओं के अनुसार, PCB के काम करने के तरीकों पर आपत्ति जताते हुए कहां की, PCB की करवाई होने के लिए 2 वर्ष इस अधिक समय भी जा सकता है। इस कारवाई तक स्थानिकों को ध्वनि प्रदूषित वातावरण में समय बिताना होगा।

वहीं मुंबई उच्च न्यायालय ने फ़ैसले में इस बात पर ज़ोर दिया कि संविधान धर्म का पालन करने और उसका प्रचार करने की आज़ादी की गारंटी देता है, लेकिन यह अधिकार उन प्रथाओं तक नहीं पहुँचता जो दूसरों के अधिकारों का हनन करती हैं। कोर्ट ने कहा कि लाउडस्पीकर के इस्तेमाल को किसी भी धार्मिक प्रथा का अभिन्न अंग नहीं माना जा सकता।

न्यायालय ने राज्य को धार्मिक स्थलों पर इस्तेमाल किए जाने वाले लाउडस्पीकर, वॉयस एम्प्लीफायर, पब्लिक एड्रेस सिस्टम या किसी अन्य ध्वनि-उत्सर्जक गैजेट के डेसिबल स्तर को नियंत्रित करने के लिए उचित कार्रवाई करने का निर्देश दिए है। न्यायालय ने सुझाव दिया कि सरकार ऐसे लाउडस्पीकर और एम्प्लीफायर के लिए डेसिबल सीमा को कैलिब्रेट करने या स्वचालित रूप से सेट करने के लिए निर्देश जारी कर सकती है। साथ ही महाराष्ट्र पुलिस अधिनियम के सेक्शन 38, 136 और 70 के तहत इन मामलो में एक्शन लेना पुलिस की जवाबदेही है।

न्यायालय ने सरकार को निर्देश दिया कि पुलिस अधिकारी ऐसे लाउडस्पीकर के डेसिबल लेवल की निगरानी के लिए मोबाइल ऐप का इस्तेमाल करें। अगर उल्लंघन पाया जाता है, तो पुलिस को उपकरण जब्त कर लेना चाहिए और उचित कारवाई करनी चाहिए। इस करवाई के तहत ध्वनि मर्यादाओं का उल्लंघन करने वालों को पहले समझ दी जाए, दूसरी बार में मर्यादा उल्लंघन हो तो 5000 रु. से दंडित किया जाए, और फिर भी ध्वनि मर्यादाओं का उल्लंघन हो तो लाऊड स्पीकर को जब्त किया जाए।

याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता कौशिक म्हात्रे ने न्यूज़ डंका से कहा की महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री स्वयं एक वकील है। इसीलिए यह सरकार न्यायालय के निर्देशों को पालन ठीक तरह से करेगी ऐसा उन्हें विश्वास है।

साभार :- NEWS डंका

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