प्रयागराज महाकुम्भ से सनातन बौद्ध एकता का दिया संदेश
दुनिया के कई देशों के भंते, लामा व बौद्ध भिक्षुओं व सनातन के धर्माचार्यों की उपस्थिति में प्रयागराज महाकुम्भ से सनातन- बौद्ध एकता का संदेश दिया गया। बुद्धं शरणं गच्छामि, धम्मं शरणं गच्छामि, संघम् शरणम गच्छामि के संदेश को जन-जन तक पहुंचाने के उद्देश्य से बुधवार को बौद्ध महाकुम्भ यात्रा निकाली। यात्रा का समापना जूना अखाड़े के आचार्य महामण्डलेश्वर स्वामी अवधेशानन्द गिरि जी के प्रभु प्रेमी शिविर में हुआ। इस अवसर पर तीन प्रमुख प्रस्ताव पारित किए गए। पहला, बांग्लादेश पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार बंद हो; दूसरा प्रस्ताव तिब्बत की स्वायत्तता को लेकर पारित हुआ; तीसरा प्रस्ताव सनातन व बौद्ध एकता को लेकर पारित किया गया।
दूसरा है समागम। देश में विविध प्रकार के मत-मतांतर के सभी श्रेष्ठ संत यहां आकर आपस में मिलकर संवाद व चर्चा करते हैं। संत एक साथ आएंगे तो सामान्य लोग भी एक साथ मिलकर चलेंगे। तीसरा है समन्वय। विश्व में चलना है तो सबको साथ लेकर चलना।
भय्याजी जोशी ने कहा कि कुछ लोगों ने एकत्र होकर चर्चा की कि सारे विश्व पर किसका प्रभाव होगा तो कहा गया कि जिसके पास भौतिक सम्पदा होगी, वह प्रभावित करेगा। दूसरे ने कहा कि जिसके पास संख्या होगी, वह नेतृत्व करेगा। तीसरा पक्ष आया कि विश्व को संचालित वही करेंगे जो सबको साथ लेकर चलने की ताकत रखता हो। वह शक्ति भारत के पास है।
सारे विश्व को भारत को समझना होगा तो इस प्रकार के पर्वों को समझना होगा। महाकुम्भ में एक बार आएं, सब प्रकार की भ्रान्तियां समाप्त होंगी। जो कहते हैं यहां आपस में विवाद है। यहां आकर एक संग, एक समाज के रूप में चलते हैं, यह देखने को मिलेगा।
उन्होंने कहा कि डॉ. आम्बेडकर ने हमें संविधान दिया। उस संविधान की पहली पंक्ति है, हम भारत के लोग। उन्होंने जाति बिरादरी के लोग, ऐसा नहीं कहा। ग्रन्थ, पूजा-पद्धति, सम्प्रदाय कोई भी होगा, संविधान के अनुसार सारा भारत एक है। भारत माता की जय बोलने वाले सब एक माता के पुत्र हैं। जो इस मिट्टी के प्रति श्रद्धा व भक्ति रखता है, वह वंदे मातरम बोलता है। भय्याजी जोशी ने कहा कि जब तक शुद्धता, प्रतिबद्धता का संस्कार नहीं होगा, तब तक समन्वय नहीं होगा।
कार्यक्रम में निर्वासित तिब्बत सरकार की मंत्री गैरी डोलमा ने कहा कि हम सब लोगों के लिए ऐतिहासिक आयोजन है। यह पावन धरती पर बहुत कुछ पहली बार हो रहा है, इतिहास रचा जा रहा है। मैं एक नए इतिहास में भाग ले रही हूं। सनातन व बौद्ध धर्म के बीच जिस तरह का प्रेम भावना होनी चाहिए, उसकी तरफ बहुत बड़ा कदम पावन धरती पर लिया गया है। महाकुम्भ में हम बौद्ध व सनातनी एक साथ आए हैं और कदम मिलाकर चल रहे हैं।
म्यांमार से आये भदंत नाग वंशा ने कहा कि मैं पहली बार महाकुम्भ में आया हूं। हम बौद्ध व सनातन में बहुत ही समानता है। हम लोग विश्व शांति के लिए काम करते हैं। हम भारत और यहां के लोगों को खुश देखना चाहते हैं। भारत सरकार बौद्ध धर्म का काम करने में सहयोग करती है।
अंतरराष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान के भदंत शीलरतन ने कहा कि हम सब एक थे, एक हैं, व एक रहेंगे। हम सब को सुखी करने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। जो सनातन मार्ग पर चलता है, जो कुशल कर्मों को करता है, वह कभी दुखी नहीं रहता। भारत कभी विचलित नहीं होता। भारत फिर से अखण्ड होगा और जगद्गुरू भारत बनेगा।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य इन्द्रेश कुमार ने कहा कि सनातन ही बुद्ध है। बुद्ध ही शास्वत व सत्य है। प्रधानमंत्री ने कहा था कि भारत के पास युद्ध नहीं, बुद्ध है। हम एक रहेंगे तो एक नया भारत व एक नया विश्व जो युद्ध मुक्त, छुआछूत मुक्त, गरीबी मुक्त होगा।
कुम्भ से सनातन व बौद्धमत के समन्वय की धारा को आगे ले जाकर काम करेंगे, सत्य का साक्षात्कार करेंगे।
वरिष्ठ पत्रकार गुलाब कोठारी ने कहा कि सबके मन में एक ही ईश्वर है। कुम्भ बहुत बड़ा शब्द है। यह त्रिवेणी से जुड़ा है। यहां से समता, स्वतंत्रता व बंधुत्व का संदेश जाना चाहिए।