भारत को जानो, भारत को मानो, भारत के बनो और भारत को बनाओ – मा. दत्तात्रेय होसबाले
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, कोंकण प्रांत द्वारा आयोजित, बौद्धिक श्रृंखला का तृतीय बौद्धिक, दिनांक, सितंबर २०, २०२० को विश्व संवाद केंद्र के ‘You Tube Channel’ पर श्याम ५ बजे प्रसारित हुआ। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सहसरकार्यवाह माननीय श्री दत्तात्रेय होसबालेजी ने, “भारत को जानो, भारत को मानो, भारत के बनो और भारत को बनाओ” इस विषय मार्गदर्शन किया। दत्ताजी १९६८ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघसे जुड़ गए। १९७२ में दत्ताजी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषदके कार्यकर्ता बन गए। १९७५ से १९७७ तक आपात काल में उन्हें कारावास हुआ। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषदमें वे संघटन मंत्रीके पद पर रह चुके हैं।
उद्बोधन के शुरुआतमें दत्ताजीने कोरोना महामारी, जिस से सृष्टिके सारे मानव पीड़ित हैं, उसका उल्लेख करते हुए कहा, यह संक्रमित बीमारी महानुभावोंसे सामान्य व्यक्ति तकको अपने शिकंजे में लेती हैं। कोरोना महामारी का जल्द से जल्द निवारण हो ऐसी कामना दत्ताजी ने भगवान से की। इस चुनौती पूर्ण परिस्तिथिमें भारतके बारेमे कुछ बातें सामने आई। भारत के लोगों की जो जीवनशैली हैं, जो जीवन प्रणाली हैं इसके कारण, यहाँकी जनसंख्या १३० करोड़ होने पर भी अन्य देशोंकी तुलनामें भारतमें इस बीमारीका प्रकोप कम हैं। हमें आयुर्वेदमें बताए गए उपाय, भारतीयोंकी आहार पद्धति, सोचनेके तौर-तरीके, कौटुंबिक जीवन शैली और योग इन सबके कारण, हम भारतीयोंमें रोगप्रतिकार शक्ति हैं, ऐसा सारी दुनियाने माना हैं। भारतके बड़े औद्योगिक शहरोंसे कोरोना महामारीके वजहसे रोज़गार उपलब्ध न होनेके कारण कई सारे मजदूरोने अपने गांव पलायन किया। इस पलायनके दौरान शारीरिक दूरी नहीं बनाई गई, फिरभी कमसे कम लोगोंमें इस बीमारीका संक्रमण हुआ। भारतके कई सारे गावोंकी लगभग ९५ प्रतिशत लोकसंख्या कोरोना बीमारीसे मुक्त हैं। अस्वछता और गैर-अनुशासन होनेके बावज़ूद इस कोरोना महामारीका उपद्रव कम हैं, यह समाधानकी बात हैं। आज सारी दुनिया जून २१, को आंतरराष्ट्रीय योग दिवस मानती हैं। पूरी दुनियाने आजके तारीखमें योगका महत्व जाना हैं और योग प्रसारके लिए योग दिवस मनाया जाता हैं। भारतकी ऐसी कई सारी परंपराका विश्वमें विस्तार हो रहा हैं। हमारे पूर्वजोंने, ऋषिमुनियोंने जिस एक विशेष पद्धतिको विकसित किया था, वो मनुष्यके शरीर, मन, बुद्धि और आत्माके विकासके लिए आवश्यक हैं। ऐसा सभीने अनुभवोंसे पाया। भारतके बहुत सारे आध्यात्मिक क्षेत्रके दिग्गज गुरु, साधुओने अन्य देशोमें जाकर आश्रमोंकी स्थापना की। उस देशके स्थानीय लोगोने उनके बताए मार्गको अपना कर, अपनी जीवन शैली सुधारी। उन आध्यात्मिक दिग्गजोने किसीका धर्मान्तर नहीं किया। अमेरिका राष्ट्रपति चुनाव के उमेदवार रह चुके तुलसी गब्बार्ड जन्म से हिंदू नहीं हैं। तुलसी गब्बार्डका परिवार इस्कॉनके संपर्कमें आया और उन्होंने अपनी जीवनशैली बदल दी। तुलसी गब्बार्ड भगवत गीता का अध्ययन करती हैं, भगवत गीतापर उद्बोधन करती हैं और स्वयंको हिंदू घोषित कर दिया। भारतके पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे.अब्दुल कलाम जब ग्रीस देश के दौरे पर गए थे, तब वहाँपर डॉ. अब्दुल कलाम जी के सम्मान में एक भोजन कार्यक्रमका आयोजन किया था। उस कार्यक्रम में स्वागत करते हुए ग्रीस देश के राष्ट्रपतिने कहा, “अहम ग्रीस देशस्य राष्ट्रपति, भारतस्य राष्ट्रपति महोदयः हार्दिक स्वागतम करोमि” ऐसे उन्होने संस्कृत में आरंभ किया। वहाँ पर उपस्थित सभी लोगों ने आश्चर्य व्यक्त किया। ग्रीस के राष्ट्रपती ने कहा “मुझे रामायण और महाभारत ग्रंथ पढ़ने थे, रामायण और महाभारत ग्रंथमें जीवनके बारेमे जो संदेश दिया हैं, जीवन कैसे बिताना चाहिए इसके बारेमें जो पाठ पढ़ाया हैं, उसे आत्मसात करने के लिए मैं जब जर्मनी में विद्यार्थी था, तब मैंने संस्कृत भाषाका अध्ययन किया था। यह बाते, दुनिया का भारतके प्रति आकर्षण सिद्ध करती हैं।
हमारे पूर्वजो ने इस भारत भूमि का वर्णन मातृभूमि, पुण्यभूमि, कर्मभूमि, योगभूमि, त्यागभूमि ऐसे कई विशेषणोंसे किया, स्तुति में महर्षि वेदव्यासजी ने ‘श्री भारत सावित्री स्तोत्र’ रचना की हैं। कई सारे कवियोने भारतकी प्रशंसा की हैं, तीर्थक्षेत्र, कला, संस्कृति, ज्ञान, जीवन पद्धति के बारे में सभी भारतीय साहित्यकारों ने अभिव्यक्त करने का सदैव प्रयत्न किया हैं। भारत-भक्ति यहाँ के लोगो के रक्तधमनियों में सदियों से, बहुत गेहेराई से बह रही हैं। बंकिमचंद्र चटर्जीने, आनंदमठ उपन्यासमें “वन्दे मातरम” गीत हैं, वह गीत भारतका अद्वितीय प्रशंसा गीत हैं। स्वतंत्रता आंदोलनमें क्रांतिकारी इसी गीतको गाते गाते फांसीके फंदेपर चढ़ गए। भारतके बारमे देवताएँ कहती हैं, “गायन्ति देवा: किल गीतकानि धन्यास्तु ते भारत भूमि भागे। स्वर्गापवर्गास्पद हेतुभूते भवन्ति भूय: पुरुषा: सुरत्वात॥ ” प्रस्तुत श्लोकमें देवतागण भारत देशके उत्कर्षका गान करते हुए, यहाँ पर स्वयं जन्म धारण करनेकी इच्छा प्रकट करते हैं| देवगणभी निश्चयही भारत भूमि की प्रशंसाके गीत गाते हैं| देवता; स्वर्ग और मोक्ष प्राप्तीके साधन स्वरूप, देवत्व को छोड़कर फिरसे मनुष्य रूपमें जन्म लेते हैं वह निश्चयही धन्य हैं| देवतागण गीत गाते हैं कि स्वर्ग और मोक्षको प्रदान करनेवाले मार्गपर स्थित भारतके लोग धन्य हैं। क्योंकि देवता भी जब पुनः मनुष्य योनिमें जन्म लेते हैं तो यहीं जन्मते हैं।
भारतके लोगोंकी प्रतिभा, प्रेम, आत्मीयता, मानवता के प्रति संवेदना के कारण, यहाँ की कीर्ति दुनिया के चारों दिशाओं में हजारों वर्षो से पहुंची हैं। दुर्भाग्य से अब तक शिक्षा प्रणाली में भारत को जानने का प्रयत्न ज्यादा नहीं हुआ। भारत के इतिहास को विकृत कर दिया। भारतको अंधकार युगमें बताया। ब्रिटिशोंके कारण भारतकी उन्नति हुई। ब्रिटिशों के कारण भारत राष्ट्र बनकर उभर आया। इन जैसी सारी बातोका अपप्रचार पाठशालाकी किताबोंमें हुआ। भारत के गौरवशाली इतिहास की सच्चाई लोगों के सामने आनी चाहिए। पाश्चिमात्य इतिहास सिर्फ ईसा और पूर्व ईस्वी में बटा हैं। पर हमारे भारत का इतिहास चार युगों का हैं। भगवान श्री परशुराम का सत्य युग, प्रभु श्रीराम का त्रेता युग, भगवान श्रीकृष्ण का द्वापार युग और आज के कलि युग का पांच हजार वर्षों का इतिहास भारतीय संपन्नता को दर्शाता हैं। रामायण और महाभारत के अस्तित्व को नकारने के विफल प्रयत्न कई लोगों ने किए। भारत अंधकार युग में था, भारत में विज्ञान आधार ही नही था इसे भी लोग कहते हैं, पर वे भारत के चौषष्ठ कलाओंसे प्रतित नहीं हैं। जीवनके हर क्षेत्रमें भारतके लोगोंने विभिन्न प्रकारके कई आयामोंमें बहुत प्रगति हासिल की हैं। वास्को डी गामाने लिखा हैं की, उसे कालीकत बंदर तक पहुंचानेवाले गुजराथी व्यापारी कांजी मालमके जहाज कई गुना बड़े थे। इस बातसे ज्ञात होता हैं की, भारत समंदर मार्गसे कई शतकोंसे अंतरराष्ट्रीय व्यापार कर रहा हैं। कृषि, उद्योग, कला, साहित्य, संगीत और व्याकरणसे लेकर वेद-उपनिषद् तक अगाद ज्ञान भंडार उपलब्ध था। औषधनिर्माण, नगरनिर्माण, वस्त्रनिर्माण जैसे अन्य कई तंत्रज्ञान भारतके विश्वविद्यालयोंमें पढ़ाऐ जाते थे। धर्मपालजी करके एक बहुत बड़े विद्वान् थे। गाँधी विचारोंपर उनका जीवन निर्भर था। जब अंग्रेज़ोंका भारतपर राज था, तब उन्होंने भारतसे जो जानकारी इकट्ठा की थी, वह जानकारी धर्मपालजीने अंग्रेजोंके संग्रहालयके अभिलेखागारमें बैठकर महिनोतक अध्ययन करके किताबें लिखी। धर्मपालजीने “one beautiful tree” नामक, शिक्षाके बारेमे एक किताब लिखी। १८ वी सदी तक भारतकी शिक्षा, विज्ञान और तंत्रज्ञान कैसे संपन्न थे, यह बाते संदर्भ और सबूतोंके आधारपर साबित किया हैं। भारतमें बिजली १९०५ में आई। बिजलीके बावजूद भारतमें निर्माणका कार्य शुरू था। दक्षिण भारतमें बिजलीके बिनाही मंदिर स्थापत्य कला का विकास हुआ। पुराने ज़माने मे, भारत में यातायातके साधन उपलब्ध थे, और इसी कारण देशांतर्गत व्यापरको प्रोत्साहन मिला। विल दुरांत नामक अमेरिकाके बड़े इतिहास कार थे। उन्होंने दुनियाके कई सरे सभ्यताओंका अध्ययन करके, उनपर किताबें लिखी। विल दुरांतके मुताबिक़ संस्कृत भाषाके व्याकरणके कारण अन्य भाषाओंका विकास हुआ। भारतके प्राचीन पंचायतराजके आधारपर, पश्चिमी देशोंमें लोकशाही पद्धतिका विकास हुआ। भारतमें विकसित हुए बौद्ध धर्मके आधारपर, ईसाई धर्मके चर्चका विकास हुआ। भारतीयोंने विकसित किए हुए, गणित आकड़ोंकी वजहसे पश्चिमी देशोंको गणितका ज्ञान प्राप्त हुआ। विल दुरांतने कहा “India is a mother of us all” यानि भारत हम सबकी जननी हैं। चीनके एक राजदूत जो अमेरिकामें थे, उन्होंने कहा, ” बिना सैनिक या सेना, दो हजार वर्षोंतक भारतीयोंने, भारतके संस्कृतिने, आध्यात्मने, जीवन प्रणालीने, चीनी समाजके ऊपर अपना वर्चस्व रखा। अमेरिकाके मार्क ट्वेनने कहा “भारत मानव जातिका झूला हैं, मानव वाणीका जन्मस्थान हैं, इतिहासकी जननी हैं, विभूतियोंकी दादी हैं और परंपराकी परदादी हैं। मनुष्यके इतिहासमें हमारी सबसे मूल्यवान और सबसे कलात्मक सामग्रीका भंडार भारतमें ही पाया जाएगा!” महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टाइनने कहा ” भारतके गणितके कारण सारे संसारकी प्रगति हुई, इसीलिए हम भारतके प्रति कृतज्ञ रहेंगे।” भारतके बारेमे इन महानुभावोंने जो भाष्य किये हैं, उसका कारण हम सबको जानना जरूरी हैं। हमारे शिक्षा प्रणालीमें इन सब बातोंको जितना महत्व देना चाहिए था, उतना महत्व नहीं दिया गया, और इसी वज़ह भारतके प्रति गलत फ़ैमी, विकृत धारणाएँ प्रकट हुई।
भारत का वर्णन “संयोगिआवेद” यानि संगीत, योग, गीता, वेद और आयुर्वेदका जनक ऐसा किया जाता हैं। यह सारे विषय आज दुनियामें कुटुंब प्रणालीके लिए आवश्यक हैं। भारतको जान लेना, यानि भारतके इस ज्ञान भंडारका अध्ययन करना हैं। डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलामजी ने उनके पुस्तकमें एक प्रसंगका वर्णन किया हैं। जब डॉ. कलम वैज्ञानिक थे, तब उनसे मिलने, उनके दफ़्तरमें एक व्यक्ति आए। दफ़्तरकी दीवारपर एक वैज्ञानिक उपकरणका चित्र था। उस व्यक्तिने डॉ. कलामसे उस चित्रके बारेमें पूछताछ की। डॉ. कलमने कहा वह चित्र भारतीय बनावटकी एक बंदूकका हैं। उस व्यक्तिको विश्वास नहीं हुआ। वह बंदूक टिपूने म्हैसूरमें बनवाई थीं। वह तस्वीर एक भारतीयने खींची थी। हम भारतीयोंको विश्वास नहीं हैं, की भारतमें ऐसी बेहतरीन वस्तुओंका उत्पादन हो सकता हैं। भारतके जानेमाने अभियंता इ. श्रीधरनजीने कोंकण रेल और दिल्ली मेट्रोका निर्माण किया। कोंकणकी कठीन भौगोलिक परिस्थितिमें रेल मार्गका निर्माणका काम करना था। बंगलोरके इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस का हाइपरसोनिक विभाग पूरी तरहसे स्थानीय अभियंताकी मदतसे स्वदेशी वस्तुओंका इस्तेमाल करके बनाया हैं। जमशेदपुर के TISCONमें काम करने वाले बनर्जी नामक अभियंताने वहाँके स्थानिक जनजातीय लोगोंको प्रशिक्षण देकर उनसे बेहतरीन गुणवत्ताका स्टील उत्पादन किया। हम भारतीयोंको हमारे राष्ट्र, संस्कृति और सभ्यताके प्रति आत्मविश्वास होना जरूरी हैं।
जिस ईस्ट इंडिया कंपनी का उपयोग भारतपर राज करने के लिए किया गया, उस ईस्ट इंडिया कंपनीके मालिक आजके तारीखमें एक भारतीय हैं। अंगस मैडिसन नमक अर्थशास्त्रज्ञने कहा, जब सन १६०० साल में ईस्ट इंडिया कंपनीकी स्थापना हुई, तब भारतका आंतरराष्ट्रीय व्यापरमें हिस्सा २३ प्रतिशत था। भारत और चीन सिर्फ यह दो प्राचीन सभ्यताएँ हैं, जो अखंडित रूपसे जीवनके हर आयामों में आगे बढ़ते रहे। हमें भारतके श्रेष्ठताके प्रति विश्वास होना चाहिए, और उसी विश्वासको मनमें रखकर हमे भारतके बारेमें और ज़्यादा अध्ययन करना चाहिए, तभी जाकर हमें भारतके अद्भुत इतिहासका दर्शन होगा। सारी दुनियाको भारतसे उम्मीद हैं, कोरोना महामारीपर भारत वैक्सीन खोज निकालेगा। आज भारतकी सेना दुनियामें चौथी बड़ी सेना हैं। हमारी सुरक्षा सेना चीनसे कभी हार न मानकर, उसके करवाईका मुँह तोड़ जवाब देगी।
भारतके प्रति श्रद्धा, भक्ति, कुतूहल, प्रशंसा और प्रबल आकांक्षा का भाव होना चाहिए। साहित्यके नोबेल पुरस्कार विजेता विद्याधर सूरजप्रसाद नायपॉलजीने कहा, भारतमें अंग्रेज़से पहलेजो विदेशी लोग आकर गए, उन्होंने भारतके बारेमे क्या कहा, यह जानना जरुरी हैं। विदेशोंमें राष्ट्रीय स्तरकी एक अंग्रेजीके शब्दोंके अक्षर बतानेकी एक प्रतियोगिता आयोजित होती हैं। उस प्रतियोगितामें भारतीय मूलके विद्यार्थी हमेशा अव्वल आते हैं। और इसका कारण उनकी भारतीय अनुवांशिकता हैं। संस्कृत भाषामें वेद और उपनिषदोका अध्ययन करके हम भारतीयोंकी स्मरणशक्ति अनुवांशिक रूपसे बढ़ गई हैं।
माओ चीन देशके अध्यक्ष थे, तब भारतसे एक शिष्टमंडल चीनके औपचारिक दौरेपर गया था। तब माओने उन्हें बतायाकी चीनके लोगजो पुनर्जन्मपर विश्वास रखते हैं, वो कहते हैं की अगला जन्म हमे भारतमें चाहिए। यही बात चीनके एक अख़बारने सर्वेक्षण करके छाप दी, की चीनके ७० प्रतिशत लोगोंको भारतमें जन्म चाहिए। हम भारतीयोंका आचार नारियलकी तरह हैं। हम नारियल की तरह बाहरसे भूरे रंगके हैं, पर अंदरसे हमारा आचरण सफ़ेद रंगका हैं। यानि हमारा झुकाव पश्चिमके संस्कृतिकी ओर हैं। जैसे परदेश में NRI ये संज्ञा भारतीय लोगोको उद्देशी जाती हैं, ठीक उसी तरह भारतमें रहकर, भारतके ना होनेवाले लोगोंको NIR यानि नॉन इंडियन रेसिडेंट कहना चाहिए। हमे अपने आपको भारतका बनाना यानि, यहाँ की संस्कृति, जलवायु, मिट्टी, मातृभाषा, परंपरा, प्रकृति, इतिहास, भारतीय समाज इन सभी को अपनाना होगा। स्वामी विवेकानंदने कहा था, ” भारत मेरे बाल्यकालका झूला हैं, मेरे तरुणाईका वृंदावन और मेरे वृद्धापकालकी काशी हैं। स्वामी रामतीर्थने कहा, “मुझे भारत और अपनेमें कोई अंतर नहीं दिखता।” इन सभी बातोंका अर्थ ये होता हैं, भारतका बनना यानि भारतके लिए जीना। भारतका बननेमें अहंकार नहीं भक्ति भाव होना चाहिए, दुनियापर राज करनेके लिए नहीं, मानवताकी सेवा करनेके लिए भारतका बनाना हैं। भारतको विश्वगुरू बनानेके लिए भारतका होना जरुरी हैं। “एतद्देशप्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मनः।
स्वं स्वं चरित्रे शिक्षेरन् पृथिव्यां सर्वमानवाः॥”
इस देशमें समुत्पन्न ब्राह्मज्ञानीसे [विद्वान] पृथ्वी के समस्त मानव अपने अपने चरित्र्य की शिक्षा ग्रहण करें। भारतका बनना यानि केवल भारत के गौरवशाली इतिहास का गुणगान गाना नहीं हैं। भारतकी वर्तमान सामाजिक और आर्थिक समस्याओंका निवारण करके, हमे भारतको समर्थ, संपन्न, सुशील, शक्तिशाली, स्वावलंबी बनाना हैं। हमे दुनियाके सामने किसी चीज़के लिए हात फैलाना न पड़े, इसीलिए हमे भारतको आत्मनिर्भर बनाना हैं। आत्मनिर्भर बनना यानि बाकि दुनियासे नाता तोड़ना नहीं, आत्मनिर्भर मतलब, सभी जीवनावश्यक वस्तुओंका भारतमें उत्पादन करना।
उद्बोधन के अंत में दत्ताजी ने कहा, दुनियाके ज्ञानको हम लेंगे, दुनियाके साथ स्नेह-विश्वास रखेंगे, दुनियाकी सेवा करने जाना पड़े तो हम जायेंगे, दुनियामें मानवताकी रक्षा करनेकी नौबत आती हैं तो भारतके लोग वहाँ जरुर मौजूद होंगे। हमे भारतको शक्तिशाली, समर्थ और स्वाभिमानी राष्ट्रके रूपमें बनाना होगा। औरोबिंदो घोषजी ने “भारत उठेगा, दुनियाको कुचलनेंके लिए नहीं, बल्कि दीपस्तंभ बनकर दुनियाको राह दिखनेके लिए।