Opinion

कर्मऋषि दत्तोपंत

पूरा नाम दत्तोपन्त ठेंगडी
जन्म 10 नवम्बर, 1920
जन्म भूमि आर्वी, वर्धा ज़िला, महाराष्ट्र
मृत्यु 14 अक्टूबर, 2004
मृत्यु स्थान पुणे, महाराष्ट्र
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र समाज-सुधार
भाषा हिंदी, अंग्रेज़ी, मराठी
शिक्षा एम. ए., एल.एल.बी
विशेष योगदान भारतीय मज़दूर संघ, भारतीय किसान संघ, स्वदेशी जागरण मंच जैसे कई प्रभावशाली संगठनों की स्थापना की।


नागरिकता भारतीय


अन्य जानकारी दत्तोपन्त ठेंगडी ने 26 हिंदी, 12 अंग्रेज़ी और 2 मराठी पुस्तकों का लेखन किया है। उनकी ये पुस्तकें उनके राष्ट्र कार्य की मनोगाथा हैं।
दत्तोपन्त ठेंगडी (अंग्रेज़ी: Dattopant Thengadi, जन्म: 10 नवम्बर, 1920; मृत्यु: 14 अक्टूबर, 2004) भारत के राष्ट्रवादी ट्रेड यूनियन नेता एवं भारतीय मज़दूर संघ के संस्थापक थे। भारत के ज्येष्ठ स्वतंत्रता सेनानी, उज्ज्वल राष्ट्रनिर्माण की अभिलाषा रखकर उसके लिए सदैव प्रयत्नरत रहने वाले कुशल संघटक, राष्ट्रप्रेमी संगठनों के शिल्पकार, द्रष्टा विचारवंत, लेखक, संतों के समान त्यागी और संयमित जीवन जीने वाले आदरणीय दत्तोपन्त ठेंगडी ने भारतीय किसानों को सन्मानपूर्वक जीवन जीने का अवसर देने के साथ, राष्ट्र के उत्थान प्रक्रिया में सहयोगी बनने की प्रेरणा देने के मूल विचार से भारतीय किसान संघ की स्थापना की। दत्तोपंत ठेंगडी जी ‘भारतीय किसान संघ’ के कार्यकर्ताओं के प्रेरणास्थान हैं।

जीवन परिचय


दत्तोपन्त ठेंगडी का जन्म 10 नवंबर, 1920 को भारत के महाराष्ट्र राज्य में, वर्धा ज़िले के आर्वी शहर में हुआ। इस गांव के एक प्रतिष्ठित नागरिक एवं प्रसिद्ध वकील बाबुराव दाजीबा ठेंगडी के वे ज्येष्ठ सुपुत्र थे। बचपन से ही उनके कुशाग्र बुद्धि, और सामाजिक कार्य के संदर्भ में सच्ची लगन की झलक दिखने लगी थी। विद्यार्थी दशा में ही उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेकर भारत माता के प्रति अपनी वचनबद्धता का परिचय दिया। केवल 15 वर्ष की आयु में ही वे आर्वी तालुका नगरपालिका हाईस्कूल के अध्यक्ष चुने गए। बतौर अध्यक्ष, उन्होंने इन स्कूलों में पढ़ने वाले ज़रूरतमंद छात्रों को आर्थिक मदद करने के लिए एक निधी के निर्माण की पहल की। 1935 में ही उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के ‘वानर सेना’ इस युवा संगठन के आर्वी शहर शाखा का प्रमुख पद सौंपा गया। झुग्गी-झोपडियों में रहने वाले युवाओं को स्वतंत्रता संग्राम में सहभागी होने के लिए, उनमें राष्ट्रप्रेम की भावना निर्माण करने का कार्य भी युवा दत्तोपंत ने किया। इसी कारण उन्हें 1936 में ‘आर्वी गोवनी झुग्गी-झोपडी मंडल’ का प्रमुख पद भी सौंपा गया। इसी बीच, 1936 से 1938 तक वे ‘हिंदुस्थान सोशॅलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी, नागपुर’ में भी सक्रिय रहे।चीन और रूस दत्‍तोपंत से करते थे

विचार-विमर्श

ठेंगड़ी दुनिया में कहीं भी जाते थे तो हर जगह मजदूर आंदोलनों के साथ-साथ वहां की सामाजिक स्थिति का अध्ययन भी करते थे. इसी कारण चीन और रूस जैसे कम्युनिस्ट देश भी उनसे श्रमिक समस्याओं पर परामर्श करते थे. 26 जून, 1975 को देश में आपातकाल लगने पर ठेंगड़ी ने भूमिगत रहकर ‘लोक संघर्ष समिति’ के सचिव के नाते तानाशाही विरोधी आंदोलन को संचालित किया. जनता पार्टी की सरकार बनने पर जब अन्य नेता कुर्सियों के लिए लड़ रहे थे, तब ठेंगड़ी ने मजदूर क्षेत्र में काम करना पसंद किया.

दत्‍तोपंत ने 2002 में ठुकरा दिया था ‘पद्मभूषण’

एनडीए सरकार की ओर से 2002 में दिए जा रहे ‘पद्मभूषण’ को उन्होंने यह कहकर ठुकरा दिया कि जब तक संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार और गुरुजी को ‘भारत रत्न’ नहीं मिलता, तब तक वह कोई सम्‍मान स्वीकार नहीं करेंगे. 14 अक्‍टूबर, 2004 को उनका निधन हो गया. दत्‍तोपंत ठेंगड़ी कई भाषाओं के जानकार थे. उन्होंने हिंदी में 28, अंग्रेजी में 12 और मराठी में तीन किताबें लिखीं. इनमें लक्ष्य और कार्य, एकात्म मानवदर्शन, ध्येयपथ, बाबासाहब भीमराव अंबेडकर, सप्तक्रम, हमारा अधिष्ठान, राष्ट्रीय श्रम दिवस, कम्युनिज्म अपनी ही कसौटी पर, संकेत रेखा, राष्ट्र, थर्ड वे प्रमुख हैं.
विद्यार्थियों और वंचित वर्ग को जोड़ने में दत्‍तोपंत को मिली सफलता

संघ की इस सोच ने मजदूर क्षेत्र का दृश्य बदलने का काम किया. वहीं, मई दिवस के बजाय भारत के कामगार वर्ग की पहचान के प्रतीक भगवान विश्वकर्मा (17 सितंबर) के जन्मदिवस को श्रमिक दिवस के रूप में मानना शुरू किया. दत्तोपंत ने विद्यार्थी (Students) और समाज में वंचित वर्ग (Deprived Class) को जोड़ने का भी काम किया. 1948 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) की स्थापना और उसके प्रभाव को देश के छात्रों में फैलाने का काम ठेंगड़ी ने ही किया. वहीं, समाज को एकजुट करने और एक होकर देश-हित में काम करने के लिए सामाजिक समरसता मंच की नींव रखने का श्रेय भी ठेंगडी को जाता हैं.

भारतीय किसान संघ की स्थापना में ठेंगड़ी की रही प्रमुख भूमिका

ठेंगड़ी का मानना था कि सामाजिक समरसता समाज की एकाग्रता के लिए जरूरी है. समाज जिन्हें वर्षों से अछूत मानकर उपेक्षा करता है, उनको समाज के संपर्क में लाना और समान भाव, समता के आधार पर समाज का संगठन करने के लिए ठेंगड़ी ने अनुसूचित जातियों, जनजातियो के बीच काम करना शुरू किया. ठेंगड़ी ने किसानों में देशहित की भावना जगाने के लिए कहा कि जैसे एक सैनिक सीमा पर खड़ा होकर गौरवान्वित महसूस करता है, उसी तरह किसानों को देश के भीतर देश हित में काम करना चाहिए. भारतीय किसान संघ की स्थापना में ठेंगड़ी की प्रमुख भूमिका रही.

ठेंगड़ी का कहना था, विकास की होड़ में देशज विचारों को ना भूलें

ठेंगड़ी ने 1991 में स्‍वदेशी जागरण मंच की स्‍थापना की. इसका उद्देश्‍य था कि दुनिया के साथ विकास की होड़ में भारत अपने देशज विचारों को भूलने नहीं पाए. स्वदेशी जागरण मंच समय-समय पर देश के नीति निर्माताओं को याद दिलाता रहता था कि उदारवाद को अपनाने में देशहित की उपेक्षा नहीं होनी चाहिए. ठेंगड़ी 1951 से 1953 तक मध्य प्रदेश में ‘भारतीय जनसंघ’ के संगठन मंत्री रहे. उन्‍होंने मजदूरों के बीच काम करने के लिए राजनीति छोड़ दी. वह 1964 से 1976 तक दो बार राज्यसभा के सदस्य रहे।।। दत्‍तोपंत ने ‘गुरुजी’ के कहने पर मजदूरों के बीच किया काम

दत्‍तोपंत ठेंगड़ी ने संघ के दूसरे सरसंघचालक गुरुजी के कहने पर मजदूर क्षेत्र में काम करना शुरू किया. इसके लिए उन्होंने ‘शेतकरी कामगार फेडरेशन’ जैसे संगठनों में जाकर काम सीखा. अपने प्रचारक जीवन की शुरुआत ही ठेंगड़ी ने केरल से की थी. केरल में वामपंथियों के प्रभाव और उनके काम के तरीक़ों को वे भलीभांति जानते थे. इसलिए वे साम्यवादी विचार के खोखलेपन को भी जानते थे. दत्‍तोपंत ठेंगड़ी ने ‘भारतीय मजदूर संघ’ नाम से अराजनीतिक संगठन (Non-Political Organisation) शुरू किया, जो आज दुनिया का सबसे बड़ा मजदूर संगठन (Labor organization) है. ठेंगड़ी के प्रयास से श्रमिक और उद्योग जगत (Labor and Industry) के नए रिश्ते शुरू हुए. भारतीय मज़दूर संघ ने देश में वामपंथियों के बनाए मिल मालिक-मज़दूर के डिस्कोर्स (Discourse) को ही बदल दिया. वामदलों के नारे थे, ‘चाहे जो मजबूरी हो, मांग हमारी पूरी हो’ और दुनिया के मजदूरों एक हो, कमाने वाला खाएगा.’ वहीं मजदूर संघ ने कहा, ‘देश के हित में करेंगे काम, काम के लेंगे पूरे दाम’ और ‘मजदूरों दुनिया को एक करो, कमाने वाला खिलायेगा।। प्रचारक-जीवन की शुरुआत में ही दत्‍तोपंत को केरल (Kerala) भेजा गया, वहां उन्होंने ‘राष्ट्रभाषा प्रचार समिति’ का काम किया. केरल के बाद उन्हें बंगाल (Bengal) और फिर असम (Assam) भेजा गया. यह वही समय था, जब देश भर में वामपंथी (Communist) अपने प्रभाव का प्रसार कर रहे थे. मज़दूर खेमे में वामपंथियों का भारी प्रभाव था. वाम संगठनों (Left Organisations) का नारा था ‘चाहे जो मजबूरी हो, हमारी मांगें पूरी हो.’ वहीं, संघ राष्ट्रहित को प्राथमिकता पर रखता था. संघ का मानना था कि मालिक और मज़दूरों का लगातार संपर्क बना रहना चाहिए. देशहित में दोनों की समान भूमिका होनी चाहिए. इसलिए किसी भी विवाद की स्थिति में दोनों के बीच संवाद जरूरी है. औद्योगिक संगठनों के बंद होने से मज़दूरों का जीवन नरकीय हो जाता है. इसलिए सबको मिलकर देशहित में काम करना चाहिए।।आजीवन राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ (RSS) के प्रचारक रहे दत्तोपंत ठेंगड़ी (Dattopant Thengari) का जन्म दीपावली के दिन (10 नवंबर, 1920) को महाराष्ट्र (Maharashtra) में वर्धा जिले के आर्वी गांव में हुआ था. वह बाल्यकाल से ही स्वतंत्रता संग्राम (Freedom Struggle) में सक्रिय रहे. 1935 में वे ‘वानरसेना’ के आर्वी तालुका के अध्यक्ष थे. यह वही समय था, जब उनका संपर्क राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. केशव राव बलिरम हेडगेवर (Dr. Keshav Rao Baliram Hedgewar) से हुआ. इस मुलाक़ात ने ठेंगडी के मन में संघ-बीज को बो दिया. ठेंगडी के पिता उन्हें वक़ील (Lawyer) बनाना चाहते थे, लेकिन नियति को कुछ और ही मंज़ूर था. दत्तोपंत ने एम.ए. और कानून की पढ़ाई के बाद 1941 में अपने जीवन को राष्ट्र व समाज की सेवा में समर्पित कर दिया और संघ प्रचारक बन गए.

लेखक – विवेक पाठक, ओशिवरा भाग

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