सावरकर को कितना जानते हैं हम’ श्रृंखला – लेख ४
भारत के संस्कृति मंत्रालय ने संसद में बताया कि विनायक दामोदर सावरकर ने कभी भी अंग्रेज़ों से माफ़ी मांगी थी या नहीं, ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं है।
संसद में हाल में सवाल उठा था कि क्या सावरकर ने सेल्युलर जेल में रहते हुए ब्रिटिश हुकूमत से माफ़ी मांगी थी ? केंद्रीय संस्कृति मंत्री प्रहलाद पटेल ने इसके बारे में कहा था कि अंडमान और निकोबार प्रशासन के पास ऐसा कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है जिससे यह स्पष्ट हो कि सावरकर ने अंग्रेज़ों से माफ़ी मांगी थी या नहीं. उन्होंने कहा, “जिस तरह की जानकारी अंडमान और निकोबार प्रशासन के आर्ट एंड कल्चर विभाग से मिली है उसके मुताबिक़ सेल्युलर जेल में रहते किसी तरह की दया याचिका देने का कोई रिकॉर्ड मौजूद नहीं है जिससे इस बात की पुष्टि हो की उन्होंने माफ़ी मांगी थी या नहीं.”
लेकिन अपनी आत्मकथा में सावरकर ने लिखा है कि सेल्युलर जेल से बाहर निकलने के लिए उन्होने सरकार को पत्र लिखे थे।करीब 10 साल सावरकर अंडमान की जेल में रहे. जेल से रिहाई के लिए उन्होंने 6 बार पत्र लिखे. काला पानी की सेल्यूलर जेल में हालात भयावह थे। जानवरों को जिस तरह कोल्हू में जोता जाता है, सावरकर को उसी तरह तेल मिल में काम पर लगाया गया। यह बर्बर सजा थी, इसलिए काला-पानी से निकलने के लिए उन्हें जो पैंतरे मिले उन सबका उपयोग उन्होंने किया। वीर सावरकर ने पत्र लिखकर यह बताया था कि उनकी रिहाई पर रॉयल प्रोक्लेमेशन को छपे पांच महीने बीत गए हैं यानी उनकी रिहाई का ऐलान हो चुका है पर कई अहम राजनैतिक अपराधियों को अभी तक रिहा नहीं किया गया है, जिनमें सावरकर बंधु (यानी विनायक दामोदर सावरकर और गणेश दामोदर सावकर) भी हैं। उन्होने सरकार से कहा था कि चाहे उनको रिहा न करे पर शेष को तो मुक्ति देकर सरकार अपनी घोषणाओं का मान रखे ! उन्होने अपने बारे में भी लिखा कि हमारा अपराध भी उतना ही, जितना पंजाब में रिहा किए गए कई राजनैतिक अपराधियों का। इसलिए हम दोनों भाइयों को अभी तक क्यों नहीं छोड़ा गया है यह स्पष्ट होना चाहिए ‘
उनकी आत्मकथा में ही लिखा है कि १४ नवंबर, १९१३ को भेजी अपनी दूसरी याचिका में वे अंग्रेज सरकार से खुद को भारत में किसी भी अन्य जेल में भेजे जाने की बात लिखते हैं. साथ ही वो लिखते हैं कि जिस तरह भी संभव होगा वे सरकार के लिए काम करेंगे। सावरकर ने रणनीति के रूप में ये बात कही थी. ताकि वो जेल से बाहर निकल सकें। वर्ष १९३७ में सावरकर पूरी तरह से आज़ाद होते हैं, और हिंदू महासभा के अध्यक्ष बनते हैं। १९४२ में सावरकर भारत छोड़ो आंदोलन की मुख़ालफ़त करते है और वायसराय लिनलिथगो को लिखे लेटर में डोमिनीयन रूल की वकालत करते हैं।सावरकर ने सभी हिंदुओं से सेना में जुड़कर अंग्रेजों की तरफ़ से लड़ने की बात की थी जिससे हिंदुअपनी लड़ाई के लिए तैयार हो सकें। कहा जाता है कि १९४६ में मुंबई नौसेना का विद्रोह भी उन्हीं की शह पर हुआ था। सावरकर की आलोचना करने वाले कहते हैं कि जेल से छूटने के लिए उन्होंने अंग्रेज़ों से माफी मांगी थी- यह राई को पहाड़ बताने जैसी और सच छिपाने की बात है । चूंकि द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हो गया था और सावरकर इसमें भागीदारी करके आजादी का रास्ता तलाशने के इच्छुक थे। शायद इसीलिए महात्मा गांधी ने आठ मई 2021 को ‘यंग इंडिया’ में लिखा था, ‘यदि भारत इसी तरह सोया रहा तो मुङो डर है कि उसके दो निष्ठावान पुत्र विनायक दामोदर सावरकर और उनके बड़े भाई गणेश हाथ से चले जाएंगे। लंदन में मुङो सावरकर से भेंट करने का सौभाग्य मिला था। वे बहादुर हैं, चतुर हैं और देशभक्त क्रांतिकारी हैं। ब्रिटिश प्रणाली की बुराइयों को उन्होंने बहुत पहले ही ठीक से समझ लिया था।’