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  • Islam

    सबसे बडे इस्लामी आबादीवाले इंडोनेशियाने स्कूलों पर हिजाब को अनिवार्य बनाने से किया बैन

    नई दिल्ली : विश्व के सबसे बड़े इस्लामी आबादी वाले इंडोनेशिया ने स्कूलों पर हिजाब को अनिवार्य बनाने से बैन…

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  • News

    इसरो का पीएसएलवी-सी ५२ सफलतापूर्वक लॉन्च

    भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने २०२२ के अपने पहले प्रक्षेपण अभियान के तहत पीएसएलवी-सी 52 के जरिए धरती पर…

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  • Opinion

    आपला प्राधान्यक्रम गंडला आहे

    काल राहुल बजाज यांचे निधन झाले. कोणत्याही न्यूज चॅनेल ने एक २ मिनिटाची बातमी देण्यापलीकडे काहीच केलेले नाही. हेच एखादा…

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  • Opinion

    वैलेंटाइन डे नहीं, मातृ पितृ पूजन दिवस !

    भारतीय संस्कृति का अनूठा दिन मातृ – पितृ पूजन दिवस १४ फरवरी को मनाया जाता है। उसपर इन दिनों पश्चिमी…

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  • Culture

    Significance of today (February 13th) & the town of Basrur, in Indian Naval history!

    Basrur is a port town in Kundapur taluk of Udupi district in Karnataka. It finds mention in the works of…

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  • News

    अब मेडिकल छात्र ‘हिप्पोक्रेटिक शपथ’ की जगह लेंगे ‘चरक शपथ’

    भारत में अब मेडिकल छात्र ‘हिप्पोक्रेटिक शपथ’ की जगह ‘चरक शपथ’ लेंगे। सालों पुरानी शपथ लेने की परंपरा में यह…

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  • Opinion

    आम्ही सक्षम आहोत : लष्कर प्रमुख

    ग्लोबल टाइम्सने दावा केला आहे की, देशांतर्गत संघर्षावरून लक्ष हटवण्यासाठी भारताने चीनविरोधी वक्तृत्व अधिक तीव्र केले आहे. चिनी मीडियाने दिवंगत…

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  • Culture

    भगवान गणेश

    माघ महीने की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश जयंती मनायी जाती हैं। इस दिन को माघी गणेश चतुर्थी,…

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  • Opinion

    अटल – सुरंग विश्व की सबसे लम्बी राजमार्ग सुरंग : वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स

    सीमाओं की सुरक्षा सुदृढ़ हुई , सर्दियों में भी लोगों को जनसुविधायें उपलब्ध और पर्यटन सालभर चलेगा पीर-पंजाल की पहाड़ी…

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  • Opinion

    गेहूं के चोकर की क्रॉकरी

    केरल के एर्नाकुलम में रहने वाले विनय कुमार बालाकृष्णन ने सीएसआईआर– नैशनल इंस्टिट्यूट फॉर इंटरडिसिप्लिनरी साइंस एंड टेक्नोलॉजी (NIIST) के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर गेहूं के चोकर से बायोडिग्रेडेबल सिंगल यूज क्रॉकरी बनाई है। गेहूं की प्रोसेसिंग करते समय बचने वाले चोकर या भूसे (Wheat Bran) को अक्सर लोग फेंक देते हैं या कभी-कभी पशुओं को खिला देते हैं। लेकिन यह चोकर स्वास्थ्य के दृष्टि से बहुत ही फायदेमंद होता है। चोकर वाले आटे में फाइबर और पोटैशियम की मात्रा अधिक होती है जिससे वजन कम होता है और ब्लड प्रेशर कंट्रोल में रहता है। इसलिए अक्सर लोगों को सलाह दी जाती है कि चोकर को फेंकने की बजाय, इसे आटे में मिलाकर इसकी रोटियां बनायी जाएं। पर अगर रोटियां बनाने के साथ-साथ चोकर से ‘सिंगल यूज बर्तन’ भी बनाए जाए तो? जी हाँ, केरल के एर्नाकुलम में रहने वाले विनय कुमार बालाकृष्णन ने सीएसआईआर- नैशनल इंस्टिट्यूट फॉर इंटरडिसिप्लिनरी साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी (NIIST) के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर चोकर से बायोडिग्रेडेबल सिंगल यूज क्रॉकरी बनाने की तकनीक विकसित की है। वह चोकर से ऐसी प्लेट्स बना रहे हैं, जिन्हें इस्तेमाल के बाद खाया जा सकता है। अगर कोई इन्हें खाना नहीं चाहता तो इन्हें जानवरों के चारे के रूप में भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। अगर आपके आसपास जानवर भी न हों तो आप इन्हें कहीं भी मिट्टी में या जंगल में फेंक सकते हैं। कुछ दिनों में ही ये डिस्पोज हो जाएंगे। अपनी इस इको-फ्रेंडली और ‘एडिबल’ सिंगल यूज क्रॉकरी को विनय कुमार ‘तूशान‘ (Thooshan) ब्रांड नाम से बाजार तक पहुंचा रहे हैं। विचार का जन्म ऐसे हुआ   विनय कुमार ने कई सालों तक बैंकिंग सेक्टर और इंश्योरेंस कंपनी में काम किया है। साल 2013 तक वह मॉरीशस में एक इंश्योरेंस कंपनी में बतौर सीईओ काम कर रहे थे। लेकिन इसके बाद उन्होंने मॉरीशस की नौकरी छोड़ दी और अपने देश लौट आए। वह बताते हैं, “बात अगर बायोडिग्रेडेबल ‘प्लेट’ की आए तो केले के पत्ते से बेहतर क्या होगा? सदियों से हम लोग, विशेषकर केरल में केले के पत्ते का उपयोग खाना खाने के लिए किया जा रहा है। यह हमारी संस्कृति का हिस्सा है। इसलिए मुझे लगा कि इस ‘कॉन्सेप्ट’ पर चलते हुए हम और क्या कर सकते हैं। हमारा ब्रांड नाम भी इसी से आया है। मलयालम में केले के पूरे पत्ते को ‘तूशनिला’ (Thooshanila) कहते हैं और उसी से हमने ‘तूशान’ शब्द लिया।”  पहले उन्होंने ऐसे कंपनियां ढूंढ़ी, जो पहले से ही इको फ्रेंडली और बायोडिग्रेडेबल क्रॉकरी बनाने का काम कर रही थी। वह कहते हैं कि उन्हें पोलैंड की एक कंपनी के बारे में पता चला जो गेहूं के चोकर से क्रॉकरी बना रही है। उन्होंने उस कंपनी से भारत में भी अपना एक प्लांट स्थापित करने के लिए कहा। लेकिन उस कंपनी ने मना कर दिया। इसके बाद, उन्होंने तय किया कि वह खुद यह काम करेंगे। उन्होंने बताया, “मैंने सबसे पहले अपने देश में रिसर्च करना शुरू किया और मुझे पता चला कि CSIR-NIIST ने नारियल के छिलके से इको फ्रेंडली क्रॉकरी बनाई है। इसलिए मैंने उन्हें गेहूं के चोकर से क्रॉकरी बनाने का प्रपोजल दिया।”  लगभग एक-डेढ़ साल की रिसर्च और डेवलपमेंट के बाद उन्हें इस प्रयास में सफलता मिली। गेहूं के चोकर से प्लेट बनाने की मशीन भी उन्होंने खुद ही विकसित की। वह कहते हैं कि यह मशीन ‘मेड इन इंडिया’ है क्योंकि मशीन का हर एक कल-पुर्जा भारत की ही अलग-अलग कंपनियों द्वारा तैयार किया गया है। उन्होंने इस तकनीक के लिए CSIR-NIIST के साथ एमओयू साइन किया। लैब में प्रोटोटाइप तैयार होने के बाद, उन्होंने सभी तरह के टेस्ट भी किए हैं और अब उनके उत्पाद बाजार में पहुँचने के लिए तैयार हैं।   ‘एडिबल’ क्रॉकरी की विशेषता  पिछले कई सालों से सरकार ‘सिंगल यूज प्लास्टिक क्रॉकरी’ की समस्या को हल करने के लिए प्रयास कर रही है क्योंकि इससे कचरे और प्रदूषण दोनों बढ़ते हैं। लेकिन यह तभी सम्भव हो पाएगा जब हमारे पास प्रकृति के अनुकूल कोई विकल्प हो। और विनय कुमार अपनी ब्रांड के ज़रिए यही विकल्प देने की कोशिश कर रहे हैं। विनय कुमार कहते हैं कि फिलहाल, वह प्लेट बना रहे हैं और इसके बाद, पैकेजिंग कंटेनर, कटलरी, कटोरी आदि की मैन्युफैक्चरिंग पर काम करेंगे। गेहूं के चोकर से बनी इन प्लेट्स को माइक्रोवेव में भी इस्तेमाल किया जा सकता है।  प्लेट का उपयोग…

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